गुजरात के चर्चित सोहराबुद्दीन शेख मुठभेड़ मामले की सुनवाई बीते दो महीनों से मुंबई के विशेष सीबीआई कोर्ट में रोज हो रही है। साल 2005 में हुई सोहराबुद्दीन, उनकी पत्नी कौसर बी व तुलसीदास प्रजापति की हत्या में कथित तौर पर गुजरात पुलिस अधिकारियों का हाथ था। 23 पूर्व पुलिस अधिकारियों सहित अन्य आरोपियों की सुनवाई में अभियोजन पक्ष द्वारा अब तक पेश 41 गवाहों में से 28 गवाह अपने बयान से मुकर चुके हैं।
यह गवाह जो पुणे जिले के सहजपुर इलाके में ढाबे का मालिक है, ने पहले सीबीआई से कहा था कि गुजरात के पुलिसकर्मी एक व्यक्ति को उसके ढाबे में लाये थे जिनकी बाद में सोहराबुद्दीन के सहयोगी तुलसीराम प्रजापति के रूप में पहचान की गई, जो एक कथित फर्जी मुठभेड़ में भी मारे गए थे। ढाबा मालिक इस मामले में 28 वां गवाह हैं, जो मुकर गया है।
सीबीआई के मुताबिक, गवाह ने अपने बयान में कहा था कि गुजरात पुलिस के दो कर्मचारी पहले दो टाटा सुमो वाहनों में ढाबे में आए थे। उन्होंने कहा था कि पुलिसकर्मियों ने उन्हें बताया कि उन्होंने हैदराबाद से एक अपराधी को उठाया है और गुजरात जा रहे हैं। गवाह ने भी आदमी का विवरण दिया था और एक तस्वीर की पहचान की जो प्रजापति की थी लेकिन बुधवार को इस गवाह ने इन सब से इनकार कर दिया।
मालूम हो कि गुजरात के इस चर्चित एनकाउंटर मामले में मुख्य आरोपी के रूप में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत गुजरात पुलिस के कई आला अधिकारियों के नाम थे।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार 29 नवंबर को जब से ट्रायल कोर्ट द्वारा मामले की मीडिया रिपोर्टिंग पर रोक लगाई गई, तबसे अदालत में करीब 41 गवाहों से इस मामले में पूछताछ की थी।
इस दौरान कई पुलिसकर्मियों ने अपने पुराने सहकर्मियों, जो इस मामले में आरोपी हैं, को पहचानने से इनकार कर दिया था। इन गवाहों में वो चश्मदीद भी शामिल हैं, जिन्होंने बयान दिया था कि उन्होंने नवंबर 2005 में सोहराबुद्दीन, कौसर बी और तुलसी प्रजापति को बस से अपहृत होते देखा था। इस बार उन्होंने ऐसा होने से साफ इनकार कर दिया।
इनके अलावा, मुख्य गवाहों में से अपने बयानों में मुकरने वालों में वो पुलिस वाले भी हैं, जिन्होंने कथित तौर पर सोहराबुद्दीन का अपहरण किया, उसकी मुठभेड़ की साजिश रची और फिर उसकी पत्नी कौसर बी को मारा था। इनमें से एक पुलिस कॉन्स्टेबल भी हैं, जो गुजरात की एंटी-टेररिस्ट स्क्वाड (एटीएस) की गाड़ी चलाया करते थे।
सीबीआई के मुताबिक इस कॉन्स्टेबल ने बताया था कि वे नवंबर 2005 में नरसिंह धाबी, संतराम शर्मा और अजय परमार की उस पुलिस टीम का हिस्सा थे, जो हैदराबाद गयी थी। हालांकि कोर्ट में उन्होंने इस बात से इनकार कर दिया और कहा कि वे एटीएस अहमदाबाद का हिस्सा थे लेकिन वे किसी और राज्य में नहीं गए।