नई दिल्ली। करीब डेढ़ साल बाद जेल में बंद 58 वर्षीय नज़मा बी. जिस पर प्रतिबंधित छात्र इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) की कथित सदस्य होने और देश के खिलाफ युद्ध करने के आरोप में हैं, उन्हें सोमवार (2 जुलाई) को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी।
पूर्व में उनकी जमानत याचिका को पहले ट्रायल ने खारिज कोर्ट और फिर पिछले साल ओडिशा उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था। नज़मा विधवा हैं और ओडिशा में राउरकेला जेल में हैं, राज्य पुलिस ने उसको फरवरी 2016 में गिरफ्तार किया था और धारा 121 के तहत उसके खिलाफ मुकदमा दायर किया था।
पुलिस ने ‘छापे’ के बाद उसके खिलाफ मुकदमा दायर किया, जिसमें 27 वर्षीय उनके एकमात्र बेटे महबूब को चार अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया था, जो 2013 में मध्यप्रदेश में खंडवा जेल से कथित रूप से भाग गए थे।
महबूब और चार अन्य उन आठ लोगों में से थे, जो बाद में अक्टूबर 2016 में भोपाल सेंट्रल जेल से बच निकले और शहर के बाहरी इलाके में पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सोमवार को जमानत दी गई है।
सर्वोच्च न्यायालय में नज़मा के वकील, मोहम्मद मोबिन अख्तर ने कारवान डेली से कहा कि फरवरी 2016 में, मध्यप्रदेश पुलिस ने उन्हें खंडवा में यह पता लगाने के लिए पकड़ा कि क्या उनके बेटे भी उन पांच लोगों में से हैं जो कथित तौर पर खंडवा जेल से बचने के बाद राउरकेला में छिप गए थे।
बाद में पुलिस ने दावा किया कि वह सिमी का भी सदस्य था जिसने उन्हें अपराध करने के निर्देश दिए थे। पुलिस ने एक कहानी बनाई लेकिन पुलिस अदालत में साबित करने में नाकाम रही।
इससे पहले, नज़मा की जमानत याचिका राउरकेला के सत्र अदालत ने खारिज कर दी थी। मोबिन ने बताया कि असल में यह अवैध न्यायिक हिरासत का मामला है। मोबिन ने तर्क दिया कि उसकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है। अब वह जल्द ही जेल से बाहर आ जाएंगी।