जम्मू के कठुआ और उत्तर प्रदेश के उन्नाव में दरिंदगी का जो नंगा नाच पेश किया गया वह समृद्ध समाज की माथे पर एक भद्दा दाग है। हालांकि देश में पहली बार ऐसे घटनाएँ नहीं हुए हैं। पहले भी इस तरह की दरिंदगी होती रही है।
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2012 में दिल्ली की सड़कों पर निर्भया के साथ जो कुछ हुआ था उसे अभी तक देश भुला नहीं पाया है।वह घटना समाज के जमीर पर बार बार दस्तक देता रहता है। कठुआ की आठ साला बच्ची को भी भुलाना आसान नहीं होगा। उसके साथ होने वाली हैवानियत की जो रपोर्ट सामने आई है वह दहला देने वाली है। यह सोचकर ही कलेजा मुंह हो आ जाता है कि एक फूल जैसी मासूम बच्ची को किस तरह से यौन शोषण और फिर हत्या कर दी गई।
इन दोनों घटनाओं में पुलिस के रवैये में भी फर्क स्पष्ट हुआ है। जहां जम्मू की पुलिस ने बेहद ईमानदारी के साथ और बगैर किसी दबाव के अपना काम किया वहीं यूपी की पुलिस ने राजनेताओं की खोशामद का एक नया रिकार्ड कायम किया। यूपी पुलिस के इस रवैये के बावजूद यह यह बात कहना कुछ गलत नहीं होगा कि संयुक्त रूप से हमारे समाज का जमीर अभी जिंदा है, इंसानियत अभी मरी नहीं है।