जामिया मिल्लिया इस्लामिया के नेल्सन मंडेला सेंटर फॉर पीस एंड कानफ्लिक्ट रेजलूशन सेंटर की तरफ से ‘महात्मा गांधी और इस्लाम’ विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा में जर्मनी की हिडलबर्ग यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग की प्रोफेसर गीता धर्माचार्य फ्रिक ने कहा कि गांधी कहा करते थे कि अगर हिंदू सोचते हैं कि भारत सिर्फ हिंदुओं का है तो वे दु:स्वपन में हैं।
उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान को हिंदू, मुसलमान, इसाई और पारसी सबने सींचा है और सब आपस में मिलकर ही रह सकते हैं। बापू ने मुसलमानों से भी कहा था कि इस्लाम के भाईचारे के सिद्धांत के आधार पर वे हिंदुओं से भाईचारे और दोस्ती का रिश्ता रखें।
प्रोफेसर गीता धर्माचार्य ने बताया कि बापू का मानना था कि देश में स्थायी शांति तब तक नहीं हो सकती जब तक सभी धर्मों के मानने वाले एक-दूसरे की आस्था का सम्मान और संयम का पालन नहीं करते। उन्होंने इस बात पर जोर दिया की बापू ने हिंदू-मुसलिम एकता के लिए अपनी जान तक दे दी।
उन्होंने कहा कि जामिया की स्थापना में भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने बहुत ही सक्रिय भूमिका निभाई थी। उन्होंने बताया कि जामिया की बुनियाद ब्रिटिश शिक्षा के खिलाफ उनकी सोच को अमली जामा पहनाने के लिए किया गया था। उससे जौहर बंधुओं के अलावा जाकिर हुसैन, मौलाना अबुल कलाम आजाद और मुहम्मद मुजीब जैसे लोगों की अहम् भूमिका थी। बापू के साथ मिलकर इन सभी ब्रिटिश शिक्षा का विकल्प पेश किया।
प्रोफेसर गीता धर्माचार्य ने कहा, “महात्मा गांधी के रामराज्य के सिद्धांत को गलत समझा गया। जबकि इससे उनका उद्देश्य समाज के सभी लोगों के सुख और शांति के साथ रहने से था। लेकिन साम्प्रदयिक ताकतों ने उसका गलत अर्थ बना कर लोगों को गुमराह किया।”
इसके बाद उन्होंने कहा कि गांधी के स्वराज के सिद्धांत की चार बुनियाद हैं-हिंदू-मुसलिम भाईचारा, सत्याग्रह, छुआछूत का अंत और स्वदेशी (खादी) को बढ़ावा देना।
परिचर्चा के दौरान जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर आनंद कुमार ने इस दौरान कहा, “हिन्दू-मुसलिम एकता स्थापित करने में गांधी जी को अपनी जान की कीमत देनी पड़ी।” वहीं तत्कालीन योजना आयोग की पूर्व सदस्य सैयद सैयदना हामिद ने कहा कि हिन्दू-मुसलिम एकता की गांधी जी की कोशिशों को आगे बढ़ाने की आज पहले से कहीं अधिक जरूरत है।