इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा : कश्मीर में हमारी परेशानियों के लिए क्या पटेल को दोष देना चाहिए?

विख्यात इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा, ‘जूनागढ़, जहां एक मुस्लिम शासक और हिंदू आबादी थी, में सरदार पटेल ने गृह मंत्री रहते पाकिस्तान से समझौता किया था, तब एक जनमत संग्रह हुआ। यही कारण है कि भारत को 1948 में कश्मीर में जनमत संग्रह करने की पेशकश की गई थी। तो क्या हमें कश्मीर में हमारी परेशानियों के लिए पटेल को दोष देना चाहिए ?

जूनागढ़ पश्चिम भारत के सौराष्ट्र इलाके का एक बड़ा राज्य था। वहां के नवाब महावत खान की रियाया का ज़्यादातर हिस्सा हिंदुओं का था। जिन्ना और मुस्लिम लीग के इशारों पर जूनागढ़ के दीवान अल्लाहबख्श को अपदस्थ करके बेजनीर भुट्टो के दादा शाहनवाज़ भुट्टो को वहां का दीवान बनाया गया था।

गुहा ने अपनी किताब में लिखा हैं कि जिन्ना का जूनागढ़ को लेने का कोई इरादा नहीं था। वे नेहरू के साथ जूनागढ़ के बहाने कश्मीर की सौदेबाज़ी करना चाहते थे। भुट्टो ने महावत खान पर दवाब बनाया कि वह पाकिस्तान में विलय कर ले। 14 अगस्त, 1947 को महावत खान ने जूनागढ़ के पाकिस्तान में विलय का ऐलान कर दिया।

एक महीने बाद जब पकिस्तान ने भी इसे स्वीकार कर लिया, तब सरदार पटेल उखड गए। उन्होंने जूनागढ़ के दो बड़े प्रांत, मांगरोल और बाबरियावाड़ पर ब्रिगेडियर गुरदयाल सिंह के नेतृत्व में सेना भेजकर कब्ज़ा कर लिया।

महावत खान ने काफी छातीकूट किया पर जूनागढ़ की जनता ने उसका साथ नही दिया। इसी बीच कूटनीति का सहारा लेते हुए मेनन भुट्टो से मिले और उन्हें समझाया कि जूनागढ़ की भौगोलिकता और हिंदुओं की बहुलता होने की वजह से उसका पाकिस्तान में विलय कतई तर्कसंगत नहीं है। भुट्टो ने भी दबी-ढकी ज़बान में इसे स्वीकार किया और मेनन को जनमत संग्रह कराने का भरोसा दिलाया, पर यह सिर्फ कोरा भरोसा ही था।