सऊदी अरब में ख़ामोशी से एक क्रांति बरपा हुआ है, लेकिन मुस्लिम दुनियां में ख़ामोशी छाई हुई है। सऊदी अरब के राजकुमार मोहम्मद बिन सलमान का राजनीतिक बढ़ावे और देश पर उनके कब्जे की दास्तान में कई सच्चाई छिपी हैं, लेकिन हैफ के आज वही लोग खामोश हैं जो आए दिन फिलिस्तीन, सीरिया, इराक, यमन आदि के बुरे स्थिति पर विरोध करते हैं।
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आज नहीं लगभग 70 साल से सऊदी अरब के शासक और अमेरिकी प्रशासन के लोगों के बीच एक ऐसा पक्का अनुबंध कायम रहा है कि अमेरिकी तेल के एवज अपनी रक्षा कारोबार और सेना के जरिए सऊदी अरब के आंतरिक हालात पर कभी टिप्पणी किया ही नहीं। अजीब व गरीब बात तो यह है कि दी वाशिंगटन पोस्ट से कहा कि वहाबियत को सऊदी अरब ने इस लिए बढ़ावा दिया क्योंकि यह पश्चिम देशों की नीति थी। यानी उन्होंने खुद इस बात का स्वीकार कर लिया कि पिछले 70 साल में सऊदी अरब पश्चिम देशों और खासतौर पर अमेरिका के इशारों पर चल रहा था?
मैंने इससे पहले कई बार उसी पत्रिका के पेज में लिखा है कि सउदी अरब और अमेरिका ने मिलकर कट्टरता को एक राजनीतिक हथियार बनाया लेकिन कुछ लोग मानने के लिए ही नहीं तैयार थे। कई बेचारों को यकीन था कि सऊदी अरब वाकई इस्लामी झंडे का रक्षक है लेकिन अब तो मोहम्मद बिन सलमान ने खुद ही इस गलतफहमी को दूर कर दिया।