अबकी बार डिजिटल सरकार, पेट्रोल अस्सी पार: रवीश कुमार

17 सिंतबर यानी रविवार के दिन महाराष्ट्र के 21 ज़िलों में पेट्रोल का दाम 80 रुपये प्रति लीटर से अधिक था। इतने ही ज़िलों में डीज़ल का दाम 62 रुपये प्रति लीटर से अधिक था। परभणी में 81.31 रुपये प्रति लीटर, नांदेड़ में 81.19 रुपये प्रति लीटर, यवतमाल में 81.07 रुपये प्रति लीटर, गढ़चिरौली में 80.88 रुपये प्रति लीटर, जालना में 80.80 रुपये प्रति लीटर, अमरावती में 80.75 पैसे प्रती लीटर, औरंगाबाद में 80.72 रुपये प्रति लीटर, भंडारा में 80.04 रुपये प्रती लीटर पेट्रोल बिका। डीज़ल सबसे महंगा अमरावती में था, 63 रुपये 72 पैसे प्रति लीटर, नंदुरबार में 63 रुपये 59 पैसे प्रति लीटर। आलम यह है कि डीज़ल के दाम पेट्रोल के दाम पर पहुंच गया है। पेट्रोल और डीज़ल में अंतर नहीं रहा।

मीडिया सिर्फ दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई के दाम बता रहा है। तेल कंपनियों की वेबसाइट दूर दराज़ के ज़िलों के दाम नहीं हैं। क्यों नहीं हैं? ये तो डिजिटल सरकार है

कोई यह नहीं पूछ रहा कि पेट्रोल अस्सी पार हो गया सरकार कहां हैं। सब इसका दोष भी विपक्ष पर मढ़ रहे हैं कि विपक्ष नहीं है। क्या पेट्रोलियम और तेल मंत्रालय ग़लती से विपक्ष के पास ही रह गया है! क्या यह नहीं पूछना चाहिए कि सरकार कहां है?

विपक्ष इसलिए नहीं है कि नाना प्रकार की जांच एजेंसियों उनके पीछे हैं। ठीक ही है। साफ-सुथरे नहीं रहेंगे तो दबाव झेलिए। लेकिन क्या सरकार समर्थक दलों के नेता अचाकन संत हो गए हैं। जांच एजेंसियों के दम पर राजनीतिक दलों से पलायन करवाया जा रहा है। इसलिए विपक्ष नहीं है। विपक्ष नहीं है तो क्या हुआ, बीजेपी के सांसद तो हैं न। वो क्या कर रहे हैं?

क्या किसी खास टाइम फ्रेम के तहत जनता से ज़बरन उगाही की जा रही है? लक्ष्य पूरा होते ही दाम गिरने लगेंगे तब तक वसूल लिया जाएगा।
आज के हिन्दुस्तान टाइम्स में ख़बर छपी है कि जब एक पत्रकार ने बीजेपी के नेता से पेट्रोल की बढ़ती कीमतों के बारे में पूछा तो गाली देने लगे। पाशा पटेल हाल ही में कृषि लागत व मूल्य आयोग के अवैतनिक अध्यक्ष बनाए गए हैं। मराठी न्यूज़ चैनल के विष्णु बुर्गे ने उनसे प्रतिक्रिया मांगी तो गाली बकने लगे। पूरा मामला वीडियो में आ गया और सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। पाशा पटेल के ख़िलाफ़ मामला दर्ज हो गया है।

मोदी सरकार के नए बने मंत्री आल्फॉंस भी झुंझला गए थे। कहा कि पेट्रोल तेल तो कार वाले ही ख़रीदते है न। भूखे तो नहीं मर रहे। जो लोग दाम दे सकते हैं उन्हें देना चाहिए। महाराष्ट्र के 21 ज़िलों में पेट्रोल 80 रुपये प्रति लीटर से अधिक हो चुका है। व्हाट्स अप यूनिवर्सिटी में कुर्तक शास्त्र के प्रोफेसर ने एक जुमला छोड़ा है जो अब मंत्री भी बोलने लगे हैं।

सरकार तमाम योजनाओं पर खर्च कर रही है उसके लिए पैसा चाहिए तो यही बात कम से कम विज्ञापनों के ज़रिए बताना चाहिए कि आप तेल के दाम नहीं दे रहे हैं, बल्कि योजनाओं के लिए अलग से पैसा दे रहे हैं। कई प्रकार के उपकर तो हम इन योजनाओं के लिए पहले से दे ही रहे हैं। क्या पेट्रोल के दाम बढ़ा कर नोटबंदी की भरपाई की जा रही है?

कुतर्कशास्त्री कह रहे हैं कि पेट्रोल के दाम बढ़ा कर दो रुपये किलो गेहूं दिया जा रहा है। क्या सरकार ने बजट में इसका प्रावधान किया था कि हमारी योजनाओं का पैसा पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाकर आएगा? विपक्ष में रहते हुए जब बीजेपी को यह लगता था कि जनता की जेब पर डाका डाला जा रहा है तो अब कैसे लगने लगा कि पेट्रोल के दाम बढाकर जनता की जेब में पैसे डाले जा रहे हैं। जो योजनाएं हैं उनका बजट पहले से तय होता है। जो पैसा होता है उसी से योजनाएं बनती हैं। इसलिए कोई ठोस तर्क लाइये।