सोहराबुद्दीन केस से हटाई गई जज ने आखिर ऐसा क्या कहा था सीबीआई के बारे में?

बहुचर्चित सोहराबुद्दीन केस की रोज़ाना सुनवाई करते हुए जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे को तीन हफ़्ते ही बीते थे कि उन्हें नई ज़िम्मेदारी दे दी गई.

23 फ़रवरी को मुंबई हाई कोर्ट की वेबसाइट पर ये जानकारी दी गई कि जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे अब आपराधिक मामलों की पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई नहीं करेंगी.

इसके ठीक दो दिन पहले 21 फ़रवरी को जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे ने सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस की सुनवाई करते हुए कहा था कि सीबीआई इस मामले में ‘पर्याप्त रूप से सहयोग करने में नाकाम’ रही है.

सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस में कुछ पुलिस अधिकारियों को बरी किए जाने के ख़िलाफ़ दायर की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे ने ये बात कही.

सीबीआई के बारे में क्या कहा था?

जांच एजेंसी की ये जिम्मेदारी है कि वो सभी सबूत अदालत के सामने पेश करे, लेकिन इस मामले में सीबीआई ने कोर्ट की तरफ़ से बार-बार कहे जाने के बावजूद केवल दो अफ़सरों के रोल पर जिरह करने का फ़ैसला किया.

ये दो पुलिस अफ़सर वे हैं, जिनको बरी किए जाने के फ़ैसले का सीबीआई विरोध कर रही है.

“मैं अभियोजन पक्ष के पूरे मुकदमे को अभी तक समझ नहीं पा रही हूं. जांच एजेंसी सीबीआई कोर्ट की पूरी तरह से मदद नहीं कर रही है.”

सीबीआई फ़र्जी मुठभेड़ केस में सब-इंस्पेक्टर और कॉन्सटेबल रैंक के पुलिसवालों की रिहाई का तो विरोध कर रही है, लेकिन ज़्यादातर सीनियर अफ़सरों की रिहाई पर ख़ामोश है.

9 फ़रवरी को जब से इस मामले की सुनवाई शुरू हुई है, कोर्ट ने हर बार सीबीआई को चार्जशीट, गवाहों के बयान और दूसरे दस्तावेज़ पेश करने के लिए कहा. लेकिन हर बार सीबीआई ने यही कहा कि उसके पास ये दस्तावेज़ नहीं है और इन्हें इकट्ठा करने में वक़्त लगेगा.

कौन हैं जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे

पुणे में पैदा हुईं जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई इसी शहर में हुई है.

पुणे यूनिवर्सिटी से एलएलबी करने के बाद उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से एलएलएम की पढ़ाई की थी.

एलएलएम के बाद जस्टिस देरे ने अपने पिता और जाने-माने वकील विजयराव ए मोहिते के साथ पुणे में ही काम करना शुरू किया.

पुणे से वे मुंबई हाई कोर्ट चली गईं और वहां उन्होंने बैरिस्टर राजा एस भोंसले के साथ काम किया.

जस्टिस देरे ने दीवानी, फौजदारी मामलों के अलावा संवैधानिक मामलों में भी पैरवी की. उन्होंने लंबे समय तक सरकारी वकील के तौर पर काम किया.

21 जून, 2013 को उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट में एडिशनल जज के तौर पर नियुक्त किया गया और तीन साल बाद दो मार्च, 2016 को उन्हें स्थाई जज बना दिया गया.

नवंबर 2005 को सोहराबुद्दीन शेख, उनकी पत्नी कौसर बी और साथी तुलसीराम प्रजापति हैदराबाद से एक बस से सांगली आ रहे थे. एक पुलिस टीम ने बस का पीछा कर तीनों को पकड़ा था और उन्हें अहमदाबाद ले जाया गया था. गुजरात पुलिस ने सोहराबुद्दीन को एनकाउंटर में मारने का दावा किया था.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गुजरात पुलिस ने इस कथित एनकाउंटर की जांच की थी. गुजरात पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र देकर इस एनकाउंटर को फ़र्ज़ी बताया था.

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गुजरात के बाहर सुनवाई के लिए भेज दिया था और अब मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत में मामले की सुनवाई हो रही है. सोहराबुद्दीन शेख के सहयोगी तुलसीराम प्रजापति की हत्या के मामले को भी इस जांच में शामिल किया गया था.

हालांकि दोषमुक्त हुए डीजी वंजारा का कहना है कि एनकाउंटर असली था और उन्हें और उनके अधिकारियों को इसमें ग़लत तरीके से फंसाया गया. वंजारा कहते हैं कि वो इस मामले में राजनीति का शिकार हुए थे.

गुजरात पुलिस ने इस मामले में भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा अध्यक्ष अमित शाह को भी साज़िश रचने के आरोप में गिरफ़्तार किया था जिन्हें बाद में अदालत ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया.

साभार- बीबीसी