17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने जन्मदिन के अवसर पर सरदार सरोवर परियोजना के 30 दरवाज़े खोलने जा रहे हैं। इस मौके पर जहां गुजरात में जश्न का माहौल होगा वहीं पड़ोसी मध्यप्रदेश के कई ज़िलों में मातम पसरा होगा।
सरदार सरोवर बांध के दरवाज़े खुलने से कई ज़िले पानी में समा जाएंगे। इन ज़िलों में से एक निसरपुर के करीब 25 घर आज डूब की कगार पर हैं, लेकिन इन घरों में रहने वाले लोगों की ज़िद है कि वह अपना घर नहीं छोड़ेंगे। लोग बांध के पानी में डूबकर जान देने को तैयार हैं, लेकिन अपने घरों को छोड़ने लिए नहीं।
यहां के लोग सरदार सरोवर परियोजना का विरोध कर रहे हैं। इस बांध की चपेट में राजघाट में बापू की समाधि, खेत-खलिहान सब आने वाले हैं। इनको बचाने के लिए लोगों ने जलसत्याग्रह पर बैठने का ऐलान किया है।
प्रख्यात समाजसेवी मेधा पाटकर इस मामले में सीधे प्रधानमंत्री को कठघरे में खड़ा करते हुए कहती हैं कि बांध के लोकापर्ण का जश्न फर्जी साबित होने वाला है। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के तहत गुजरात के किसानों को कम और कोका-कोला को नैनो को ज़्यादा पानी देने की तैयारी की जा रही है।
आंदोलनकारियों को लगता है कि पुनर्वास में सियासत के साथ भ्रष्टाचार भी है। पाटकर ने कहा शिवराज सिंह 900 करोड़ का पैकेज दे रहे हैं, केंद्र भी पैकेज दे रहा है लेकिन क्यों? जब 2015 में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कागजात में उन्होंने बताया है कि इन ज़िलों में ज़ीरो बैलेंस है। अनिल माधव दवे ने सरदार सरोवर को मंज़ूरी नहीं दी थी।
सरदार सरोवर के 30 गेट खुलते ही, मध्य प्रदेश के अलीराजपुर, बड़वानी, धार, खारगोन जिलों के 192 गांवों, धर्मपुरी, महाराष्ट्र के 33 और गुजरात के 19 गांव इतिहास का हिस्सा बन जाएंगे। देश के शहरी इलाकों को रोशन करने, पानी भरने हज़ारों लोगों के घर में हमेशा के लिये अंधेरा छा जाएगा।
उम्मीद है देश के मुखिया सोचेंगे इस दिन ये विस्थापित परिवार उन्हें जन्मदिन की शुभकामना कैसे देंगे।