VIDEO : मोदी सरकार से खुश नहीं है आरएसएस, इसके बावजूद वह उसका साथ देने को मजबूर

नई दिल्ली :  आरएसएस के संगठन विकास और वैश्विक नजरिये पर आधारित ‘द आरएसएस: ए व्यू टू द इनसाइड’ किताब इन दिनों चर्चा में है. जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वाल्टर के एंडरसन और अमेरिकी मूल के लेखकर श्रीधर दामले की लिखी इस किताब में आरएसएस और बीजेपी के रिश्तों को लेकर कई चौंकाने वाली बातें सामने आ रही हैं. इस किताब में बीजेपी की मौजूदा मोदी सरकार से आरएसएस की नाखुशी का भी जिक्र किया गया है.

प्रो. वाल्टर के एंडरसन के अनुसार हालात बदल चुके हैं. आरएसएस की बैसाखी का देश की सियासत में इस्तेमाल करने वाली बीजेपी पर अब आरएसएस निर्भर हो चुकी है. आलम यह है कि आगामी लोकसभा चुनाव में आरएसएस कुछ मसलों पर बीजेपी से बेहद नाखुश है. इसके बावजूद वह उसका साथ देने को मजबूर है.

एक न्यूज चैनल से बातचीत के दौरान जांस हॉपकिंस यूनिवर्सिटी में साउथ एशिया स्टडीज के एडजक्ट प्रोफेसर वाल्टर के एंडरसन ने ऐसी कई बातों का जिक्र किया. भारत में अमेरिकी राजदूत के खास सहायक रह चुके एंडरसन ने कहा कि आरएसएस खुद को गैरराजनीतिक संगठन करार देती है. उसका टारगेट और मकसद मौजूदा सरकार के फ्रेमवर्क से मेल नहीं खाता है. उन्होंने कहा कि चूंकि आरएसएस को सत्ता में रहने के लिए बीजेपी की जरूरत थी. जाहिर है कि सम्बद्ध संगठनों को आमतौर पर उन मुद्दों से निपटना पड़ता है जहां सरकार की भूमिका निभानी होती है. कृषि इनमें से एक अहम मुद्दा है.

आरएसएस को तमाम मसलों से निपटना है. यही वजह है कि सरकार उसके पक्ष में हो. किताब के लेखक एंडरसन का कहना है कि आरएसएस नौकरशाही या डीप स्टेट को लेकर भी फिक्र में डूबी है, क्योंकि ये उसके लिए आगे जाकर मुश्किलें खड़ी कर सकता है.

अमेरिकी लेखकर वाल्टर के एंडरसन का कहना है कि आरएसएस सरकार को लेकर प्रतिबद्ध है. उन्होंने यह भी कहा कि यह बहस का विषय है कि बीजेपी पर आरएसएस की कितनी निर्भरता है और बीजेपी पर उसे कितना भरोसा है. उन्होंने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का हवाला देते हुए कहा कि सरकार एफडीआई इसलिए चाहती थी, क्योंकि इससे विदेश का पैसा है और देश में नौकरियों के नए अवसर पैदा होते. मगर, आरएसएस और बीजेपी के बीच एफडीआई को लेकर आम सहमति नहीं थी.

केंद्र में मोदी सरकार के चार वर्ष को लेकर आरएसएस के नजरिए पर एंडरसन का कहना है कि संगठन में इसको लेकर एक राय नहीं है. लेकिन, दशहरे पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के भाषण से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. उन्होंने कहा था कि एनडीए सरकार के चार साल में से आखिरी वर्ष बेहद चुनौतीपूर्ण रहा. खास तौर पर आर्थिक मामलों में. एंडरसन के मुताबिक आरएसएस भी ऐसा महसूस करती है कि सरकार को नौकरियों को लेकर जो काम करने चाहिए थे, वो काम उसने नहीं किए.

लेखकर वाल्टर एंडरसन का कहना है कि बीजेपी के कामों से आरएसएस खुश नहीं है. इसके बावजूद वह केंद्र में एक बार फिर बीजेपी को सत्ता में लाना चाहती है. एंडरसन का कहना है कि बीजेपी शार्ट टर्म मकसद पर फोकस करती है तो आरएसएस लांग टर्म पर.इसके लिए उसे बीजेपी जैसी सरकार की जरूरत है.

वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक कामयाबी हासिल कर नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार बनी तो आरएसएस बेहद गदगद थी. क्योंकि यह पहली बार था जब बीजेपी भी गठबंधन की बजाए अकेले दम पर बहुमत के आंकड़े को पार करने का इतिहास रचा. एंडरसन का कहना है​ कि इस दौर को आरएसएस का गोल्डन पीरिएड कहा जा सकता है. मौजूदा वक्त में आरएसएस की देशभर में 70 हजार से ज्यादा शाखाएं चलती हैं. देश का सबसे बड़ा प्राइवेट स्कूल सिस्टम भी आरएसएस से जुड़ा है. इसमें करीब 40 से 50 हजार छात्र मुस्लिम हैं. हालांकि, ये बहस का विषय है कि आरएसएस के स्कूलों में दी जाने वाली संघ की ट्रेनिंग इन छात्रों के विचारों को कैसे प्रभावित करते हैं.