नई दिल्ली। पिछले सप्ताह लोकसभा में पेश तीन तलाक संबंधी मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया लेकिन इस दौरान चर्चा के लिए तीन मुस्लिम मौलाना सांसद सदन से अनुपस्थित थे जिसके चलते मुस्लिम समुदाय में उनके प्रति असंतोष बढ़ा है।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की प्रशंसा करते हुए समुदाय के लोगों ने इस विधेयक पर चुप रहने के लिए उन मुस्लिम सांसदों की आलोचना की जिन्होंने मतदान में भाग नहीं लिया। यह दोनों मौलाना मोहम्मद असरूल हक कासिमी और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेता मौलाना बद्रुद्दीन अजमल कासिम हैं।
बुद्धिजीवी डॉ सुल्तान अहमद ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के तहत कहा कि यह सरकार संविधान में निहित मुस्लिम समुदाय के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन कर रही है और मुस्लिम सांसदों को समुदाय की चिंताओं को उठाना था लेकिन वे विफल रहे। यह बहुत महत्वपूर्ण मामला है जिसका दूरगामी प्रभाव होगा।
एक अन्य मुस्लिम बुद्धिजीवी एस अख्तर ने कहा, उन्होंने बिल पेश करने के दौरान सदन में बहस से अनुपस्थित होना पसंद किया। हैदराबाद के सांसद ओवैसी ने प्रस्तावित विधेयक में दो संशोधनों की बात रखी थी लेकिन सदन में इनको नकार दिया। ओवैसी ने संशोधन के लिए मत विभाजन की मांग रखी थी। पहले मत विभाजन में खुद का एक और दूसरे में उनको केवल चार मत मिले जबकि वर्तमान लोकसभा में 23 मुस्लिम सदस्य हैं।
मत विभाजन की ओवैसी की मांग पर कांग्रेस के पाखंड का पर्दाफाश करने और मोदी सरकार के इरादे पर सवाल किए बिना बिल का समर्थन करने वाले नरम हिंदुत्व के प्रति झुकाव हो सकता है। मौलाना असरारूल हक कासिमी के अलावा, अखिल भारतीय संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा नेता मौलाना बदरुद्दीन अजमल और उनकी पार्टी के एक अन्य सांसद और उनके छोटे भाई सिराजुद्दीन अजमल इस बिल पर बहस के दौरान सदन से रहस्यमय तरीके से अनुपस्थित रहे थे।
एक वरिष्ठ पत्रकार, जो संसद की कार्यवाही में शामिल थे, ने कहा कि मौलाना असरारूल हक की आवाज उनकी पार्टी ने दबा थी जबकि मौलाना अजमल और उनके भाई को घर से अनुपस्थित रहने के लिए मजबूर किया था। अजमल और उनके भाई दोनों असम में मुस्लिम बहुल सीटों से चुने गए हैं और उनकी पार्टी मुस्लिम हितों की रक्षा करने का दावा करती है।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि 23 मुस्लिम सांसद होते हुए भी यह स्थिति उत्पन्न हुई। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता डा. फारूक अब्दुल्ला ने भी बिल पर एक शब्द नहीं कहा। ओवैसी सदन में विरोध करने वाले अकेले ही थे। ओवैसी के संशोधन पर मतदान के समय मुस्लिम लीग से कोई भी मुस्लिम सदस्य मौजूद नहीं था। इसके लिए एआईएमआईएम प्रमुख जिन्होंने बिल को मुसलमानों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में कहा, ने मौलाना असरारुल हक कासिमी की आलोचना की।