स्पेशल रिपोर्ट: ‘मौत के रेगिस्तान में तब्दील होता बुंदेलखंड’

वीरों की धरती बुंदेलखंड अब विलाप और पलायन का पर्याय बन गयी है। बुंदेलखंड की त्रासदी न सिर्फ हमारी विकास की कथित उपलब्धियों का मजाक उड़ाती है, बल्कि यह हमारे नीति-नियंताओं की समझ और संवेदना पर भी सवाल खड़ा करती है। लगातार पिछले कई सालों से यह इलाका सूखे की मार से कराह रहा है।

आंकड़ो की मुताबिक पूरा बुंदेलखंड मौत के रेगिस्तान में तब्दील होता जा रहा है। हजारों करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी बुंदेलखंड को अकाल से राहत न मिलना बताता है कि अब यह सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं है। सरकारों और प्रशासन के एजेंडे में बुंदेलखंड की समस्याओं के स्थायी समाधान की चिंता नहीं दिखती है। बुंदेलखंड पैकेज के लिए खूब सियासतें होती है। अगर जमीनी स्तर पर योजनाओं को ठोस रुप से उतारा जाता तो यह दुर्गति न होती।

गौर से देखें तो बुंदेलखंड-त्रासदी की जेहन में कई महीन- बारिक परतें उधड़ती चली जाती  हैं। पड़ताल करने पर तो कई मनुष्य जनित लगती हैं। सच यह है कि आजादी के बाद विकास के क्रम में बुंदेलखंड के प्राकृतिक संसाधनों का भयानक दोहन किया गया है। जंगल नष्ट किये गए हैं, बड़ी बेरहमी से पहाड़ों की खाल खींच कर नेस्तनाबूद कर दिया गया है। यहां न नीति है न नैतिकता, हर ओर वहशीपन। लगता है कि बुंदेलखंड का पैकेज कागजों से उतर कर जमीन पर आने से लाचार है।

त्रासदी से गुजर रहे इन रीजन की हालात दिनों दिन बदतर होती जा रही है। देश की आजादी के बाद जब इस देश के निर्माताओं ने संविधान बनाया तो पहली प्राथमिकता यही थी कि देश के हर नागरिक को जीने की न्यूनतम जरूरत सरकार मुहैया करवाकर देशवासियों के जिन्दगी में खुशहाली लाएगी। लेकिन आज बेहतरी लाने के बजाय मौजूदा हालात इतने विपरित हैं कि देखकर रुह कांप जाती है।

बुंदेलखंड के बांदा जिले के अतर्रा कस्बे में हाइवे पर 1955 में स्थापित और 1978 से उ.प्र. सरकार के अधीन राजकीय आयुर्वेदिक कालेज एवं चिकित्सालय अपनी बदहाली से कराह रहा है। करीब डेढ़ सौ किमी के दायरे में चारो तरफ ग्रामीणों को जीवन देना वाला यह हास्पिटल आज खुद अपनी असमय मौत का इंतजार कर रहा है।

कालेज की वेबसाईट पर पांच सितारा बिल्डिंग की तस्वीर दिखती है लेकिन आज तक जमीन पर हकीकत ठीक इसके उल्टी है। वेबसाइट और कालेज परिसर में बोर्ड पर लिखे सूचनाओं पर यकीन करेंगे तो आपको घोर हैरानी होगी। सरकार और मंत्रालय की वेबसाईट की सूचना के मुताबिक यहां के प्रिंसिपल  प्रोफेसर एस एन सिंह हैं और उनका संपर्क न. लिखा हुआ है।

फोन पर उन्होने बताया कि तीन साल पहले राजकीय आयुर्वेदिक कालेज, बनारस में ट्रांफर होकर आ गया हूं। संहिता, संस्कृत एवं सिद्धांत के रीडर डा.यशवंत चौहान यहां नहीं है।

रचना शरीर के रीडर डा. गिरिश कुमार सिहं रिटायर हो चुके हैं। क्रिया शरीर के प्रो. अरुण कुमार श्रीवास्तव की मौत हो चुकी है और इसी विभाग के प्रवक्ता डा. कृष्णा मिश्रा का ट्रांसर्फर भी दो साल पहले हो चुका है। द्रव्यगुना के प्रो. जय प्रकाश रिटायर हो चुके है और इसी विभाग के प्रवक्ता डा. संजय प्रकाश भी कैम्पस में नही हैं। रोग निदान के रीडर डा. अतुल वाष्र्णेय का  ट्रांसफर हो चुका है।

स्वास्थरित के रीडर डा. एन के वर्मा नहीं हैं। अगादतंत्र के प्रवक्ता डा. विनय सेन नही हैं। शल्य तंत्र के रीडर डा. देवेश शुक्ला नही हैं। शलाक्य तंत्र के रीडर डा. दिलीप कुमार नहीं हैं। कौमारभारतीय के रीडर डा.  देवकीनंदन शर्मा भी नही हैं लेकिन हद तो तब हो जाती है जब सरकारी मंत्रालय के सरकारी वेबसाइट से लेकर कालेज के बोर्ड पर बने हुए हैं। कई विभाग तो एकदम खाली है।

गौरतलब है कि सरकारी वेबसाइट और मेडिकल कालेज के बोर्ड पर मेडिकल की सुविधाओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है। हकीकत और फसाने के बीच लिस्ट में 1 से 6 तक नदारद हैं। जिनमें काया चिकित्सा, पंचकर्म, अगाद तंत्र, रास शास्त्र एंव भाई शाज्य कल्पना, प्रसूति तंत्र एवं स्त्री रोग प्रमूख है। कोर्स भी लेटलतीफी की वजह से 7साल में पूरा होता है।

वेबसाइट पर यूनिवर्सिटी तक की गलत स्पेलिंग लिखी हुई है। सरकार बताती है कि हास्पिटल में 100बेड है। लेकिन 100बेड तो सफेद हाथी की तरह है। सर्जरी का उचित सामान नही है। लेकिन यहां होता है तो सिर्फ हाइड्रोसिल का आपरेशन। बोर्ड पर लिखने के बाद भी जलौका से सर्जरी नही है। एक्सरे मशीन मशीन 10 साल से खराब पड़ा है, दो साल पहले जिले के सांसद  ने वादा किया था एकसरे मशीन ठीक करवाने के लिए और कैम्पस में जल प्याऊ लगवाने के लिए लेकिन आज तक हुआ कुछ नही। यहां एसीजी और पंचकर्म की सुविधा नही है।

लेकिन सूचना बोर्ड पर सुविधा शुल्क लिखा है। स्त्री प्रसूति रोग की एक मात्र प्रो. कंचन गुप्ता अब प्रिंसपल का काम काज देखती हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि इस मेडिकल कालेज में एक दशक से एक भी डिलिवरी नही कराई गयी है। प्रो. कुशवाहा बताते है कि प्रसूता फंड सामुदायिक केन्द्र पर आता है। यहां पढ़ाई कर रहे छात्र बताते हैं कि 15 साल पुरानी एक लाश है जो कि सूखी है।

प्रैक्टिकल और पढ़ाई के किसी काम की नही है। पूरे खेल ग्रांउड में डेढ़ दो हाथ की खतरनाक सरिया आसमान की तरफ निकली हुई है। हर्बल गार्डेन भी पूरी तरह से तहस नहस है। रिकार्ड रुम में सारी फाइलें धूल फांक रही है। चपरासी अनुज कुमार गुप्ता अकेले ही सारे रजिस्टर का कोरम संन्नाटे में पूरा करते मिले। मेडिकल कालेज की वाउन्ड्री वाल टूटी है। पूरा परिसर में गंदगी की भरमार है। भैंसे बंधी हुई हैं। परिसर में कोई भी पक्की सड़क नही है सब कच्चे गड्ढे बने हुए हैं। बैठने की कुर्सी-मेज जब से कालेज बना है तभी की दिखती हैं।

कार्यालय में टूटे फूटी कुर्सियां, मेज, तख्त और गंदगी का अंबार है लगता है कि महीनों से सफाई नही हुई है। पूरे परिसर में पक्की सड़क भी नही है। एंबूलेस सेवा तो कालेज का बोर्ड जानकरी देता है लेकिन कभी परिसर के बाहर नही निकाला गया है, बंद हाल में रखे- रखे सड़ रहा है। शौचालय में इतनी गंदगी है कि बाहर वापस आ जाएं। कैम्पस की साफ सफाई यहां के सरोकारी छात्र करते हैं इतना नही कैम्पस में लगी लाईट/ बल्ब भी वही लगवाते हैं। यहां के हास्टल भी बहुत बदहाल होने से आधा से ज्यादा छात्र परिसर से बाहर रह रहे हैं।

महिला हास्टल और आडोटिरियम लंबे अरसे तो बन रहा है लेकिन पता नही कब बनकर तैयार होगा? गर्मी के कुख्यात बुन्देलखण्ड के इस हास्पिटल की एमरजेंसी में पंखा तक नही है। जबकि दो मरीज भर्ती हैं एक 64साल के बुजुर्ग सुरेश हैं जो अपना दर्द साझा करते हुए कहते है कि एक्सरा मशीन खराब होने ने एक्सरा भी नही हो पाया है। पंखा तो लगा भी नही हैं। इमरजेन्सी में भर्ती दूसरे 50 साल की मरीज रानी देवी खुशनसीब हैं कि उनके परिवार ने एक कूलर पंखा लाकर लगा दिया है।

कालेज की प्रिंसपल प्रो. कंचन गुप्ता से बात करने पर कहा कि इस संबंध में बात करने कि जिम्मेदारी मेडसिन के प्रो. वी के कुशवाहा जी की है। श्री कुशवाहा बात करने पर इन सारी खामियों के लिए कहते हैं कि हम लोग तो अपने स्तर से तो कर रहे हैं बाकि सारी जिम्मेदारी तो आयुष मिनिस्ट्री की है। उनसे बात करें। बोले कि पतंजलि शोध केन्द्र का उद्धाटन करते हुए मा. प्रधानमंत्री जी ने आजादी के बाद आयुर्वेद चिकित्सा के गिरते स्तर पर नाराजगी जताई है। अब इसके भी अच्छे दिन आएंगे।

सबसे हास्यापद यह है कि सरकारी वेबसाइट के मुताबिक चिकित्सा शिक्षा एवं आयुष विभाग अभी भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आज तक संभाल रहे हैं। सवाल उठता है कि बीते दिनों बदहाल बुंदेलखण्ड का चुनावी दौरा कभी पीएम नरेन्द्र मोदी, अखिलेश यादव, राहुल गांधी करते रहें हैं लेकिन वादे दर वादे होते रहे। कैलेण्डर बदलते रहे। नही बदली यहां के रहवासियों की किस्मत। हाल ही में पीएम ने पतंजलि रिसर्च सेन्टर के उद्घाटन के दौरान आयुर्वेद चिकित्सा पर जोर दिया। तो क्या आयुर्वेद चिकित्सा यूनिवर्सिटी रहित यूपी में मेडिकल कालेजों की तस्वीर बदलेगी। क्या यहां की खामियां योगीराज में दूर होंगी। आज भी यक्ष प्रश्न है।

(शाह आलम, बुंदेलखण्ड से लौटकर)