‘यहाँ जितने लोग आतंकवाद से नहीं मारे जाते, उससे कई गुना लोग प्यार करने के कारण मार दिये जाते हैं’

मेरे प्यारे बेकार और नकारे युवाओं,

तुम प्यार मत करना। प्यार करने का मन हो तो मेरा लप्रेक पढ़ लेना। गाने सुन लेना और नए फ़ैशन की हेयर स्टाइल बनाकर प्रेमिका या प्रेमी की कल्पना कर लेना। इससे ज़्यादा कदम बढ़ाया तो मार दिये जाओगे। कोई हत्या कर देगा या आत्महत्या के लिए मजबूर कर देगा। जैसे तुम दूसरों को प्रेम के कारण मारने पर चुप रहते हो, पार्कों से उठाकर जोड़ों के जुतियाये जाने पर चुप रहते हो वैसे ही तुम्हारे मार देने पर बाकी लोग भी चुप रहेंगे। कई बार सोचता हूँ कि भारत में फिल्म दर फिल्म इश्क को लेकर ही क्यों बनती है? क्यों इश्क़ को लेकर इतने गाने लिखे जाते हैं, सुने जाते हैं। इसका जवाब यही है कि यहाँ प्रेम करने की जगह सिर्फ सिनेमा है और उसके गाने हैं। समाज में प्रेम करने की कोई जगह नहीं है।

आज और इससे पहले के दौर के युवा चाहे जितनी जिंस पहन लें, उनके भीतर वही बुज़दिल जवानी है जो समाज को बेहतर करने की लड़ाई छोड़ कर भाग जाती है। बुज़दिली तुम्हारी जवानी को विरासत में मिली है। तुम भगत सिंह के पोस्टर ही लगा सकते हो, ख़ुद को या समाज को चुनौती नहीं दे सकते। तुम न गांधी के लायक हो न भगत सिंह के। इसे मान लेने में कोई हर्ज़ नहीं है। बेहतर है कि तुमसे उम्मीद पालने की बजाए भीतर तक खुरच कर देखा जाए। यह जानना ज़रूरी है कि दोस्ती करने, दोस्त के साथ कहीं एकांत में बैठकर बातें करने,प्यार करने और अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने के मामले में तुम्हारी क्या राय है। मुझे शक था कि तुम ऐसे ही हो मगर पता नहीं क्यों लगा कि मॉल में चुपके चुपके घूमते समय, लड़की को थर्ड क्लास अंग्रेज़ी से इम्प्रेश करते समय बदल गए होगे। एंटी रोमियो दल की आलोचकों को इसके समर्थकों का भी पता करना चाहिए था। इसके समर्थन में वही युवा आयेंगे जो अपनी कॉपी पर आई लव यू लिखकर मिटा देते हैं। दीवार पर सुनीता अनिता लिखकर भाग आते हैं। अपने प्रेमी को राज कहने वाली लड़कियाँ प्रेम का राज़ दफ़न कर देती है। तभी एंटी रोमियो दल की आलोचनाओं ने दम तोड़ दिया। बल्कि तुम युवा चुप नहीं थे। तुम बोल रहे थे कि इसका समर्थन करते हो। आलोचकों ने तुम्हारी चुप्पी की आवाज़ सुनी नहीं।

काश कि तुम लाखों की संख्या में एंटी रोमियो दल के समर्थन में सड़कों पर निकलते! विरोध की उम्मीद करने वाले तुम्हें नहीं जानते कि तुम समर्थक हो। मैं यह सब लिखने में समय बर्बाद नहीं करना चाहता कि छेड़खानी जैसी भयंकर सामाजिक बीमारी का हल एंटी रोमियो दल नहीं है। न उतनी पुलिस है न ही पुलिस का यह काम है। मुझे यह मानने में कोई दिक्कत नहीं कि भारत का युवा एंटी रोमियो जैसी अवधारणा का घोर समर्थक है। समाज भी है। वर्ना लोग इसके ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर आते। जैसे राष्ट्रपति ट्रंप ने महिलाओं के बारे में अभद्र टिप्पणी की तो लाखों महिलाएँ वाशिंगटन पहुँच गईं। वहाँ जमकर राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ नारे लगाए। भारत में कोई घर से नहीं निकलता है। क्योंकि भारत का समाज लड़कियों पर नियंत्रण के प्रोजेक्ट का भीतर ही भीतर समर्थन करता है।

मुझे पता है भारत का युवा किसी भी परिवार की फैक्ट्री में पलेगा वो निकलेगा आज्ञाकारी बनकर ही।
फैक्ट्री वर्कर की तरह असेंबली लाइन में खड़ा होकर वो अपने माँ बाप की फ़र्ज़ी सेवा का ढोंग करने के संस्कार में दीक्षित होता रहता है। दुनिया में आज्ञाकारी पुत्र या पुत्री बनाने का सामाजिक और राजनीतिक प्रोजेक्ट कहीं और नहीं चल रहा होगा। इस आज्ञाकारी उत्पाद की पहल शर्त है माँ बाप की मर्ज़ी के बग़ैर प्यार नहीं करना। शादी नहीं करना। हमीमून की तस्वीर अपलोड करने से पहले जमकर दहेज लेना। लूटने की ट्रेनिंग घर से ही लेना। ये तुम्हारी हक़ीक़त है दोस्तों। दो चार युवाओं के अलग टाइप हो जाने से भारत की जवानी की आज्ञाकारिता बदल नहीं जाती है। मान लेना चाहिए कि भारत के युवा हमेशा से प्रेम के ख़िलाफ़ रहे हैं। प्रेम का विरोध करना एक तरह से पारिवारिक संस्कार और विरासत का सम्मान करना है!

तुम्हारे अंदर अच्छी बात यही है कि तुम चार सौ का टिकट ख़रीद कर सिनेमा के पर्दे का प्यार सराहते हो मगर जीवन में प्रेम के विरोधी हो। तुममें से ज़्यादा आधे रास्ते के प्रेमी हैं। बीच रास्ते से भाग जाने वाले। तुम बेहतर विकल्प या न जमने पर नहीं भागते हो। समाज और परिवार के डर से भागते हो। तुम्हें ये बातें फेसबुक से लेकर ट्वीटर पर कबूल करनी चाहिए। इसमें क्या ग़लत है। ग़लत तो तब है जब तुम ढोंग करते हो। स्माइली भेजकर दिल बहलाते हो। किसी को सर्वे करना चाहिए कि कितने प्रतिशत युवाओं ने अपने प्यार का गला ख़ुद घोंटा है और कितने प्रतिशत के प्यार का गला उनके परिवार ने घोंट दिया है।

आज तुम टाइम्स ऑफ़ इंडिया की पहली ख़बर पढ़ना। तुम जानते हो मगर फिर से जानकर अच्छा लगेगा कि भारत का समाज प्रेम की हत्या करने वाला समाज है। यहाँ जितने लोग आतंकवाद से नहीं मारे जाते, उससे कई गुना लोग प्यार करने के कारण मार दिये जाते हैं। हम सब वर्षों से ऐसी ख़बरें पढ़ते रहे हैं। हम सब वर्षों से चुप रहे हैं क्योंकि सब इस सामाजिक हत्या के समर्थक रहे हैं। ये हमारे समाज का घृणित और क्रूर चेहरा नहीं है। हमारे समाज में सौम्यता की परिभाषा ही हत्या से शुरू होती है। हत्या के समर्थन से शुरू होती है।

अख़बार ने लिखा है कि भारत में प्यार आतंकवाद से छह गुना ज़्यादा लोगों का मार देता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो हर साल ऐसे आँकड़े निकालता है। मगर हमारा ध्यान इसकी बारीकियों पर नहीं जाता। अतुल ठाकुर की रिपोर्ट पढ़िये तो पता चलेगा कि 2001 से 2015 के बीच 38,585 लोग प्यार के कारण हत्या और आत्म हत्या के शिकार हुए हैं। प्रेम ने इतने लोगों को मारा है। 79,189 आत्महत्याओं का संबंध प्यार से रहा है। औरत को अगवा कर लिये जाने का ज़िक्र ढाई लाख से अधिक अपहरण के मामलों में आया। ज़ाहिर है भागे हुए जोड़ों के ख़िलाफ़ अपहरण का मामला दर्ज कर दिया जाता है।

सरकारी रिकार्ड में प्रेम का भी वर्गीकरण है। प्रेम संबंध, अवैध संबंध, ऑनर किलिंग,अतिरिक्त प्रेम संबंध, संदिग्ध अवैध संबंध, अवैध गर्भधारण। इन वजहों से आत्महत्या, हत्या होती है।

तो इस तरह से हमारे उदार और सहिष्णु भारत में हर रोज़ प्रेम के कारण सात हत्याएँ, चौदह आत्महत्याएँ और सैंतालीस अपहरण के मामले दर्ज होते हैं। सबसे अधिक प्रेमी आँध्र प्रदेश, यूपी, महाराष्ट्र, तमिलनाडू और मध्य प्रदेश में मारे जाते हैं। पिछले पंद्रह साल में इन राज्यों में तीन हज़ार प्रेमी मारे गए हैं।

बस इतना ही कहने के लिए ये बेकार सा पत्र लिखा है। मेरे प्यारे आज्ञाकारी प्रोडक्ट तुम चुप ही रहना। बल्कि मुझे यक़ीन है कि एंटी रोमियो दस्ता अगर तुम लोगों से बनाया जाए तो तुम पुलिस से भी बेहतर रिज़ल्ट दोगे। हफ्ते भर के भीतर प्रेम का नामो निशान मिटा दोगे। छेड़खानी को इतिहास बना दोगे।
पत्र का लेखक तुम्हारी तरह अज्ञात रहना चाहता है।