‘दादरी के अखलाक से शुरू हुआ हत्या का सिलसिला अब राजस्थान में पहलू खान तक पहुंच गया’

इस देश में कोई सुप्रीम कोर्ट है क्या…

दादरी के अखलाक, लातेहार में पेड़ पे मारकर टांगी गई दो लाशें, गुजरात के अयूब और अब राजस्थान में पहलू खान को क्या आप जानते हैं? विशेष नस्ल के जानवर के कारण इंसानों की नृशंस हत्या की जा रही हो और उसके वीडियो दुनिया देख रही हो तो क्या उसे इस देश में किसी न्यायाधीश ने नहीं देखा होगा। क्या इस देश में सुप्रीम कोर्ट की कोई जिम्मेवारी नहीं बनती अगर बनती है तो वह अब तक कहां है।

जहां तक याद है कि उत्तराखंड में रणवीर हत्या कांड को लेकर एक बार कोर्ट की गंभीरता को देखा गया था। पर उसी दरम्यान बटला हाउस भी हुआ था जिसकी जांच को लेकर कोर्ट ने दिल्ली पुलिस के उस तर्क को जस्टिफाई करते हुए जांच के आदेश देने से मना कर दिया था कि इससे पुलिस का मनोबल गिर जाएगा।

कहीं ऐसा तो नहीं है कि हमारे न्यायालय को एक जानवर के नाम पर इंसान की हत्या करने वाली उस भीड़ के मनोबल की चिंता सता रही हो। अगर ऐसा है तो क्या कोई दलील हत्यारों की भीड़ ने दी, जिस तरह से दिल्ली पुलिस ने दिया था।

अगर नहीं तो क्या स्वतः संज्ञान लेने वाला न्यायालय खुद ही तय कर लिया। अगर ऐसा है तो इंडियन स्टेट की पुलिस और जानवर के नाम पर इंसान की हत्या करने वालों को क्या कोई विशेष अधिकार है अगर है तो उसे देश के सामने सार्वजनिक करना चाहिए।

ऊना से लेकर अख़लाक़ या फिर छत्तीसगढ़ में मानवीय सभ्यता के अंत के लिए चल रहे ऑपरेशन क्या इसी अभियान का हिस्सा हैं। गांधीवादी कार्यकर्ता हिमांशु कुमार छत्तीसगढ़ के बारे में एक बार बता रहे थे कि एक गांव की कुछ आदिवासी लडकियों के साथ पुलिस वालों ने सामूहिक बलात्कार किया जिनके खिलाफ राज्य सरकार ने केस दर्ज नहीं होने दे रही थी। बहुत मुश्किल से सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद केस दर्ज हो पाया। इसके बाद फिर उन्हीं पुलिस वालों ने फिर से उन लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार किया।

समझ नहीं पा रहा हूं पहली बार हुआ बलात्कार क्या कोई अपराध था या उसका इंसाफ मांगना अपराध था जिसकी सजा दूसरी बार बलात्कार।

क्या ऐसा हो गया है क्या कि इंसाफ, अपराध और अपराध, सजा?

अगर ऐसा है तो न्यायालय हैं अगर ऐसा नहीं है तो न्यायालय कहां हैं?

दादरी में अखलाक, लातेहार झारखंड, गुजरात में अय्यूब होते हुए हत्या का जो सिलसिला अब राजस्थान में पहलू खान तक पहुंचा है उनकी देहरी पर क्या न्याय दस्तक देने से डर रहा है।

  • राजीव यादव