प्रधानमंत्री के कहने का ये मतलब…वो मतलब…बेमतलब: रवीश कुमार

उत्तर प्रदेश के गोण्डा की चुनावी सभा में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था अभी कानपुर में रेल हादसा हुआ, उसमें सैकड़ों लोग मारे गये। उसमे कुछ लोग पकड़े गये हैं। वो (हादसा) अचानक नहीं हुआ बल्कि पुलिस ने जो खोजकर निकाला, (उसके मुताबिक) एक षड्यंत्र के तहत हुआ। उन्होंने विरोधी पार्टियों के प्रत्याशियों की तरफ इशारा करते हुए किसी का नाम लिये बगैर कहा कि वे षड्यंत्र करने वाले सीमा पार बैठे हैं। अब तक सीमा पार के जो हमारे दुश्मन हैं, वो अपना कारोबार वहां से चलाना चाहते हैं। गोण्डा में ज्यादा सतर्कता की जरूरत है कि नहीं। प्रधानमंत्री के बयान का यह हिस्सा मैंने जनादेश नाम की साइट से लिया है।

इस बयान को लेकर शिवसेना सांसद संजय राउत ने सवाल किया था कि क्या ऐसे हमलों में आई एस आई और पाकिस्तान समर्थित एजेंसियों का हाथ था। इसके जवाब में गृहमंत्री राजनाथ सिंह कहते हैं कि बहुत से आतंका हमलों की योजना होती है। इनमें से बहुत पड़ोसी देश में बनती है। तब दिग्विजय सिंह गोण्डा वाले बयान पर गृहमंत्री ध्यान दिलाते हैं कि उन्होंने तो ऐसा कहा है। जवाब में राजनाथ सिंह कहते हैं कि प्रधानमंत्री के जिस बयान की आप चर्चा कर रहे हैं, मैं साफ करना चाहूंगा कि ऐसे न्यूज़ आइटम पहले भी छपते रहे हैं। प्रधानमंत्री ने दुर्घटना में सीधे सीधे आई एस आई के हाथ होने की बात नहीं कही है। इंडियन एक्सप्रेस में इसके बारे में रिपोर्ट छपी है।

बहुत चतुराई से राजनाथ सिंह प्रधानमंत्री के बयान का खंडन कर गए। उसका दोष न्यूज़ आइटम पर डाल गए। यह भी कह दिया कि प्रधानमंत्री ने ऐसा नहीं कहा। आप सबसे ऊपर प्रधानमंत्री के बयान और राज्यसभा में गृहमंत्री के बयान को पढ़ते हुए ख़ुद भी समझ सकते हैं। बुधवार( 22 मार्च) के इंडियन एक्प्रेस के पेज नंबर 9 पर एक और ख़बर छपी है। अदालत ने सरकार से पूछा कि पहले सरकार ने कहा कि लोग 31 मार्च तक पुराने नोट बदल सकते हैं मगर जब अध्यादेश आया तो पुराने नोट बदलने की समय सीमा 30 दिसंबर 2016 कर दी गई। सरकार ने लोगों के साथ सही नहीं किया। इसके जवाब में भारत सरकार के महाधिवक्ता मुकुल रोहतगी कहते हैं कि “प्रधानमंत्री के स्पीच का कोई सवाल ही नहीं बनता है। अगर प्रधानमंत्री कहते हैं कि 31 मार्च 2017 लेकिन कानून कहता है कि 30 दिसंबर 2016 तो प्रधानमंत्री पर कानून हावी होगा। इसके बारे में सबसे पहले साफ हो जाना चाहिए। “ बड़े वकीलों की बहस में अब यह सवाल कौन पूछे कि 30 दिसंबर तक नोट बदलने का अध्यादेश तो सरकार ही लेकर आई। क्या किसी कानून ने सरकार को 31 मार्च की जगह 30 दिसंबर करने के लिए बाध्य किया था।

23 मार्च के इंडियन एक्सप्रेस के पेज नंबर 11 पर एक और ख़बर छपी है। इसके अनुसार नेशनल इंवेस्टिगेटिंग एजेंसी (NIA) के अनुसार 7 मार्च को हुए भोपाल-उज्जैन ट्रेन धमाके में आईएस आतंकवादी संगठन के कथित लखनऊ-कानपुर माड्यूल के बारे में सबूत नहीं मिल रहे हैं। शायद कोई विदेश हैंडलर शामिल नहीं था। इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं कि आई एस के बैनर तले आतंकी हमले की कोई योजना थी।

23 मार्च के ही इंडियन एक्सप्रेस के पहले पन्ने पर एक और ख़बर है जिसके बारे में कोई बात नहीं कर रहा है। 2007 में अजमेर दरगाह धमाका हुआ था। अख़बार लिखता है कि आर एस एस दो पूर्व प्रचारक 41 साल के देवेंद्र गुप्ता और 39 साल के भवेश पटेल को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई है। जज दिनेश गुप्ता ने फांसी की सज़ा नहीं दी है। जज ने कहा है कि धमाके से पहले दोनों किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल नहीं थे। वे समाज के लिए ख़तरा नहीं थे। इस मामले में NIA ने दो अन्य आरोपी रमेश गोहिल, और अमित, आर एस एस के वरिष्ठ सदस्य इंद्रेश कुमार, प्रज्ञा सिंह, राजेंद्र चौधरी और जयंत को क्लिन चिट दिया है। असीमानंद और अन्य छह को संदेह के आधार पर बरी कर दिया गया है। देवेंद्र गुप्ता के बारे में कहा गया है कि वे काफी सक्रिय रूप से शामिल थे। टाइमर और सिम कार्ड उपलब्ध कराया था।

सरकारी वकील अश्विनी शर्मा ने बहस के दौरान कहा है कि हिन्दुइज़्म सिर्फ धर्म नहीं है, जीवन शैली है। कोई सोच नहीं सकता कि कोई हिन्दू आतंकी गतिविधि में शामिल होगा। अजमेर दरगाह में बड़ी संख्या में हिन्दू भी आते हैं। इस विस्फोट का मकसद था कि यहां हिन्दू न आएं। इसके जवाब में आरोपियों के वकील जे एस राना का जवाब भी दिलचस्प है। राणा साहब कहते हैं कि मौजूदा केस का हिन्दुइज़्म से कोई लेना देना नहीं है। ज़्यादा से ज़्यादा यही कहा जा सकता है कि इस केस में जो शामिल रहे हैं उन्होंने मूर्खता की है। बचाव पक्ष इस मामले की अपील हाईकोर्ट में करेगा। लेकिन इसी स्तर पर किसी मुस्लिम नाम वाले शख्स के बारे में ख़बर आती तो टीवी पर दिन रात हंगामा चलता। देवेंद्र गुप्ता और भवेश पटेल के कृत्य को मूर्खता कहकर कितनी आसानी से कोई बच निकलता है। कोई कैमरा लेकर उनके घर भी नहीं जाएगा। कोई व्हाट्स अप से मैसेज भी नहीं फैलायेगा। याद कीजिए उन लोगों को जो सिर्फ मुसलमान होने के कारण साबित होने से पहले ही आतंकवादी मान लिये जाते हैं,आप भी टीवी की भाषा में आतंकवादी मान लेते हैं और बारह से बीस साल जेल में रहने के बाद रिहा हो जाते हैं।