जब सावरकर ने चन्द्रशेखर आज़ाद से कहा- अंग्रेज़ों का साथ देकर मुसलमानों को मारो, 50 हज़ार देंगे

काकोरी ट्रेन डकैती और साण्डर्स की हत्या में शामिल निर्भय क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को कौन नहीं जानता। जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए लड़ते लड़ते अपनी जान की कुर्बानी दे दी। बीते कल यानी यानी, 23 जुलाई को चंद्रशेखर आज़ाद की 111 वीं जयंती थी। आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के महान नेताओं में से एक रहें हैं।

चंद्रशेखर आजाद ने भारत के प्रमुख क्रांतिकारी, साम्राज्यवाद विरोधी संगठन, हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) का नेतृत्व किया था। इससे पहले, जब संगठन को HRA कहा जाता था उस वक़्त राम प्रसाद बिस्मिल इसके मुखिया रहें थे।

चंद्रशेखर आजाद ने HRA की कमान उस वक़्त संभाली जब रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह, रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिरी को गिरफ्तार कर लिया गया था। बाद में सभी चारों को विभिन्न स्थानों पर फांसी दी गई थी। हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी (HRA)की रीढ़ मानो टूट चुकी थी।

लेकिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ, आजाद ने एक समाजवादी संगठन के रूप में पार्टी को पुनर्जीवित किया जो ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए प्रतिबद्ध था।

लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए, आज़ाद और भगत ने योजना बनाई और लाहौर के ब्रिटिश अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या को कामयाबी के साथ अंजाम दिया।

भगत सिंह की गिरफ्तारी के बाद, आजाद अपने साथियों के बचाव के लिए पैसे जुटा रहे थे। इस वाक़्या के सन्दर्भ में यशपाल ने अपनी आत्मकथा ‘सिंघवालोकन’ में लिखा है कि सावरकर 50,000 रुपये देने के लिए सहमत तो हो गए लेकिन इस शर्त पर कि आजाद और HSRA के क्रांतिकारियों को अंग्रेजों से लड़ना बंद करना होगा और जिन्ना और अन्य मुसलमानों की हत्या करनी होगी।

जब आज़ाद को सावरकर के प्रस्ताव के बारे में बताया गया तो उन्होंने इस पर सख्त आपत्ति ज़ाहिर करते हुए कहा, “यह हम लोगों को स्वतन्त्रा सेनानी नही भाड़े का हत्यारा समझता है। अंग्रेज़ों से मिला हुआ है। हमारी लड़ाई अंग्रेजो से है…मुसलमानो को हम क्यूं मारेंगे? मना कर दो… नही चाहिये इसका पैसा।

चन्द्रशेखर आजाद का बलिदान लोग आज भी भूले नहीं हैं। कई स्कूलों, कॉलेजों, रास्तों व सामाजिक संस्थाओं के नाम उन्हीं के नाम पर रखे गये हैं तथा भारत में कई फिल्में भी उनके नाम पर बनी हैं।