मुगलकाल की इस सफ़ेद मस्जिद से सिखों का है पुराना रिश्ता

पंजाब के सिरहिन्ंद के ऐतिहासिक शहर के निकट महादियान गांव में मुग़लकाल की अपनी दो गुंबदों के लिए पहचानी जाने वाली चित्ती मस्जिद (सफेद मस्जिद) की देखरेख पड़ोस में स्थित गुरुद्वारा करता है। सिख इतिहास में एक दर्दनाक और दुखद अध्याय के बावजूद मस्जिद और गुरुद्वारा ने अपने हिंसक अतीत के साथ शांति बनाई हुई है।

गुरुद्वारा मस्तगढ़ साहिब चित्तियन करीब सौ साल से मस्जिद को संजोये हुए है और अब मस्जिद को अपने परिसर में ले लिया गया है। यह वही मस्जिद है जिसके काजी ने साल 1705 में गुरु गोबिंद सिंह के दो पुत्रों की मौत के लिए फतवा जारी किया था। मस्जिद उस स्थान से एक किलोमीटर से भी कम है जहां ज़ोरवर सिंह और फतेह सिंह को इस्लाम को गले लगाने से इंकार करने के लिए सिरहिन्द के नवाब वजीर खान ने इनको दीवारों पर बांध दिया था।

यह घटना अब जोर मेला के रूप में मनाई जाती है जहां सिख हर साल एकत्र आते हैं। ग्रंथी जीतन सिंह कहते हैं कि वह दिन में दो बार मस्जिद को साफ करते हैं। मुस्लिम लोग खुश हैं कि हम इस पुराणी मस्जिद की देखभाल कर रहे हैं। फतेहगढ़ साहिब के माता गजरी कॉलेज में पंजाबी सिखाने वाले प्रोफेसर रशीद कहते हैं कि चित्तियन मस्जिदन गुरुद्वारा सांप्रदायिक सौहार्द का एक उदाहरण है।

मैंने मस्जिद का दौरा किया और पाया है कि मुसलमान वहां नमाज पढ़ने के लिए स्वतंत्र हैं। फरीदकोट स्थित एक इतिहासकार और ‘सरहिंद का इतिहास और वास्तुशिल्प अवशेष’ के लेखक प्रो सुभाष परिहार का कहना है कि मस्जिद मुगल बादशाह शाहजहां की अवधि के काफी समय पहले की है और इसे 1628-1658 के बीच बनाया गया था।