पंचकूला में NIA की विशेष अदालत के न्यायाधीश जगदीप सिंह ने समझौता ब्लास्ट मामले के फैसले की कॉपी सार्वजनिक कर दी। जिसके मुताबिक नभ कुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को 20 मार्च को समझौता ब्लास्ट मामले में बरी कर दिया गया था।
What is the credibility of India’s investigation and prosecution system when a premier agency like the NIA withheld both the best evidence as well as key witnesses from the trial – and in a high profile case of ghastly terror attacks?https://t.co/T2FxeNNr0Z
— The Wire (@thewire_in) March 30, 2019
विशेष एनआईए अदालत के न्यायाधीश जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा “मैं विश्वसनीय और स्वीकार्य सबूतों के अभाव में अधूरे रहने वाले इस हिंसा के रूप में किये गए एक नृशंस कृत्य के फैसले को गहरे दर्द और पीड़ा के साथ समाप्त कर रहा हूं। अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों में अभाव रहा। जिसके चलते आतंकवाद का एक कृत्य अनसुलझा रह गया।
#ExpressFrontPage | All accused were acquitted by Panchkula court https://t.co/Air6JPqWG3
— The Indian Express (@IndianExpress) March 29, 2019
आज तक पर छपी खबर के अनुसार, आज तक के पास फैसले की एक्सक्लुसिव कॉपी है। जिसके मुताबिक 18 फरवरी, 2007 को हरियाणा के पानीपत में भारत-पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस ट्रेन जब भारतीय सीमा के पास आखिरी स्टेशन यानी अमृतसर के अटारी स्टेशन के रास्ते में थी, तभी उसमें जोरदार ब्लास्ट हुआ था। जिसमें 68 लोग मारे गए थे।
Botched Probe | Special CBI Court Judge Jagdeep Singh has castigated the NIA for botching up the Samjhauta Express blast investigation that forced him to acquit the accused#SamjhautaBlast #SamjhautaBlastCase #CBI #JagdeepSingh #NIA
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न्यायाधीश जगदीप सिंह ने इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि दुनिया का कोई भी धर्म हिंसा का प्रचार नहीं करता है।
कानून और अदालत लोकप्रिय या प्रमुख सार्वजनिक धारणा या एक दिन के राजनीतिक प्रवचन पर आगे बढ़ने के लिए नहीं है और अंततः इसे रिकॉर्ड पर सबूतों के आधार पर और प्रासंगिक वैधानिक प्रावधानों और तय कानून लागू होने के आधार पर अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचना है।
जज जगदीप सिंह ने 28 मार्च को सार्वजनिक किए गए अपने फैसले में कहा कि चूंकि कानून के अनुसार अदालत के निष्कर्ष स्वीकार्य साक्ष्य पर आधारित हैं। जब ऐसे जघन्य अपराध को अंजाम देने वाले अपराधी अज्ञात और अप्रभावित रहते हैं, तो दर्द और ज्यादा बढ़ जाता है।
न्यायाधीश ने कहा कि किसी पर भी गहरा शक हो लेकिन वो शक सबूत की जगह नहीं ले सकता। यह आपराधिक न्यायशास्त्र का कार्डिनल प्रिंसिपल है, जो एक अभियुक्त के खिलाफ आरोपों को संदेह से परे केवल सबूतों के आधार पर ही स्थापित किया जा सकता है। कुछ छोटे मोटे तथ्यों को पर्याप्त नहीं माना जा सकता।
विशेष अदालत के न्यायाधीश ने कहा “आपराधिक मामलों में, सजा नैतिकता के आधार पर नहीं हो सकती है। सजा के आधार के लिए स्वीकार्य और विश्वसनीय सबूत होने चाहिए और इसके अलावा यह आपराधिक न्यायशास्त्र में अच्छी तरह से तय किया गया है कि घृणित अपराध के लिए बड़ा प्रमाण देना ज़रूरी है।
कानून का जनादेश है कि अभियोजन पक्ष को उचित संदेह से परे सभी आरोपों को साबित करना होगा। गौरतलब है कि इस विस्फोट में ट्रेन के दो डिब्बे अलग हो गए थे. हरियाणा पुलिस ने ब्लास्ट का मामला दर्ज किया था, लेकिन इस मामले की जांच जुलाई 2010 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंप दी गई थी।
एनआईए ने जुलाई 2011 में आठ लोगों के खिलाफ आतंकवादी हमले में उनकी कथित भूमिका के लिए आरोप पत्र दायर किया था। उन आठ आरोपियों में से स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी अदालत में पेश हुए और मुकदमे का सामना किया।
इस हमले का मास्टरमाइंड सुनील जोशी को कहा जाता है. दिसंबर 2007 में मध्य प्रदेश के देवास जिले में सुनील जोशी की उसके घर के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
इस मामले के तीन अन्य आरोपी रामचंद्र कलसांगरा, संदीप डांगे और अमित को गिरफ्तार नहीं किया जा सका और उन्हें भगोड़ा घोषित किया गया था. इनमें से असीमानंद जमानत पर बाहर था, जबकि तीन अन्य आरोपी न्यायिक हिरासत में थे।
एनआईए ने आरोपियों के खिलाफ हत्या, आपराधिक साजिश और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के साथ-साथ रेलवे अधिनियम के तहत मामले दर्ज किए थे।
साभार- आज तक