माफ़ करने का सेहरा मोदी-योगी को मगर मांग करने की ट्रॉफ़ी राहुल-योगेंद्र को: रवीश कुमार

किसानों का कर्ज़ माफ़ होना चाहिए और उत्तर प्रदेश ने अपना वादा पूरा कर अच्छा किया है। पूरा कर्ज़ माफ़ करना थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन जितना भी हुआ वो स्वागत योग्य है। समय-समय पर किसानों का लोन माफ़ होता रहना चाहिए। मीडिया ने मिडिल क्लास को समझा दिया है कि क़र्ज़ माफ़ी किसानों को आलसी बनाता है। अर्थव्यवस्था पर बोझ डालता है और सब्सिडी राज को बढ़ावा देता है। ये सब भ्रम है। किसानों के दम पर मिडिल क्लास को भी सब्सिडी मिलती है। उसके उत्पादों की कीमत कम रखी जाती है। हम भी दाम नहीं देना चाहते हैं। सबको पता है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत मूल्य से कम है। किसान बाज़ार में आकर भी कम ही पाता है। वो कम में बेचता है तो महंगांई रोक कर सरकार राजनीतिक और आर्थिक रूप से सक्षम होती है। इसलिए कर्ज़ माफ़ी को लेकर अपराध बोध नहीं होना चाहिए। चुनाव से पहले किया गया वादा पूरा होना ही चाहिए। जब बीजेपी खुलेआम कर्ज़ माफ़ी का वादा कर रही थी तब मिडिल क्लास को बोलना चाहिए था कि ये ग़लत है। किसानों को भी पूछना चाहिए था कि कितना कर्ज़ माफ़ किया जाएगा। बीजेपी ने यही कहा कि लघु और सीमांत किसानों का कर्ज़ माफ़ करेंगे। जितना कहा उससे ज़्यादा किया। बीजेपी कह सकती थी कि पचास हज़ार तक माफ़ करेंगे मगर एक लाख तक की माफ़ी की सीमा ठीक-ठाक बड़ी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का वादा पूरा करना सराहनीय है।

कई लोग हिसाब लगा रहे हैं कि दो करोड़ 15 लाख किसानों के बीच करीब 36,359 करोड़ की राशि कुछ भी नहीं है। प्रति किसान को चालीस हज़ार मिलेगा या पंद्रह हज़ार मिलेगा। इस तरह के औसत भ्रामक हो सकते हैं। हर किसान के कर्ज़ की देनदारी अलग अलग होगी। उनकी एक लाख तक की राशि माफ हो सकेगी। तात्कालिक लाभ ही सही मगर ये बहुत ज़रूरी है। किसानों की पूंजी सूखती जाती है। बीच-बीच में इस तरह की माफ़ी से किसानों को कुछ तो राहत मिलती ही है। वैसे भी इस भ्रम में मत रहिए कि भारत का किसान कर्ज़ नहीं देता है। ये ग़लत प्रचार है। किसान कर्ज़ चुकाते हैं। उनकी कोशिश होती है कि फसल के बिकते ही कर्ज़ से छुटकारा पाया जाए। समय पर कर्ज़ देने के लिए भी सरकार कई तरह की रियायतें देती है। इसलिए भी किसान समय से पहले कर्ज़ चुकाते हैं। मगर कई बार कम मूल्य, मौसम और अन्य कारणों से आर्थिक बोझ से दब जाता है। इसलिए यूपी के सवा दो करोड़ किसानों को कुछ नहीं, बहुत कुछ लाभ होगा।

माफ़ी की शर्तें क्या होंगी, उसके लिए पैसा कहां से आएगा, यह सब सवाल हैं मगर सरकार ने जब कमिटमेंट कर दिया तो पैसा लाने की चिंता उस पर छोड़ देनी चाहिए। बिजनेस स्टैंडर्ड ने लिखा है कि सरकार किसान बांड लाएगी जो इतना आसान नहीं है। कोई भी सरकार फ़ैसला करके, सबको बता कर सवा दौ करोड़ किसानों से धोखा करने का साहस नहीं करेगी। पूरा यकीन रखना चाहिए कि कुछ समय के भीतर एक लाख तक का लोन माफ होगा । यूपी सरकार ने 5600 करोड़ के एन पी ए को तुरंत माफ़ करने का फ़ैसला किया गया है। यह सरकार के बस में रहा होगा क्योंकि यह कोई बहुत बड़ी राशि नहीं है। इतने में तीन चार बेकार फ्लाईओवर ही बनते हैं। फ्लाईओवर देखने में विकास के प्रतीक होते हैं मगर ये जहां भी बने हैं, नब्बे फीसदी से ज़्यादा जगहों पर जाम को दूर नहीं कर सके हैं।

मुझे तो इस फैसले से बहुत उम्मीद है। मैं चाहता हूं कि पूरे देश में किसानों का लोन माफ़ कर दिया जाए। फिर से कर्ज़ माफ़ी की राजनीति शुरू हो। यूपी में राहुल गांधी ने कर्ज़ माफ़ी की आवाज़ उठाई। उस समय के बीजेपी के नेताओं के कर्ज़ माफ़ी के बयान देखिये। सब बच रहे थे। किसानों को सक्षम बनाने की बात कर रहे थे। लेकिन प्रधानमंत्री समय रहते समझ गए। नोटबंदी के बीच में राहुल गांधी कर्ज़ माफ़ी के मसले को लेकर प्रधानमंत्री तक ले कर गए। बाद में चुनावों में प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर अपना ठप्पा लगा दिया। किसानों को भी यकीन होना ही था कि जब प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि पहली बैठक में माफ़ी होगी तो दाँव खेलना चाहिए। राहुल गांधी को दिल छोटा नहीं करना चाहिए। राहुल गांधी जिस तरह से कर्ज़ माफ़ी को लेकर प्रधानमंत्री से मिले थे उसी तरह उन्हें फिर से मिलकर उनका शुक्रिया अदा करना चाहिए। भूमि अधिग्रहण के बाद कर्ज़ माफ़ी राहुल गांधी की राजनीति की दूसरी बड़ी कामयाबी है। बीजेपी का यह फ़ैसला बताता है कि राहुल की राजनीति सही दिशा में है। चुनावी जीत से बड़ी मुद्दे की जीत होती है। वो अफ़सोस कर सकते हैं कि किसानों ने उन्हें वोट नहीं दिया। इसलिए नहीं दिया कि उनकी पार्टी में उन्हें भरोसा नहीं है। उनकी पार्टी यूपी में सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी। कायदे से राहुल को किसानों के बीच जाकर सरकार का धन्यवाद करना चाहिए। यह भी राजनीति होती है। वोट मिले न मिले, आपका मुद्दा तो चल गया। योगेंद्र यादव ने भी किसानों की स्थिति का आंकलन करने के लिए लंबी पदयात्रा की। सुप्रीम कोर्ट में वे सूखा राहत वगैरह को लेकर लंबी लड़ाई लड़ रहे हैं। योगेंद्र ने कानूनी तरीके से इस मुद्दे को अंजाम पर पहुंचाने का प्रयास किया है ताकि किसानों के मामले में कोई स्थायी व्यवस्था हो। किसानों को लेकर अदालत तक बीजेपी नहीं गई थी। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण गए थे। देवेंद्र शर्मा तो लगातार इसके हक में लिखते रहे हैं। बोलते रहे हैं। इन लोगों को भी ख़ुश होना चाहिए।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस फैसले से इस मुद्दे पर कांग्रेस के पाले में गेंद चली गई है। अब बीजेपी को घेरना चाहिए कि आप पंजाब में कब माफ़ करने जा रहे हैं। पंजाब में कांग्रेस को कर्ज़ माफ़ी के वादे का लाभ मिला। ठीक है कि उसने छह महीने के भीतर लोन माफी का वादा किया था मगर उसे भी जल्दी फैसला लेकर दिखाना चाहिए। केंद्र के भरोसे बैठकर राजनीति करने से लाभ नहीं है। जिस तरह से यूपी ने अपने स्तर पर फैसला किया है, यूपी को केंद्र ने मदद नहीं दी है, उसी तरह से पंजाब को भी तुरंत फ़ैसला करना चाहिए। महाराष्ट्र में कांग्रेस और एन सी पी के प्रतिनिधि मर्सिडिज़ बस में बैठकर संघर्ष यात्रा कर रहे हैं। कर्ज़ माफ़ी की मांग कर रहे हैं। शिवसेना भी कर रही है। इसका मतलब है कि किसानों की कर्ज़ माफ़ी का मुद्दा अभी चल निकलने वाला है। किसानों को भी ज़ोर देकर माफ़ी के अभियान को आगे बढ़ाना चाहिए। यूपी सरकार के इस फ़ैसले से एक काम और हुआ है। किसानों के कर्ज़ माफ़ी की राजनीति केंद्र से राज्य की तरफ़ मुड़ गई है। पहले इसके लिए केंद्र की तरफ़ देखा जाता था, अब राज्य की तरफ़ देखा जाएगा। कुलमिलाकर किसानों का मुद्दा राजनीति के केंद्र में आ गया है। बिल्कुल कर्ज़ माफ़ी के अलावा और उससे आगे भी करना होगा। कुछ हो भी रहा है और बहुत कुछ नहीं भी हो रहा है। इसे लेकर सबको दबाव डालना चाहिए। सिर्फ कर्ज़ माफ़ी की आलोचना में सक्रियता दिखाकर आप किसान के हितैषी होने का दावा नहीं कर सकते हैं।

आप कह सकते हैं कि उत्तर प्रदेश से ज़्यादा महाराष्ट्र और तमिलनाडु के किसानों को कर्ज़ माफ़ी की ज़रूरत है। कायदे से वहां के किसानों के बारे में भी लगे हाथ फ़ैसला हो जाना चाहिए। इससे हमारी एक बड़ी आबादी ख़ुश रहेगी। 2016 में जयललिता की सरकार ने छोटे जोतदारों का 5700 करोड़ माफ़ किया था। अभी मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि सभी किसानों का कर्ज़ माफ़ होना चाहिए। अदालत भी देख रही है कि किसान इस वक्त संकट में हैं। उन्हें मदद की ज़रूरत है। 2012 में सत्ता में आते ही अखिलेश सरकार ने 1650 करोड़ की कर्ज़ माफ़ी की थी। फिर भूल गई। उसने यह मौका गंवा दिया। बिजनेस स्टैंडर्ड के अनुसार 2014 में तेलंगाना राष्ट्र समिति ने 17000 करोड़ का लोन माफ़ करने का वादा किया था मगर अभी तक 10,000 करोड़ ही जारी हुआ है। उसी साल चंद्रबाबू नायडू भी 1.5 लाख तक लोन माफ़ करने के वादे पर चुनाव जीते थे। वे केंद्र सरकार की तरफ़ देख रहे हैं और अखबार के अनुसार लगता नहीं कि अपने वादे को पूरा कर सके हैं। 36359 करोड़ की माफ़ी का एलान तो यूपी ने ही किया है। किसी भी राज्य सरकार ने अपने स्तर पर इतनी बड़ी माफ़ी नहीं की है। कुलमिलाकर किसानों की कर्ज़ माफ़ी अच्छी राजनीति है। ऐसे भी हर साल माफ नहीं होता है। मांग होती है तो लगता है कि हर साल माफ ही हो जाता है। किसानों के संकट के लंबे इतिहास में तीन चार उदाहरण ही कर्ज़ माफ़ी के मिलते हैं। मेरे हिसाब से ये बहुत कम हैं। किसानों के संकट के लिए वो कम ज़िम्मेदार है। सरकार और बाज़ार ज़िम्मेदार है। इसलिए इसकी भरपाई सरकार और बाज़ार की संस्थाओं को करनी चाहिए।