VIDEO: रोजा गरीबों, यतीमों, जरूरतमंदों के दुख दर्द और भूख प्यास का एहसास कराता है!

 

रोजा को अरबी भाषा में सौम कहा जाता है। सौम का मतलब होता है रुकना, ठहरना यानी खुद पर नियंत्रण या काबू करना। यह वह महीना है जब हम भूख को शिद्दत से महसूस करते हैं और सोचते हैं कि एक गरीब इंसान भूख लगने पर कैसा महसूस करता होगा।

अमीर इंसान जो दौलत होते हुए भी कुछ खा नहीं सकता, उसकी बेबसी को महसूस करते हैं। और अपने आप को हर बुरी बातों और बुरे कार्यों से रोकते हैं, और मन में नेक ख्याल लाते हैं जैसे कि हम अपने मन को साफ़ कर रहे हों।

रोजा जहां आपसी भाई चारे का प्रतीक है, वहीं पूरे दिन भूखे प्यासे रहकर इनसान अपनी इच्छाओं पर काबू पाता है। रोजा गरीबों, यतीमों, जरूरतमंदों के दुख दर्द और भूख प्यास का आभास कराता है।

रोज़े की हालत में इनसान झूठ, चोरी, बलात्कार, चुगली, धोखेबाजी और अत्याचार जैसी सामाजिक बुराईयों से बचता है। अल्लाह और उनके रसूल की क़ुर्बत का ज़रिया तलाशते हैं अल्लाह को ख़ुश और राज़ी करने की तरकीबें ढूंढते हैं। बार बार अल्लाह से माफ़ी मांगते हैं।

इस्लाम धर्म में रमज़ान की एक खास अहमियत है। इसी महीने में क़ुरान शरीफ आसमान से उतारी गई थी। रोज़ा इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है। पूरी दुनिया के मुसलमान इस महीने का बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं। रमजान का महिना सब्र व सकून का महीना है। इस महीने में अल्लाह कि खास रहमतें बरसती हैं। रमजान माह का एहतराम करने वाले लोगों के अल्लाह पिछले सभी गुनाह मुआफ कर देता है। इस महीने में की गई इबादत या अच्छे कामों का बदला सत्तर गुना ज्यादा मिलता है।

अल्लाह ने कुरान शरीफ में कई जगह रोजा रखने को जरूरी करार दिया है। अल्लाहताला कुरान पाक के दूसरे पारे की सूरत बकर की आयत नंबर 183 में अपने बंदों को हुक्म देता है कि ए इमान वालो तुम पर रोजा फर्ज किए गए हैं ताकि तुम परहेजगार बनों।

इसके अलावा हदीस की किताबें तिर्मीजि, बुखरी शरीफ, मुस्लिम, इबनेमाजा, मिस्कात तथा अबु दाउद शरीफ में भी हजारों जगह बताया गया है कि रोजा बुराईयों से दूर रखता है। गलत व बुरे कामों से दूर रखता है, यहां तक की किसी का बुरा चाहने, जलन रखने से भी रोकता है।

 

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