नई दिल्ली निवासी मंगला वर्मा ने पुलिस अधीक्षक शामली के जनसूचना अधिकारी से जानकारी मांगी थी कि शामली के ग्राम लिसाढ़ में वर्ष 2013 में हुए सांप्रदयिक दंगों में कुछ व्यक्तियों की मौत हो गयी, कुछ लाशें मिमला रसूलपुर थाना कांधला के जंगलों में डाल दी गयी थीं?
लाइव हिंदुस्तान डॉट कॉम मे छपी खबर के मुातबिक मुज़फ्फर नगर मे हुए दंगों को लेकर जो जवाब मिला वो बेशक हैरान कर देने वाला है सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के जरिये शामली में वर्ष 2013 में हुए साम्प्रदायिक दंगों में पुलिस की लापरवाही सामने आयी है। राज्य सूचना आयोग में शामली पुलिस द्वारा दी गई जानकारी में कहा गया है कि थाना कांधला के जंगल से कुछ शव गायब हुए थे।
दरअसल, इस मामले में संबंधित पुलिस अधिकारियों के नाम, प्रशासन द्वारा इस प्रकरण में की गई कार्यवाही की प्रमाणित प्रतिलिपि भी मांगी गई थी? मंगला वर्मा की अपील पर हुई सुनवाई के दौरान पुलिस अधीक्षक शामली के प्रतिनिधि के रूप में ऋषिपाल सिंह राघव उपस्थित हुए। उन्होंने आयोग के समक्ष लिखित तौर पर रिपोर्ट पेश की और उसमें बताया है कि मुश्ताक द्वारा अपने मोबाइल से कंट्रोल रूम को घटना की सूचना दी गयी कि कांधला के जंगल में कुछ शव पड़े हुए हैं।
इस घटना के संबंध में जिले के थाने को कंट्रोल रूम से सूचना मिली, हत्या की सूचना पर उपनिरीक्षक के.के.शर्मा और सिपाही हरनंद सिंह, मनोज कुमार व रवीन्द्र कुमार ग्राम मीमला घटनास्थल पर गए थे। उनके द्वारा उस समय न तो कोई कार्रवाई की गई और न ही शवों की सुरक्षा में कोई सिपाही तैनात किया गया। अंधेरे का बहाना बनाकर सुबह आकर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया गया। मगर रात में ही मृतकों के शव वहां से गायब हो गए, जबकि इन पुलिस कर्मियों को वहां उक्त शवों की सुरक्षा के लिए रहना चाहिए था।
पुलिस कर्मियों ने ऐसा नहीं किया। मामले की प्रारम्भिक जांच में पुलिस कर्मी दोषी पाए गए हैं। इन पुलिस कर्मियों के खिलाफ यथोचित कार्रवाई भी की गयी है। राज्य सूचना आयुक्त हाफिज उस्मान ने साम्प्रदायिक दंगे को गम्भीरता से लेते हुए पुलिस अधीक्षक शामली को मंगला का प्रार्थना पत्र अनिवार्य रूप से 30 दिन के अन्दर सभी सूचनाएं उपलब्ध करवाते हुए आयोग को अपनी रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए थे।