मेडिकल पढ़ने जाएं तो वहां की भाषा से हताश होकर खुदकुशी न करें, इसे पढ़ें: रवीश कुमार

भारत का कोचिंग साहित्य एक विशाल भंडार है। उपेक्षित भी है। किसी भी अख़बार में कोचिंग की किताबों का अच्छा समीक्षक नहीं है। जैसे भारत में नाव और औद्योगिक वाहनों का कोई पत्रकार ही नहीं है। कोचिंग साहित्य को आम तौर पर कुंजी साहित्य मान कर दरकिनार कर दिया जाता है। आज सुपर 30 के आनंद कुमार नायक क्यों हैं? उनकी सफलता हमारे औपचारिक शिक्षा व्यवस्था की नाकामी की कहानी भी है। आनंद कुमार जैसे शिक्षक क्या सिर्फ ट्रिक बेचते होंगे, मुझे नहीं लगता। वो ट्रिक से पहले विषय को कैसे पढ़ा जाए, क्यों पढ़ा जाए इसकी बुनियादी समझ रखते होंगे तभी उनके छात्र लगातार सफल होते जा रहे हैं। मैं कोचिंग शिक्षा का घोर आलोचक रहा हूं मगर यह सच्चाई है कि लाखों छात्र इसी के सहारे जीवन में सफलता पाते हैं। मैं जानना चाहता हूं कि इनके भीतर किस तरह का साहित्य मौजूद है। कैसे इनके ज़रिये कोई छात्र विषय की बुनियादी समझ हासिल कर लेता है और आई आई टी से लेकर मेडिकल पास कर जाता है,जिन परीक्षाओं के नाम से ही मुझे चक्कर आ जाता है।

भारत में अच्छे शिक्षकों की कमी नहीं है मगर अफसोस कि ज़्यादातर अच्छे शिक्षक कोचिंग में ही पाये जाते हैं क्योंकि मां बाप को अच्छे स्कूल से ज़्यादा अच्छी कोचिंग में भरोसा होता है। इसके लिए मैंने मां बाप को किराये पर घर लेकर दूसरे शहर में कोचिंग होने तक रूकते देखा है। करोलबाग से लेकर कोटा जाकर कभी डाक्यूमेंट्री बनाई थी। पर बाद में इसके भीतर की दुनिया को समझने का मौका नहीं मिला। जब से पत्रकारिता का चरित्र भांड हुआ है और दर्शकों के भीतर से लंपट निकल आए हैं कि ये दिखाइये,वो दिखाइये, तब से हम जानकारी के एक सीमित कुएं में बंद होते जा रहे हैं। खुद भी डुबा रहे हैं और दर्शक तो डूबा हुआ है ही। क्या विषयों को सबसे सरल तरीके से पेश करने का अचूक फार्मूला कोचिंग वाले मास्टरों के पास ही है? बिल्कुल ग़लत बात है। अस्सी फीसदी से ज़्यादा छात्र कोचिंग के नाम पर लूटे जाते हैं। यहां भी सफलता का वही प्रतिशत है जो स्कूलों में है। वो इसलिए भी है कि अवसर ही सीमित हैं कि सफलता का प्रतिशत कम होगा ही।

मैं ख़ुद एक कमज़ोर छात्र रहा हूं इसलिए किसी किताब या शिक्षक का मूल्यांकन इसी बिंदु से शुरू करता हूं। क्या ये शिक्षक किसी भोंदे बच्चे में आत्मविश्वास पैदा करने लायक है? अगर नहीं तो फिर वो मेरे भीतर बहुत कम दिलचस्पी जगाता है। कुछ साल पहले एम्स का एक छात्र मिलने आया था। उसके दोस्त भी थे। गोरखपुर का राजीव रंजन। इनके सर पर जुनून सवार था कि कैसे कोचिंग में ठगे जा रहे ग़रीब छात्रों को बचाया जाए और उनके लिए सस्ती और सबसे अच्छी किताब लिखकर सफलता के फार्मूले के रहस्य का भांडाफोड़ कर दिया जाए। राजीव रंजन पर इतना जुनून सवार था और अब भी है कि बीच बीच में रोकना पड़ता था कि कंट्रोल करो ज़रा। राजीव अब मेरा दोस्त है। डाक्टरी पढ़ने के साथ साथ राजीव ने हिन्दी माध्यम के छात्रों की तकलीफ़ को ग़ौर से समझा है। ख़ुद भी साधारण परिवेश से आया है तो उसके भीतर हूक है कि कैसे इस क्षेत्र के भीतर गणित, भौतिकी, रसायन और अंग्रेज़ी के भूत को खदेड़ दिया जाए। इसे गाइड बुक समझने की चूक मत कीजियेगा। यह छात्रों के साथ साथ शिक्षकों के लिए भी ट्रेनिंग मटिरीयल है।

राजीव रंजन जब रसायनशास्त्र पर किताब लिखकर लाया तो उसके सामने समस्या थी कि क्या कोई प्रकाशक छात्रों तक पहुंचा देगा या सिर्फ मुनाफ़ा ही कमाने लगेगा? राजीव को प्रकाशक तो मिल गया है लेकिन जब तक वो रायल्टी की बिल मुझे नहीं दिखायेगा, मेरे कुछ सवाल अनुत्तरित रह जायेंगे। ख़ैर। वैसे उसका यही मानना था कि किताब हिन्दी वालों के पास पहुंच जाए न कि बिजनेस का शिकार हो जाए। जैसा कि मैंने कहा कि मैं स्कूल में भोंदू से एक डिग्री ऊपर का रट्टा मार छात्र था इसलिए मुझे राजीव के जुनून में दिलचस्पी हो गई। किताब तो कई साल से रखी है मेरे पास, लेकिन आज इसकी समीक्षा लिखने का वादा पूरा कर रहा हूं। मैं राजीव की किताब की तारीफ में हिन्दी में लिखे रसायन शास्त्र की किताबों को कमतर नहीं बता सकता क्योंकि इसकी मुझमे योग्यता नहीं है, फिर भी कह सकता हूं कि राजीव वाली किताब श्रेष्ठ और सरल किताबों में से एक तो है ही। इस किताब को तीन लोगों ने मिलकर लिखा है, डा राजीव रंजन गुप्ता, मयूर राजदेव,अंकिता वर्मा ने लिखा है। मयूर राजदेव IIT DELHI के हैं और डॉ राजीव रंजन AIIMS के छात्र हैं। दुनिया को ऐसे पागलों की ज़रूरत है वर्ना हिन्दी का काम हो नहीं पाएगा।

एम्स का यह डाक्टर जितना पेशेवर सेवा को लेकर ईमानदार है उतना ही हिन्दी के कमज़ोर छात्रों को लेकर भी है। इस किताब को हिन्दी और अंग्रेज़ी भाषा में लिखा गया है। राजीव ने पूरी तरह हिन्दी बेनाने के नाम पर किताब को संस्कृत का श्लोक नहीं बनाया है, बल्कि अंग्रेज़ी के शब्दों का आसान तरीके से इस्तमाल कर कमज़ोर छात्रों को सहज बनाने का प्रयास किया है ताकि वह जब मेडिकल पढ़ने जाए तो वहां की भाषा से हताश न हो और खुदकुशी न करे। संस्कृत का श्लोक कहने का मतलब यह है कि जब तक इन विषयों की पढ़ाई हिन्दी में सहजता और श्रेष्ठता से उपलब्ध न हो, भाषा को लेकर फर्ज़ी गौरव गान में फंस कर जीवन बर्बाद करने से कोई लाभ नहीं। बात है साफ। आगे जिसे हंगामा करना है करता रहे। नेता जब हिन्दी भाषा के गौरव की बात करे, वो सिर्फ वोट का लोभी है और पीढ़ियों को बर्बाद करने का स्वपनदृश्टा। क्योंकि वह सिर्फ बात ही करता रहेगा, या फिर हिन्दी को लेकर उत्तर दक्खिन में तनाव पैदा करवाएगा। यह बात लिखकर पर्स में रख लीजिए। ऐसे चिरकुट नेताओ से बचकर जहां जिस भाषा में ज्ञान सामग्री उपलब्ध है, उसे हासिल कीजिए और जीवन को बर्बाद होने से बचाइये।

दीपक और दानियाल अंसारी ने अपने चित्रों से रसायन शास्त्र को रंगीन और रसपूर्ण बना दिया है। किताब में घरों में मौजूद चीज़ों की तस्वीर है ताकि छात्र केमिस्ट्री को आस-पास देख सके। राजीव ने बताया है कि केमिस्ट्रों हम क्यों पढ़ते हैं, उसके अलग अलग चैप्टर के क्या मायने हैं, जब किसी केमिकल रिएक्शन को कंडक्ट करते हैं तो क्या जानने का प्रयास करते हैं, इन बातों से किताब शरू हो जाती है। पहले ही आपको जानने की दुनिया में ले जाती है। हर बात के बात एक मेरे मुताबिक कॉलम है। जिसमें लेखक दुबारा से सारांश पेश करता है कि अभी तक क्या समझते और क्या समझना चाहिए था। यदि किसी केमिकल रिएक्शन के लिए Gibb’s fee energy change calculate कर लिया जाए तो उसकी value की मदद से हम यह अनुमान लगा सकते हं कि उस chemical reaction का होना possible है या नहीं। ये इस किताब की भाषा का सैंपल है। आप कमज़ोर छात्रों के हिसाब से सोचिये। चित्रों की मदद से न सिर्फ वह हिन्दी में रसायन शास्त्र के प्रति सहज हो रहा है बल्कि अंग्रेज़ी के शब्दों से भी दोस्ती होती जा रही है। अगर इसी बात को पूरी तरह अंग्रेज़ी में लिखा जाता है तो भोंदू छात्र समझ नहीं पाता।

मेरे मुताबिक में राजीव लिखते हैं कि ” अब एक बार फिर से आपके मन में यह प्रश्न होगा कि आखिर ऐसे reactions की study हम क्यों करते हैं? ACTUALLY यदि हमें किसी REACTON के होने का RATE और उसे प्रभावित करने वाले FACTORS के बारे में जानकारी प्राप्त हो जाए तो हम लोग किसी भी REACTION के RAE को अपने अनुसार FAST या SLOW कर सकते हैं। इस CHAPTER में हम लोग पढ़ेंगे कि किसी REACTION के RATE को CONCENTRATION, TEMPERATURE और CATALYST जैसे FACTORS भी प्रभावित करते हैं। आपको इस चैप्टर में इन्हीं तीन KEY POINTS को अपने ध्यान में रखते हुए समझने का प्रयास करना है। अब आपके सामने एक प्रश्न अभी भी यह होगा कि आखिर किसी REACTION के RATE को जानकर उसे REGULATE करना इतना आवश्यक क्यों है? यदि हम इसे समध लेंगे, तो किसी भी REACTION के होने का EXACT MECHANISM क्या है? इसका भी अनुमान लगा सकते हैं। ”

इस तरह से यह किताब आपके बात करती है। राजीव ने छात्रों के हर सवाल की कल्पना की है और उसे पहले ही सरलता से रख दिया है। हिन्दी माध्यम का कमज़ोर छात्र इससे गुज़रते हुए समझ लेगा कि केमिस्ट्री पढ़ ही क्यों रहा है। फिर उसे रसायन शास्त्र की तस्वीर दिखने लगेगी और वह दोस्ती करने लगता है। यह किताब रसायन शास्त्र के शिक्षकों की दहशत को कम कर देती है। छात्र इसे पढ़कर खुद बहुत कुछ सीख सकता है। हिन्दी माध्यम के छात्रों के लिए यह बहुत अच्छी किताब है। इसे पढ़ने के बाद वो कोचिंग में भी जाएगा तो बेहतर करेगा और राजीव का दावा है कि इसे जो अच्छी तरह से पढ़ लेगा उसे कोचिंग में जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। डा राजीव रंजन यू ट्यूब पर मेडिकल पढ़ रहे छात्रों के लिए भी यही काम करते हैं। सरल भाषा में मेडिकल के कोर्स को समझाते रहते हैं। रसायन शास्त्र की यह किताब दो वोल्यूम में है। विद्या प्रकाशन ने छापी है।

नोट:इसी के साथ मैं भारत का पहला कोचिंग साहित्य समीक्षक भी बन गया।