मोदी के भक्तिकाल में मीडिया ने भक्तों का प्रसाद हड़प लिया है: रवीश कुमार

कपड़ा व्यापारी कहता है दिल से, कपड़े से जी एस टी को हटाओ, दिल्ली वाले मोदी जी सुन लो, आया है दर पर कपड़ा व्यापारी। दिल्ली वाले मोदी जी सुन लो, आया है दर पर कपड़ा व्यापारी। पूरे भारत से आवाज़ आई, मर जायेंगे सब छोटे व्यापारी, जी एस टी से मुक्त कराओ, कहते हैं तुमसे कपड़ा व्यापारी। दर पर व्यापारी आया है। दर व्यापारी आया है। व्यापारी सारे आए हैं द्वारे, समझो न प्यारे मोदी हमारे…(यहां पर कोरस है)

शिरडी वाले साईं बाबा, आया है तेरे दर पर सवाली। इस लोकप्रिय भजन को किसने नहीं सुना होगा। सूरत के कपड़ा व्यापारियों ने अपने आंदोलन के लिए इसी भजन की पैरोडी तैयार की है, जिसका पहला हिस्सा आपने पढ़ा। पैरोडी नई बात नहीं है मगर आंदोलन ही पैरोडी नहीं है। गानों की पैरोडी होती है, आंदोलन में भी गानों की पैरौडी का इस्तमाल होता रहा है लेकिन आंदोलन जब आरती बन जाए तो इसका अलग से अध्ययन करना ही चाहिए। मीडिया भले कपड़ा व्यापारियों के आंदोलन को मोदी भक्ती के कारण जगह न दें लेकिन राजनीतिक विज्ञान के शोधकर्ताओं को वहां जाकर इस आंदोलन के नारों और गानों पर काम करना चाहिए। सूरत के कपड़ा व्यापारी प्रकाश जी डाकलिया ने बनाया है।

12 दिनों से चल रहा सूरत के कपड़ा व्यापारियों का आंदोलन सामान्य आंदोलन नहीं है। जब भी धरना प्रदर्शन का कार्यक्रम होता है, कई हज़ार लोग शांतिपूर्ण तरीके से जमा हो जाते हैं। मीडिया नहीं दिखाता तो खुद ही तस्वीर खींच कर वायरल करने लगते हैं। इन्हीं तस्वीरों को देखकर मोदी के राजनीतिक विरोधियों में उम्मीद जग जाती है कि गुजरात में मोदी का आधार दरक रहा है। जबकि ऐसा नहीं है। सूरत का कपड़ा आंदोलन मोदी विरोध का नहीं है। मोदी के प्रति समर्पण का आंदोलन है। सदा समर्पित रहने का आंदोलन है। इस आंदोलन में उग्रता तो है मगर अनुरोध की उग्रता है। विरोध की नहीं। जो आम तौर पर किसी भी आंदोलन का चरित्र होता है।

मोदी सरकार के आने के बाद कई आक्रामक आंदोलन हुए हैं। शायद ही किसी आंदोलन ने सरकार को पीछे हटने के लिए मजबूर किया हो। क्या सूरत का आरती आंदोलन सरकार पर दबाव बना पायेगा? कपड़ा व्यापारियों का आंदोलन हर लिहाज़ से ज़ोरदार है मगर असरदार नहीं लगता है। इसका तेवर विरोध का नहीं, अनुनय-विनय का है। गीतों में प्रधानमंत्री मोदी देवता की तरह प्रस्तुत हैं और वित्त मंत्री जेटली उनके दरबाद के दूत के रूप में। आंदोलनकारी भक्तिकाल की तरह कभी मोदी से जी विनती करते हैं तो कभी जेटली जी को मनाते हैं। मुर्दाबाद के नारे बिल्कुल नहीं हैं। मोदी के ख़िलाफ़ या उन्हें चुनौती देने वाले नारे भी नहीं लगे हैं। कहीं मोदी बाबा हैं तो कहीं मोदी प्यारे हैं। भाव यह है कि हम आप ही के भक्त हैं। हम पर कृपा बनाए रखिये। हमारी सुन लीजिए। हर ज़ोर ज़ुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा टाइप के नारों वालों आंदोलनों से काफी अलग है सूरत का आंदोलन।

कुछ व्यापारियों ने बताया कि वे मोदी के ख़िलाफ़ इसलिए नारे नहीं लगा रहे हैं क्योंकि उन्हें मोदी से डर भी लगता है। हो सकता है कि जब चुनाव होगा सारे व्यापारी बीजेपी को ही वोट करेंगे, तब भी जब सरकार उनकी मांग नहीं मानेगी क्योंकि उन्हें पता है कि चुनाव के बाद सेल्स टैक्स और आयकर विभाग के दारोगा उनकी क्या गत बना देंगे। यह तब है जब सरकार ने साफ कर दिया है कि वह कपड़ा व्यापार पर जी एस टी के अपने स्टैंड से पीछे नहीं हटेगी। इसलिए जो भी गुस्सा है वो स्थानीय सांसद के प्रति है। जिन्होंने बयान दिया था कि कपड़ा व्यापारियों के आंदोलन में बाहर के तत्व हैं। कोई व्यापारी नहीं हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली के ख़िलाफ़ हाय- हाय का नारा तो है मगर उसमें भी प्रेम भाव है।

भय के अलावा यह बात भी सही है कि कपड़ा व्यापारी मोदी को प्यार भी करते हैं। वे कई सालों से उनके प्रति समर्पित रहे हैं। उस प्रेम और भक्ति से विच्छेद करना इतना आसान नहीं हैं। जी एस टी की मार से कराह रहे हैं लेकिन इस दर्द को नहीं झेल सकेंगे कि उन्होंने ख़ुद से मोदी जी को अलग कर दिया। नेता जनता में समाहित होता है, यहां जनता ही नेता में समाहित है। हालांकि मैं किसी नेता के फैन बनने या उसमें लीन हो जाने को ख़तरनाक मानता रहा हूं लेकिन क्या यह सच नहीं है कि किसी भी नेता कि सपना होता है कि उसे लोग इसी तरह चाहें और इसमें मोदी सफल हैं। 12 दिनों से हज़ारों करोड़ों का कारोबार ठप्प कर सूरत के व्यापारियों में मोदी के प्रति समर्पण भाव की गहराई बताती है कि भारत की राजनीति और आंदोलनों को नए सिरे से समझना ही होगा।

धार्मिक भावना से लैस राजनीति और नेता में धार्मिक प्रवृत्ति जनता के बड़े समूह का चरित्र किस तरह से बदल देती है, सूरत का आंदोलन उसकी मिसाल पेश कर रहा है। कपड़ा व्यापारियों के आंदोलन में कई तरह के गाने चल रहे हैं। सभी में मोरी अरज सुन लीजौ मोदी जी के भाव हैं। शिरडी वाले पैरोडी में कपड़े के स्टाल तक पहुंचने की सभी सत्रह चरणों को गाकर समझाया गया है कि कैसे जी एस टी लगने से व्यापार तबाह हो जाएगा। पैरोडी आगे बढ़ते हुए जेटली पर पहुंचती है….

ओ मेरे जेटली देवा ,ज़रा तुम कान देना, तुम्हें हम आज बताते, हमारी व्यथा सुनाते। मल्टी प्रोसेसिंग का इतना झमेला, सत्रह चरणों में जी एस टी लगता, पल्ले हमारे कुछ नहीं पड़ता, जी एस टी को या तो ले जाओ, यार्न पे चाहे रेट बढ़ाओ,..

यह आंदोलन बता रहा है कि नागरिकता और नागरिक संगठनों के अधिकार की चेतना बदल गई है। व्यापारी इस गीत में साफ कर रहे हैं कि वे टैक्स देने से नहीं बचना चाहते हैं। वे मोदी विरोध में नहीं दिखना चाहते मगर इस दबाव में भी हैं कि वे राष्ट्रविरोधी भी नहीं दिखना चाहते। इसलिए पैरोडी के आख़िर में वे यह भी साफ करते हैं कि वे राष्ट्रविरोधी नहीं हैं। यह बात आम लोगों तक पहुंच गई है कि मोदी सरकार के ख़िलाफ़ विरोध का मतलब है राष्ट्र का विरोध। टीवी चैनलों ने इस काम कर ठीक से कर दिया है। पैरोडी में किस तरह राष्ट्रविरोधी न होने की सफाई दी जा रही है, आप पढ़ सकते हैं-

भारत की शान टेक्सटाइल, रहा पहचान टेक्सटाइल,बड़ा रोज़गार टेक्सटाइल, जी डी पी आधार टेक्सटाइल, इसे सब जानते हैं, लोहा मानते हैं, नहीं हम राष्ट्रविरोधी, प्रगति में नहीं अवरोधी, हमारी बात जानो, हमें न हल्का मानो, हमारी उलझन जानो, हमें न चोर मानो। व्यापारी सारे आए हैं द्वारे, समझो न प्यारे, मोदी हमारे, पूरे भारत से आवाज़ आई, मर जायेंगे सब छोटे व्यापारी। दिल्ली वाले मोदी बाबा, आया है दर पर, कपड़ा व्यापारी।

राष्ट्रविरोधी होने का आरोप वो ज़्यादा झेलता है जो अल्पसंख्यक होता है या जो उनके समर्थन में आगे आता है। यहां अल्पसंख्यक सिर्फ मुसलमान ही नहीं है। अल्पसंख्यक स्थायी टैग नहीं है। किसी भी समूह या व्यक्ति को डराने के लिए उसे अल्पसंख्यक के कोने में धकेल दिया जा रहा है। समय पर अलग अलग तबका अल्पसंख्क बनाया जाता रहता है। जो भी तबका अपनी मांगों को लेकर सरकार के विरोध में खड़ा होगा, उसे बहुसंख्यक के भीतर अल्पसंख्क बना दिया जाएगा। जैसे ही वो अपनी मांगों को लेकर सरकार के विरोध में उग्र होता है या लंबा आंदोलन चलाता है उसे राष्ट्रविरोधी, मोदी विरोधी कहने वालों के आक्रमण का सामाना करना पड़ता है। इनके दबाव के कारण आंदोलन बेअसर हो जाता है और मीडिया इधर-उधर देखने लगता है। नीट परीक्षा को लेकर आंदोलन करने वाले छात्रों की भी यही हालत हुई, जंतर मंतर पर सौ दिन का धरना देने वाले तमिल किसानों के साथ क्या हुआ, सबने देखा ही, लखनऊ में दोबारा इंटरव्यू शुरू कराने को लेकर धरना दे रहे छात्र लाठी खाकर ही घर लौटे।

एक और वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें एक बुजुर्ग व्यापारी बेहद अच्छी आवाज़ में गा रहे हैं। 1969 में एक फिल्म आई थी आंखें। इसका एक गाना काफी लोकप्रिय हुआ था। ग़ैरों पे करम, अपनों पर सितम, ऐ जाने वफ़ा ये ज़ुल्म न कर। लतामंगेशकर की आवाज़ में ये गाना माला सिन्हा पर फिल्माया गया था। सूरत में इसे मोदी जी के लिए गाया जा रहा है। वीडियो में कपड़ा व्यापारी जब पैरोडी गा रहे हैं तब उनके साथ खड़े लोगों की वाह-वाह की आवाज़ आ रही है। ऐसे लग रहा है भजन कीर्तन काल चल रहा है। गा कर सुना तो नहीं सकता मगर पैरोडी के बोल यहां पेश कर रहा हूं।

ग़ैरों पे करम, अपनों पे सितम, ओ प्यारे मोदी ये ज़ुल्म न कर, रहने दे अभी थोड़ा सा भरम। हम सबने तुझको वोट दिया, यूं हमको रूलाना ठीक नहीं। हम टैक्स देने को हैं तत्पर, पर चोर बनाना ठीक नहीं। पर चोर बनाना ठीक नहीं है। तुझको तेरी जेटली की कसम, ओ प्यारे मोदी ये ज़ुल्म न कर, ग़ैरों पे करम। तू जी एस टी लगा दे भले, पर आर सी एम का वार न कर, तू बैलेंसशीट ले ले भली, पर सैंतीसी रिटर्न की मार न कर, मर जायेंगे हम, लुट जायेंगे हम, ओ प्यारे मोदी ये ज़ुल्म न कर।

ऐसा ही एक ऑडियो क्लिप मिला है जिसे मारवाड़ी में गाया गया है। इस गाने में मोदी जी को मायावी के रूप में पेश किया गया है। उनसे कोई नाराज़ नहीं है। बस ईश्वर को जगा रहे हैं ताकि वे उनके दुख हर लें। शब्दों को सही सही पकड़ने में तक़लीफ़ आ रही थी मगर जितना ध्यान से हो सका , उसे भी आपके लिए पेश कर रहा हूं।

अरे मोदी थारी मायो रो, पायो कोई नी पार, जी एस टी लगावायो रे, मंदो हो ग्यो व्योपार। सूरत में रेलियां निकले, दिनी और रात, बेपारी सब दुखी वे ग्या जी एस टी के कारण। हां सगरा धंधा मंदा पड़िया, भाड़ा कि कण भरणा, कोई उपाय करो मोदी जी थोड़ी सांस दी दौ। मोदी थारी माया रो। पायो को नी पार।

व्हाट्स अप के ज़रिये कई स्लोगन मुझ तक पहुंचे हैं। अनशन कर प्राण दे देंगे, जी एस टी को नहीं सहेंगे। हमने तो बस एक ही ठाना, जी एस टी को हर हाल में हटाना। दो चार स्लोगन मिले हैं जिससे आंदोलन की आक्रामकता झलक रही है। एक स्लोगन में तानाशाही का प्रयोग तो हुआ है मगर टैक्स के लिए हुआ है। आमतौर पर ऐसे प्रदर्शनों में हर नेता को तानाशाह बोलने की परंपरा यहां नहीं दिखती है।

रैली नहीं ये आंधी है, मान जाओ वरना बरबादी है।
लोकतंत्र है प्राण हमारा, खुश रहे ये देश हमारा।
जी एस टी टैक्स नहीं तानाशाही है।
वित्त मंत्री जी मान भी जाओ, कपड़ा उद्योग को मत रूलाओ।

आंदोलन के लिए ज़िंदाबाद का आडियो क्लिप बना है। उसमें वित्त मंत्री को लेकर हाय हाय तो है मगर यहां भी तेवर का घेवर( हरियाणवी मिठाई) बना दिया गया है। एक आदमी ज़ोर ज़ोर से नारे लगा रहा है।

व्यापारी एकता ज़िंदाबाद, ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद। कपड़ा व्यापार बचाना है, जीएस टी को हटाना है। जी एस टी इक तानाशाही है, हर व्यापार की है तबाही, जी एस टी का अत्याचार, क्यों सहे कपड़ा व्यारा। अरुण जेटली हाय हाय। हाय हाय। व्यापारी एकता ज़िंदाबाद। जिंदाबाद।

कपड़ा व्यापारी आंदोलनरत हैं। आंदोलन में आरती कर रहे हैं। उनके इरादे कहीं से कमज़ोर नहीं हैं। उस भक्त के समान है जो अपने ईश्वर को हर हाल में मना लेने की कोशिश कर लेना चाहता है। नहीं भी माने तो उससे नाराज़ नहीं होना है। भक्त ईश्वर से नाराज़ नहीं होता है। ईश्वर भले ही भक्त से मुंह मोड़ लें। भीतर भीतर मीडिया के बिक जाने को लेकर गुस्सा है। लोग समझ रहे हैं कि मीडिया भी उनसे बड़ा भक्त निकल गया है। पुजारी का काम था संदेश पहुंचाना यहां तो पुजारी ने मंदिर का दरवाज़ा ही बंद कर दिया है और सारा प्रसाद आशीर्वाद ख़ुद हड़प लिया है। मोदी के भक्तिकाल में मीडिया ने भक्तों का प्रसाद हड़प लिया है। मीडिया को लेकर कई मेसेज मुझे मिले जिसमें उसके बिके और भयभीत होने का ज़िक्र आया है। व्यापारियों की यह बात सही है, उनके इस शानदार आरती आंदोलन को मीडिया क्यों नहीं कवर कर रहा है?

सूरत का कपड़ा आंदोलन अभी जारी है। आंदोलन के संयोजन ताराचंद जी ने व्हाट्स मेसेज के ज़रिये सबको संदेश भेजा है कि अभी नहीं तो कभी नहीं। इसमें बताए गए कार्यक्रमों के अनुसार 14 जुलाई से 18 जुलाई के बीच सूरत के जे जे मार्केट के सामने भोजन प्रसादी होगा। इसमें व्यापारियों और कर्मचारियों के लिए भोजन की व्यवस्था होगी। हड़ताल के कारण मज़दूरों की कमाई बंद हो जाती है। उन्हें खाने पीने की दिक्कत न हो इसका इंतज़ाम किया गया है। मुझे नहीं लगता कि व्यापारियों के आंदोलन ने अपने मज़ूदरों का इतना ख़्याल रखा हो। ताराचंद जी का शुक्रिया भोजन प्रसादी कार्यक्रम के लिए। 15 जुलाई को व्यापारी चोक बाज़ार और रिंग रोड के 20,000 व्यापारी रैली करेंगे। संघर्ष समिति मुंबई में महासम्मेलन करने जा रही है। मुंबई के कालबादेवी में 4000 कपड़ा व्यापारी जमा होने वाले हैं। 17 जुलाई को 35000 बाइकों के साथ रैली निकलाने की योजना है।

आंदोलन के कई स्वरूप होते हैं। आंदोलनकर्मी अपने आंदोलन को व्यापकता प्रदान करने के लिए कई तरह के रचनात्मक कार्य करते ही हैं। करना भी चाहिए। लेकिन सूरत के कपड़ा व्यापारियों का यह आंदोलन काफी रोचक लग रहा है। गांधीगीरी की तरह इसमें आरतीगीरी का भाव जान पड़ता है। मोदी जी और जेटली जी भी इनके नारों को सुनकर हंसते ही होंगे। नाराज़गी में भी इतना प्यार किस नेता को मिला है। क्या सूरत के व्यापारियों को इस प्यार का जवाब मिलेगा या फिर आयकर विभाग ज़िंदाबाद?तुलसीदास जी ने ठीक ही लिखा है- भय बिन होय न प्रीत गुसाईं।