भोपाल: मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड की स्थापना 1998 में हुई थी। उस समय बोर्ड के कामकाज को देखते हुए 32 कर्मचारियों को कलक्ट्रेट पर रखा गया था। लेकिन समय के साथ मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड के कामकाज पर भी असर पड़ा और बोर्ड में कम काम के कारण कर्मचारियों की संख्या कम करके 22 कर दी गई है।
यह 22 कर्मचारी 19 वर्षों बोर्ड में अपनी सेवा दे रहे थे। लेकिन अब एक बार फिर प्रशासन ने लोकायुक्त के जांच का हवाला देते हुए उनमें से 10 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। जिसके खिलाफ कर्मचारियों ने कोर्ट का रुख किया है, जिस पर सुनवाई करते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने स्टे लगा दिया है।
लोगों का कहना है कि जिस उद्देश्य के लिए मदरसा बोर्ड का गठन प्रक्रिया में आया था, उस उद्देश्य से तो बोर्ड दूर हट गया है। न तो बोर्ड से मदरसों को फायदा हो रहा है और न ही उनके बच्चों को जो यहाँ से अपनी अधूरी शिक्षा को पूरा करना चाहते हैं। मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड अब बस विवादों के लिए जाना जाने लगा है।
वहीं मदरसा बोर्ड के कर्मचारियों का कहना है कि वह 17.18 वर्षों से बोर्ड में काम कर रहे हैं, लेकिन सरकार या प्रशासन ने कर्मचारियों के बारे में कभी नहीं सोचा।