मोदी राज में सुलगा 84 के सिक्ख दंगों का मामला, सिक्खों का छलका दर्द

कानपुर: 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में सिक्खों के खिलाफ दंगे भड़के, जिसकी जांच 33 साल बीत जाने के बाद भी नहीं हुई। इस दौरान केन्द्र में कांग्रेस का शासनकाल भी रहा और 10 साल तक खुद एक सिक्ख प्रधानमंत्री भी रहा लेकिन सिक्खों के साथ इंसाफ नहीं किया गया। मामला आज भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है शायद अल्पसंख्यक होना सिक्खों के लिए इंसाफ में देरी होने की असल वजह है।


उत्तर प्रदेश में कानपुर को मैनचेस्टर सिटी कहा जाता है उद्योग और कलकारखानों की नगरी के नाम विख्यात कानपुर को सिक्ख दंगों की ​वजह से भी जाना जाता है। 1984 के नरसंहार में सिर्फ कानपुर शहर में 127 लोगों की हत्या हुई जो आज सिक्खों के ज़ख्म पर एक नासूर बन चुका है। ये तो केवल एक शहर की बात है इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली सच्चाई तो बाकी शहरों में देखने को मिली थी। कानपुर की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने वाले वकील प्रसून कुमार ने पत्रकारों को बताया कि दंगे में शहर के 127 लोगों की मौत हुई थी। इस मामले में 32 आरोपी हैं। यह संख्या और घट बढ़ सकती है। उन्होंने मांग की है कि इस मामले की जांच एसआईटी या सीबीआई से कराई जाए। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार से उन्हें न्याय की उम्मीद है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई अब 24 अप्रैल को है।


80 फीट रोड स्थित एक होटल में स्वागत समारोह के दौरान पत्रकारों से बातचीत में उन्होेंने बताया कि गुरुद्वारा भाई बन्नो साहिब जीटी रोड के प्रधान मोहकम सिंह ने सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत शहर के सभी थानों से पांच सवाल पूछे थे। थानों से मिली जानकारी के अनुसार 127 लोगों के मरने की बात सामने आई है।
सिक्खों के लिए पूर्व प्रधानमंत्री किसी सदमें से कम नहीं थे मनमोहन सिंह ने 1984 के दंगों से आंखें मूंद ली जिसके कारण सिक्ख स​मुदाय में मनमोहन सिंह की छवि को धक्का लगा और मनमोहन सिंह को मौनमोहन मानकर अपनी किस्मत पर अफसोस करते रहे हैं। लेकिन अब केन्द्र में बीजेपी की सरकार है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सिक्खों के लिए एक नई उम्मीद।
शम्स तबरेज़ सियासत न्यूज़ ब्यूरो