रक्षाबंधन में हर साल जेल में बंद क़ैदियों को राखी बांधने के लिए उनकी बहनें और परिजन जेल पहुंचते हैं । जेलों में मेले जैसा माहौल होता है लेकिन भोपाल जेल प्रशासन ने अपने रिश्तेदारों से मिलने पहुंचे लोगों के साथ जो बर्ताव किया उससे विवाद खड़ा हो गया है।
नई दुनिया की खबर के अनुसार रक्षाबंधन पर भोपाल की सेंट्रल जेल में अपने परिजनों से मिलने और राखी बांधने पहुंचे लोगों के चेहरे पर ही पहचान के लिए मुहर लगा दी। जेल में परिजनों को कैदियों से मिलने से पहले पहचान चिन्ह के लिए सील हाथ पर लगाई जाती है, ताकि कोई कैदी भीड़ का फायदा उठाकर बाहर न निकल जाए।
सोमवार रक्षाबंधन के दिन यहां बड़े ही अमानवीय तरीके से बच्चों व युवतियों के चेहरे पर ही सील लगा दी गई। मासूम बच्चों के चेहरे पर लगी सील देखकर ऐसा लग रहा था कि या तो वो बंधुआ मज़दूर हैं या कोई वॉन्टेड क्रिमिनल।
चेहरे पर सील लगाए जाने के बाद परिजनों में रोष भी देखा गया, लेकिन वो खामोश रहे क्योंकि उनके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था,अगर हंगामा करते या विरोध करते सील लगाने का तो शायद वो त्योहार ही ना मना पाते।
चेहरे पर सील लगाए जाने की घटना को जेल अधिकारी भी गलत करार दे रहे हैं। जेल अधिकारियों के मुताबिक ऐसा करना न तो जेल मेन्युअल में है और न ही परंपरा में।
एडीजी जेल गाजीराम मीणा ने कहा कि जेल में त्योहार के समय मुलाकातियों की भीड़ रहती है तो उन्हें भीतर जाने के लिए भेजने के पहले पहचान का चिन्ह लगाए जाने की परंपरा है। जो आमतौर पर हाथ पर लगाया जाता है लेकिन इसका जेल मेन्युअल में कोई प्रावधान नहीं है और न ही चेहरे पर पहचान लगाने की परंपरा है।
लेकिन जब जेल अधिकारी ये बात मान रहे हैं कि मुलाकातियों के चेहरे पर सील लगाने की कोई परंपरा नहीं है ना ही मैन्यूअल तो फिर भोपाल जेल में ये कैसे किया गया । क्या वहां सील लगाने वाले कर्मचारी इस बात को लेकर ज़रा भी संवेदनशील नहीं थे ।