‘ज़ुनैद के ज़ख्मों पर अपने दुपट्टे को बांधकर ख़ून रोकने की कोशिश करने वाली औरत…मीना…एक हिन्दू ही थी’

एक अपील… ( लिखते वक़्त आँखों में आँसू हैं दुखी हूँ इसलिये गुज़ारिश कर रहा हूँ) “न तो हिन्दू न मुसलमान का खूँ बहता है ख़ून बस ख़ून है इनसान का खूँ बहता है..!”

जिस वक़्त ज़ुनैद और उसके दोनों भाई ख़ून से लथपथ स्टेशन पर तड़प रहे थे…उस वक़्त कोई मदद के लिए आगे नहीं बढ़ा…..लेकिन मीना नाम की एक औरत आगे बढ़ी और अपने दुपट्टे के एक किनारे को फाड़कर ज़ुनैद के ज़ख्मों पर बाँधकर बहते हुये ख़ून को रोकने की कोशिश की….

लेकिन अफ़सोस ज़ुनैद ज़िन्दगी की जंग हार गया और उसने स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म की फ़र्श पर दम तोड़ दिया..! बेशक़ मन में गुस्सा है…हम कल पूरे देश में ईद की नमाज़ों के बाद अपना विरोध भी दर्ज करायेंगें.. PM आवास पर प्रोटेस्ट के लिये तारीख़ भी तय करेंगे..! होना भी चाहिये क्योंकि अब पानी सर से ऊपर आगया है…….

लेकिन इन सबके बीच मेरा एक सवाल है आप सबसे.. मेरी अपनी क़ौम के लोगों से…और ख़ासकर नयी पीढ़ी से.. कल ईद है…हम .दिन भर ईद सेलिब्रेट करेंगे.. खुशियाँ मनायेंगे….सेवइयाँ खायेंगे…. लेकिन….कल आप कितने अपने हिन्दू भाइयों, हिन्दू दोस्तों को अपने घर बुला रहे हैं…..अपने कितने हिन्दू भाइयों, हिन्दू दोस्तों, हिन्दू पड़ोसियों को अपनी खुशियों में शामिल कर रहे हैं…?

शायद वही दो चार जिन्हें आपके बाप दादाओं ने अपने परिवार का हिस्सा माना था….या शायद अब उनको भी न बुलाते होंगे..! तुम्हारी ज़िम्मेदारी क्या है…? तुम कौन सा अपने नबी और अपने दीन (इस्लाम) का फ़र्ज़ निभा रहे हो.. अगर तुम ऐसा नहीं कर रहे हो तो फ़िर तुम्हें ये भी कहने का कोई हक़ नहीं है के इस देश का माहौल दिनोदिन बद से बदतर होता जा रहा है… और देश का एक बड़ा बहुसंख्यक तबक़ा तुमसे नफ़रत करता है….! ग़लत हो तुम बहुत ग़लत… तुम्हें भी आज अपनी गिरेबान में झाँकने की ज़रूरत है……

ज़ुनैद के ज़ख्मों पे अपने दुपट्टे को बांधकर ख़ून रोकने की कोशिश करने वाली औरत…मीना… एक हिन्दू ही थी…. आतंकवादी सिर्फ मुसलमान नहीं होते उनकी कोई ज़ात नहीं होती इस पर सबसे पहले आवाज़ उठाने वाला शख़्स शहीद हेमन्त करकरे हिन्दू ही थे…

गुजरात दंगों में 2000 से ज़्यादा लोगों के क़त्ल की लड़ाई लड़ने वाला कोई मुस्लिम नहीं बल्कि तीस्ता सीतलवाड़ एक हिन्दू ही हैं…..सुबह 4 बजे रात तक कोर्ट में याक़ूब मेनन की फाँसी रोकने की कोशिश करने वाले वकील कोई मुस्लिम नहीं हिन्दू ही थे..!

आज भी इस देश का एक बड़ा हिन्दू तबक़ा तुम्हारी हर मुसीबत तुम्हारी हर तकलीफ़ में तुम्हारे साथ खड़ा होना चाहता है ……

अब ज़िम्मेदारी तुम्हारी है के तुम उनमें से कितनी…मीनाओं… तीस्ता सीतलवाड़, हेमंत करकरे, या कितने वकीलों को अपने साथ खड़ा कर सकते हो…. आप इंतज़ार मत करो के तुम्हारी तरफ़ कोई प्यार से हाथ बढ़ाये….तुम ख़ुद बढ़ाओ हाथ उनकी तरफ़…

कल निकलो अपने घरों से और जाओ अपने सभी हिन्दू भाइयों, दोस्तों, और पड़ोसियों के घर, उन्हें लाओ अपने घर, सेलिब्रेट करो उनके साथ भी ईद……..शरीक को उनके हर सुख दुःख में, इज़्ज़त करो उनकी भी बहन बेटियों को अपनी बहन बेटियों की तरह……!

याद रखना जिस दिन तुमने ये शुरुआत कर दी उसी दिन से नफ़रत के सौदागरों की दुकानें बन्द होजायेंगी..! मैं अक्सर लिखता हूँ के इस मुल्क की तहज़ीब यही है के जब कोई जब्बार का इंतकाल होता है तो पड़ोस का गंगा दीन तब तक क़ब्रिस्तान के बगल हाथ बाँधे खड़ा रहता है जब तक के जब्बार के जनाज़े को दफ़ना नहीं दिया जाता….

हमारी तहज़ीब यही रही है के जब भी कोई ज़ुबैदा अपने घर से ससुराल के लिये रूख़सत होती थी उस वक़्त वो अपने बाप के कंधे से लिपटकर रोना भूल जाती थी लेकिन पड़ोस के अलगू काका के कंधे से लिपटकर रोना नहीं भूलती थी…! हमें अपनी इस तहज़ीब को बचाना होगा… तभी ये मुल्क बचेगा..!

क्योंकि…एक हिन्दू कवि उदय प्रताप जी ने कभी कहा था… “न तेरा है न मेरा है ये हिंदुस्तान सबका है नहीं समझी गयी ये बात तो नुक़सान सबका है जो इनमें मिल गयीं नदियाँ वो दिखलायी नहीं देतीं महासागर बनाने में मगर एहसान सबका है..!”

  • शाहज़ादा कलीम