केरल की राजनीतिक हिंसा सीपीएम और संघ-बीजेपी दोनों के लिए शर्मनाक है। दोनों पक्ष अलग अलग तथ्यों और दावों को पेश कर ख़ुद को पीड़ित बताते रहते हैं जबकि तमाम लेखों को पढ़कर लगता है कि हर हत्या में दोनों ही पक्ष के वर्कर आरोपी हैं, सज़ा भी हुई है और दोनों पक्षों के लोग मारे गए हैं। दिल्ली की मीडिया में केरल की हिंसा को लेकर एकतरफा छवि पेश की जाती है। इसका मतलब यह नहीं कि सरकार में होने के कारण सीपीएम नैतिक ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाती है। केरल के कन्नूर की राजनीतिक हिंसा में दोनों बराबर हिस्सेदार हैं, ज़िम्मेदार हैं, पीड़ित हैं और इसका राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास करते हैं।
मैं जो भी लिख रहा हूं वो THEWIRE.IN, SCROLL.IN, DAILYO.IN, FIRSTPOST.COM, HINDU, TIMES OF INDIA, HINDUSTAN TIMES में छपे कुछ लेख का सार है। बी आर पी भास्कर, राजीव रामचंद्रण, यूनिवर्सिटी आफ केप टाउन में पढ़ाने और केरल की हिंसा पर काम करने वाली रुचि चतुर्वेदी, दुनिया भर में रहने वाले मलयाली लोगों के समूह के द्वारा लिखे लेख को शामिल किया है।
कन्नूर में 1960 के दशक में हिंसा की शुरूआत भारतीय जनसंघ के कार्यकर्ता रामकृष्णन की हत्या से होती है। बदले में कुछ समय बाद सीपीएम कार्यकर्ता की हत्या होती है। तब से वहां यही चल रहा है। मीडिया में कन्नूर की राजनीतिक हिंसा में मारे गए दोनों पक्षों की संख्या को लेकर बहुत अंतर नहीं है। ज़्यादातर मानते हैं कि अभी तक वहां 300 से अधिक लोगों की हत्या हो चुकी है। एक आंकड़े के अनुसार 210 लोग मारे गए हैं।
वायर पर 15 अक्तूबर 2016 का एक लेख पढ़ सकते हैं। आपको लगेगा कि संघ बीजेपी और सीपीएम के लोग एक दूसरे के दफ्तर के सामने ही घात लगाकर बैठे रहते हैं ताकि एक दूसरे को मार सकें। अतीत में केरल पुलिस ने बीजेपी संघ और सीपीएम कार्यकर्ताओं को राजनीतिक हिंसा के मामले में सज़ा दिलाने में सफलता हासिल की है।
13 अक्बूतर 2016 को बीजेपी ने केरल बंद का आह्वान किया था। 19 साल के बीजेपी कार्यकर्ता रेमिथ की हत्या हो गई थी। आरोप सीपीएम पर लगा। 19 मई को सीपीएम की विजय जुलूस में बम फेंक दिया गया। सीपीएम समर्थक सी रविंद्रण की हत्या हो गई। आरोप संघ बीजेपी पर लगा।
1 जुलाई 2016, सीपीएम युवा छात्र संघठन डेमोक्रेटिक यूथ फडरेशन आफ इंडिया के एक लोकप्रिय नेता की हत्या उनके घर में ही कर दी गई। बीबी बच्चों के सामने। आरोप बीजेपी पर लगा। उसके कुछ ही देर बाद भारतीय मज़दूर संघ के वर्कर और आटो रिक्शा चालक सी के रामचंद्रण पर बम फेंका जाता है, चाकू से गोद कर हत्या कर दी जाती है।
20 अगस्त 2016, बीजेपी कार्यकर्ता दीक्षित की बम मार कर हत्या। पुलिस के अनुसार दीक्षिथ बम बना रहा था। संघ बीजेपी के नेता वलसन थिल्लनेकीर ने टीवी चर्चा में कहा था कि जब राज्य फेल हो जाए तो अपने बचाव में बम बनाने पड़ते हैं। 20 सितंबर को थिल्लेनकेरी में बीजेपी वर्कर 26 साल के विनेश की हत्या हो जाती है। इस हत्या के थोड़ी देर बाद सीपीएम युवा छात्र संगठन के कार्यकर्ता जिजेश पर बम से हमला होता है। जिजेश पर स्थानीय संघ नेता की हत्या का आरोप था।
10 अक्तूबर को पिदुविलाई के सीपीएम नेता के मोहनन की हत्या होती है। 24 घंटे के भीतर 19 साल के बीजेपी वर्कर रीमिथ की हत्या हो जाती है। इसी हत्या के विरोध में बीजेपी राज्यव्यापी बंद का आह्वान करती है।
केरल की हिंसा की कोई भी ख़बर देखिये। एक की हत्या का बदला लेने में दूसरा देरी नहीं करता है। कोई भी पक्ष कानून व्यवस्था में भरोसा नहीं करता है। 11 और 12 जुलाई 2016 को कन्नूर में बैक टू बैक दो हत्याएं होती हैं।
पहले सी पी एम नेता सी वी धनराज की हत्या होती है। फिर बीजेपी कार्यकर्ता सी के रामचंद्रण की हत्या होती है।
एक साल बीतने से पहले 12 मई को धनराज की हत्या का आरोपी बीजू मार दिया जाता है। 11 जुलाई को धनराज की स्मृति सभा में जा रहे नौ सीपीएम कार्यकर्ताओं पर बम से हमला होता है। थोड़ी देर बाद सीपीएम कार्यकर्ता एक संघ कार्यालय फूंक देते हैं। इस घटना में 20 घर भी जला दिये गए। शायद दोनों पक्षों के।
इस हिंसा को लेकर दिल्ली और केरल की मीडिया में खूब प्रोपेगैंडा हो रहा है। बीजेपी संघ के लोग अपने कार्यकर्ताओं की हत्या की बात तो करते हैं मगर उनके कार्यकर्ता सीपीएम के जिन नेताओं की हत्या में आरोपी हैं, उनकी बात नहीं करते हैं। दिल्ली में एक प्रेस कांफ्रेंस में विश्व हिन्दू परिषद के महासचिव सुरेंद्र जैन ने दावा किया कि पिछले पचास साल में सीपीएम ने संघ बीजेपी के 300 कार्यकर्ताओं को मारा है। जिनमें आधे दलित हैं।
वायर पर केरल के पत्रकार बी आर पी भास्कर ने इसे चुनौती दी है। भास्कर का कहना है कि कन्नूर में पिछले पचास साल की राजनीतिक हिंसा में 300 लोग तो मारे गए हैं मगर सभी बीजेपी संघ के नहीं हैं और सभी दलित नहीं हैं।
केरल की हिंसा में मारने वाले और मारे जाने वाले ज़्यादातर एक ही जाति से आते हैं। पिछड़ी जाति थिय्या के नौजवान इस हिंसा की चपेट में हैं। थिय्या ग़रीब जाति है। रुचि चतुर्वेदी ने लिखा है कि कन्नूर में दोनों ही गुट के लोग इन युवाओं का सहारा लेते हैं। हिंसा में मारे गए या शामिल युवाओं में 70 फीसदी बेरोज़गार थे। दोनों तरफ से मारे गए लोगों में 80 फीसदी हिन्दू हैं। ये युवा अपनी पहचान और ताकत हासिल करने के लिए दोनों तरफ की प्रतिस्पर्धा में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं ताकि ताकत के ज़रिये उनके प्रभुत्व का विस्तार हो सके।
रुचि ने एक किताब पढ़ने की सलाह दी है। T. Sasidharan की किताब Idathupakshavum Kannur Rashtreeyavum (The Left and Politics of Kannur) हाल में आई है, जो इसके सामाजशास्त्रीय पहलुओं को समझने में मदद करती है।
रुचि चतुर्वेदी ने लिखा है कि 1983 से सितंबर 2009 के बीच कन्नूर में 91 लोग मारे गए। 31 में संघ बीजेपी के मारे गए। आरोप सीपीएम पर लगा। 33 में सीपीएम के लोग मारे गए, आरोप संघ बीजेपी पर लगा। 14 अन्य मामलों में कांग्रेस के कार्यकर्ता भी मारे गए। आरोप सीपीएम पर लगा। बीजेपी और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने भी एक दूसरे को मारा है। इंडियन मुस्लिम लीग और सीपीएम के कार्यकर्ताओं ने भी एक दूसरे को मारा है।
केरल पुलिस के अनुसार 2000 से 2016 के बीच कन्नूर में 69 राजनीतिक हत्याएं हुई हैं। 31 संघ परिवार के मारे गए हैं। 30 सी पी एम के। आठ में से पांच इंडियन मुस्लिम लीग के हैं, 3 नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट के हैं।
मीन अवियल, Meen Aviyal, दुनिया भर में फैले मलयाली लोगों का एक समूह है। इसमें हर दल के लोग हैं। मलयाली जीवन शैली के प्रति एकजुट रहते हैं। 3 फरवरी 2017 dailyo.in में इन्होंने लिखा और मिन्हाज़ मर्चेंट के कन्नूर के बारे में फैलाए गए प्रोपेगैंडा को चुनौती दी है। बेहतर है कि आप दोनों लेख खुद पढ़ें। अपने लेख में मर्चेंट ने लिखा था कि कन्नूर में 38 फीसदी मुस्लिम आबादी है। जबकि 2011 की जणगणना के अनुसार 29.43 प्रतिशत है।
रुचि चतुर्वेदी ने बताया है कि कन्नूर की हिंसा में मरने वाले 80 फीसदी हिन्दू हैं। इसका मतलब यह नहीं कि मारने वाले मुस्लिम हैं। कन्नूर की हिंसा का संबंध वहां की आबादी से नहीं है। सीपीएम और बीजेपी की ख़ूनी प्रतिस्पर्धा से है। मर्चेंट ने तो कोट्टायम को मुस्लिम बहुल बता दिया जबकि आबादी 6 प्रतिशत ही है।
एक लेख में केरल और दिल्ली की मीडिया में केरल की हिंसा को लेकर होने वाले एकपक्षीय प्रोपेगैंडा के बारे में विस्तार से लिखा गया है। 2012 में आर एम पी नेता टी पी चंद्रशेखरन की हत्या की रिपोर्टिंग का विश्लेषण है। वहां मीडिया ने सीपीएम को इतना घेरा कि उपचुनाव में पार्टी की हार हो गई।
30 जनवरी 2017 को कन्नूर में राजनीतिक हिंसा की दो घटना होती है। 63 साल का कांग्रेसी कार्यकर्ता पर संघ के कार्यकर्ता हमला करते हैं आरोप लगता है। उसी दिन शाम आठ बजे 32 साल के सजिथ संघ के प्रचारक पर हमला होता है, आरोप सी पी एम पर लगता है। मीडिया ने दोनों घटनाओं को बराबरी से कवर किया। लेकिन नेशनल मीडिया ने सिर्फ संघ प्रचाकर की हत्या को ही प्रमुखता दी।
17 फरवरी 2017 के स्क्रोल में संघ प्रांत प्रचारक पी गोपालन कुट्टी का बयान है कि वे मुख्यमंत्री विजयन के हिंसा रोकने के प्रयासों से खुश हैं। विजयन ने उनसे फोन पर नौ बार बात की है। ताकि वे शांति बैठक में आएं। इसका मतलब है कि मुख्यमंत्री संकट को टालने का प्रयास कर रहे हैं।
कन्नूर से ही मुख्यमंत्री आते हैं इसलिए इस हिंसा का समाधान करने की ज़िम्मेदारी उनकी बनती ही है।
उज्जैन के संघ नेता का बयान भी मीडिया में है कि जो मुख्यमंत्री का सर काट कर लाएगा उसे इनाम दिया जाए।
आप हर मामले को अपने हिसाब से चुन सकते हैं मगर सच्चाई यही है कि केरल का कन्नूर हम सबके लिए एक दाग़ है। वहां मारे जा रहे युवाओं पर किसी को अफसोस नहीं है। उनकी हत्या राजनीति और प्रोपेगैंडा करने का एक मौका भर है। मैं केरल नहीं गया हूं। इसलिए इन लेखों को पढ़कर ही लिख रहा हूं।
इंटनेट सर्च के दौरान इन हत्याओं के सिलसिले में सज़ा की दो ख़बरें प्राप्त हुई हैं। एक ख़बर के अनुसार 21 अप्रैल 2011 को एक सेशल कोर्ट ने सीपीएम के 24 कार्यकर्ताओं को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई है। इन पर संघ के कार्यकर्ता के अंतिम संस्कार से लौट रहे दो लोगों पर हमला कर मार देने का आरोप था।
19 दिसंबर 2016 को एक अदालत ने राष्ट्रीय स्वयंसंघ के 11 कार्यकर्ताओं को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई। 2008 में सीपीएम नेता की हत्या का आरोप था।
फिलहाल सोमवार यानी 31 जुलाई को केरल में मुख्यमंत्री ने आर एस एस और बीजेपी के नेताओं के साथ शांति बैठक की है। तय हुआ है कि अन्य ज़िलों में दोनों पक्षों के काडर के साथ शांति बैठक होगी।