‘नजीब को IS से जोड़ने वाला टाइम्स ऑफ इंडिया का राजशेखर पुलिस का चापलूस है!’

राजशेखर लंबे समय से टाइम्स ऑफ इंडिया में क्राइम रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चूंकि उसी संस्थान के हिंदी अख़बार नवभारत टाइम्स में मैं भी क्राइम रिपोर्टर रह चुका हूं तो राजेशखर झा की कारनामों को थोड़ा क़रीब से देखने और समझने का मौक़ा मिला।

उनकी क्राइम रिपोर्टिंग के चंद नमूने देखने के बाद कोई भी इस नतीजे पर पहुंच सकता है कि बेनेट एंड कोलमैन कंपनी का यह पत्रकार पुलिस का चापलूस है। राजशेखर की कमोबेश सभी तथाकथित एक्सक्लूसिव स्टोरी ‘दिल्ली पुलिस के विश्वसनीय सूत्रों’ के हवाले से लिखी गई होती हैं।

क्राइम रिपोर्टर को पुलिस के किसी भी दावे की पड़ताल ज़रूर करनी चाहिए लेकिन राजशेखर की पत्रकारिता इसके ठीक उलट है। अपनी रिपोर्ट्स में वह दिल्ली पुलिस के ही दावों को बढ़ा-चढ़ाकर लिखते हैं। किसी हाईप्रोफाइल केस में दिल्ली पुलिस प्रेस कांफ्रेंस कर केस की जानकारी पत्रकारों से साझा करती है। मगर राजशेखर का खेल इसके आगे का है। प्रेस कांफ्रेंस की सामान्य सूचनाओं से इतर वह पुलिस के विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से बहुत कुछ सनसनीखेज़ लिख डालते है जिसे बताने की हिम्मत दिल्ली पुलिस अपनी प्रेस कांफ्रेंस में नहीं कर पाती।

राजशेखर की ज़्यादातर स्टोरी पुलिस को ख़ुश करने वाली होती हैं। कभी-कभार क्राइम की सामान्य ख़बरों में राजेशखर दिल्ली पुलिस पर सवाल उठाते हैं लेकिन वो दरअसल अपनी छवि को निष्पक्ष बनाए रखने की एक फूहड़ कोशिश होती है। टेरर से जुड़े मामलों में वह ऐसी स्टोरी नहीं करते जिसमें दिल्ली पुलिस के दावों पर सवाल खड़ा किया जा सके। उलटा उन दावों को सच साबित करने वाली रिपोर्ट्स लिखते हैं।

चार महीने से गायब जेएनयू छात्र नजीब अहमद के आईएस कनेक्शन की फर्ज़ी स्टोरी राजशेखर ने क्यों की, वो बेहतर जानते होंगे। मगर जैसा कि हम देख रहे हैं कि जांच एजेंसी के ऊपर नजीब को ढूंढकर लाने या इस केस से जुड़ी किसी ज़रूरी लीड को सामने लाने का लगातार दबाव बना हुआ है। ऐसे में नजीब के आईएस कनेक्शन की फर्ज़ी स्टोरी जांच एजेंसी के लिए राहत का काम कर सकती थी, अगर इस केस पर नज़र बनाए लोगों ने इस ख़बर के फर्ज़ीवाड़े के ख़िलाफ़ हंगामा नहीं किया होता तो।

जैसा कि मैंने ऊपर बताया है कि राजशेखर दिल्ली पुलिस को ख़ुश करने वाली स्टोरी के लिए जाने जाते हैं, तो ऐसा बिल्कुल हो सकता है कि इस स्टोरी गढ़ने के पीछे उनकी मंशा जांच एजेंसी पर बढ़ते दबाव को हल्का करने की रही हो। अगर इस स्टोरी पर हंगामा नहीं होता तो पुलिस ख़ुश होती। राजशेखर ऐसी ख़बरों के लिए नहीं जाने जाते हैं जिससे दिल्ली पुलिस को परेशान होना पड़े।

इस फर्ज़ी स्टोरी का खुलासा नहीं होता तो वो आरोपी भी मज़े ले रहे होते जिनपर नजीब के साथ मारपीट का आरोप है और जांच एजेंसी पर उनके साथ सख़्ती से पूछताछ करने के लिए बार-बार सड़क पर प्रदर्शन हो रहे हैं।

नजीब का मामला हाईप्रोफाइल है। जेएनयूएसयू वग़ैरह इसकी निगरानी कर रहे हैं, इसलिए इस बार फर्ज़ी स्टोरी प्लांट करने की राजशेखर की चोरी पकड़ ली गई, वरना इन्होंने अपनी रिपोर्टिंग के ज़रिए ऐसे जाने कितने खेल कर डाले हैं।

19 अगस्त 2014 की एक सुबह दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने एक इनामी बदमाश फिरोज़ उर्फ फौजी का सोनिया विहार इलाक़े में एनकाउंटर कर दिया था। मुझे लगा कि यह जानने की कोशिश करनी चाहिए कि पुलिस जिस मुठभेड़ का दावा कर रही है, उसमें कितनी सच्चाई है। कहीं ऐसा तो नहीं कि उस बदमाश को पकड़कर मारा गया?

मैं दफ़्तर के ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट से टैक्सी लेकर मारे गए बदमाश फिरोज़ के घर लोनी निकल रहा था। संयोग से राजेशखर भी टैक्सी लेकर कहीं निकलने की तैयारी कर रहे थे। मैंने उनसे कहा कि इस एनकाउंटर की पड़ताल उन्हें भी करनी चाहिए। जवाब में उन्होंने कहा कि वह क्रिमिनल था। ऐसे लोगों के मानवाधिकर पर बात नहीं होनी चाहिए। मेरे लिए राजशेखर का जवाब हैरानी वाला नहीं था लेकिन इस प्रसंग का ज़िक्र सिर्फ इसलिए ताक़ि राजेशखर की पत्रकारिता का अंदाज़ा लगाया जा सके।

इसी तरह अक्टूबर 2014 में जब दिल्ली का त्रिलोकपुरी इलाक़ा सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में आया तो हमेशा की तरह राजशेखर ने दिल्ली पुलिस के सूत्रों से एक वीडियो हासिल कर लिया। उस वीडियो में सिर पर टोपी लगाए दो-चार लड़के कट्टे से गोलियां दाग रहे थे जिसकी एक इमेज निकालकर टाइम्स ऑफ इंडिया में छाप दी गई।

ऐसा नहीं है कि हिंसा फैलाने वाले वीडियो सिर्फ टोपी लगाए मुस्लिम लड़कों के थे। त्रिलोकपुरी हिंसा के कई सारे वीडियो सर्कुलेट हो रहे थे लेकिन राजशेखर ने ख़ासतौर से जालीदार टोपी लगाए लड़कों की फोटो को आधार बनाकर ख़बर लिखी। तब त्रिलोकपुरी हिंसा में शांति कायम करने के लिए दिल्ली के कई सामाजिक संगठनों ने अपनी बैठकों में इस रिपोर्ट को शर्मनाक क़रार देते हुए हैरानी जताई थी।

कुल मिलाकर ऐसे रिपोर्टर संस्थान के लिए ही धब्बा बन जाते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया को राजशेखर के कामकाज पर ख़ास ध्यान देना चाहिए।

(शाहनवाज़ मलिक चर्चित युवा पत्रकार हैं)