गांधी, कांग्रेस और अमित शाह की राष्ट्रपिता के प्रति नफ़रत

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने रायपुर में कहा है। एक चतुर बनिया गांधी ने कांग्रेस को भंग कर देने कहा था। उन्होंने लेकिन पूरी बात नहीं कही। गांधी चतुर भी थे और बनिया भी थे। लेकिन वे चतुर बनिया नहीं थे। आजादी के युद्ध के सेनापति थे। चतुराई के बनिस्बत सत्य और अहिंसा का प्रयोग कर इतिहास में मौलिक जगह सुरक्षित कर ली है। बनिया का चतुर व्यापार सामाजिक समझ के अनुसार असत्य और हिंसा पर टिका होता है। झूठ और हिंसा व्यापार के पैर होते हैं। व्यापार उनकी बैसाखी पर चलता है। यह बात अम्बानी, अदानी जैसे कारपोरेटिये समझते होंगे। जनसेवा व्यापार नहीं है।

कांग्रेस के स्वातंत्र्योत्तर भविष्य को लेकर गांधी ने अपनी प्रार्थना सभाओं में बहुत कुछ कहा है। वे कांग्रेस के लिए आशंकित, आशान्वित और ऊपरी तौर पर तटस्थ भी होते थे। गांधी ने कहा कांग्रेस पूरे भारत की पार्टी है। उसे देखना है हिन्दू, मुसलमान, पारसी और सभी धर्मों, जातियों के लोग सुखी रहें। मैं कतई नहीं कहना चाहता कि कांग्रेस केवल मुसलमानों को खुश करे या कायर बनी रहे। मैंने कायरता की पैरवी कभी नहीं की। बहादुरी के साथ शांति की स्थापना कांग्रेस का मुख्य कार्यक्रम होना चाहिए।

28 जुलाई, 1947 को गांधी ने फिर कहा। मुसलमानों ने भले ही अपना अलग राष्ट्र बना लिया है। लेकिन भारत हिन्दू इंडिया नहीं है। कांग्रेस केवल हिन्दुओं का संगठन नहीं बन सकती। हिंदुस्तान को रचने वाले मुसलमान कभी नहीं कहते वे भारतीय नहीं हैं। अपनी कमजोरियों के बावजूद हिंदू धर्म ने कभी नहीं कहा उसे बटवारा चाहिए। कई धर्मों के मानने वालों ने मिलकर हिंदुस्तान बनाया है। वे सब भारतीय हैं। तलवार की जोर पर आजमाई ताकत के बदले सत्य की ताकत बड़ी होती है।

गांधी ने 18 नवम्बर, 1947 को डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद से बातचीत में कहा मौजूदा हालत में तो कांग्रेस को भंग कर देना चाहिए। या फिर बहुत ऊर्जावान व्यक्ति के नेतृत्व में जिंदा रखा जाना चाहिए। यहां गांधी समग्र विचार के बाद कांग्रेस को भंग कर देने का निर्विकल्प प्रस्ताव नहीं रच रहे थे। जाहिर है वे कांग्रेस के नेतृत्व से पूरी तौर पर असंतुष्ट थे। मरने के एक पखवाड़े पहले गांधी ने 16 जनवरी को एक पत्र में लिख दिया था कांग्रेस एक राजनीतिक पार्टी है। इसी रूप में वह कायम रहेगी। उसे राजनीतिक सत्ता मिलेगी तो वह देश की कई पार्टियों में से केवल एक पार्टी कहलाएगी।

इतिहास यह बात हैरत के साथ दर्ज करेगा कि अपनी मौत के एक दिन पहले 29 जनवरी को कांग्रेस संविधान का ड्राफ्ट लिखते जांचते गांधी ने फिर कहा था। कांग्रेस संविधान में शामिल किया जाए। कांग्रेस स्वयमेव खुद को भंग करती है। वह लोकसेवक संघ के रूप में पुनर्जीवित होकर संविधान में लिखे बिंदुओं के आधार पर देश को आगे बढ़ाने के काम के प्रति प्रतिबद्ध होती है। इसी कथन का अमित शाह ने आधा अधूरा उल्लेख किया है। यही प्रमुख और बुनियादी दस्तावेज है जिसे बीज के रूप में भविष्य की कांग्रेस के गर्भगृह में गांधी ने बोया था। वह बीज एक विशाल वृक्ष के रूप में गांधी की मर्यादा के अनुसार विकसित नहीं हो सका। यह बात अलग है।

बापू के जीवनीकार प्यारेलाल के ‘हरिजन‘ के लेख के अनुसार 29 जनवरी को गांधी पूरे दिन कांग्रेस संविधान का प्रारूप तैयार करते रहे। बुरी तरह थक गए थे। फिर भी काम पर डटे रहे। उन्होंने आभा गांधी से कहा। मुझे देर रात तक जागना पड़ेगा। 30 जनवरी की सुबह वह प्रारूप उन्होंने प्यारेलाल को दिया। प्यारेलाल से वापिस मिलने पर फिर सुधारा। 30 जनवरी की सुबह प्रारूप संविधान कांग्रेस पार्टी को दिया। वह प्रारूप पार्टी के महासचिव आचार्य जुगलकिशोर ने 7 फरवरी 1948 को जारी किया।

  • कनक तिवारी