‘कल को वे देश की तमाम मस्जिदों पर कुदाल लेकर कूद पड़ें तो फिर कोर्ट कहेगा,’जाइए बाहर समझिए’

कल को वे देश की तमाम मस्जिदों पर कुदाल फावड़ा लेकर कूद पड़ेंगे। फिर कोर्ट कहेगा ,’जाइए बाहर समझ लीजिए।’ यह सेक्यूलर बनाम कम्युनल की लड़ाई नहीं न तो कमंडल बनाम मंडल की है, यह भारत के पचीस करोड़ मुसलमानों की धार्मिक पहचान का सवाल है।

मुसलमानों की सुरक्षा का सवाल है। बाबरी को ध्वस्त करना सिर्फ मस्जिद गिराना नहीं बल्कि इस देश में अंग्रेजी हुकूमत खत्म हो जाने के फौरन बाद मुसलमानों को गुलाम बनाने और डरा कर चुपचाप रहने की धमकी थी।

बाबरी की जगह राम मंदिर बने या न बने, बीजेपी को फायदा हो या न हो, मैं हमेशा बाबरी मस्जिद को उसी जगह पर देखना चाहता हूं जहां वह पहले से मौजूद थी। यह मुसलमानों की आस्था का प्रश्न नहीं अपितु मुसलमानों के साथ हुए बहुसंख्यक अन्याय का संवैधानिक पक्ष है। आप यदि बाबरी के पक्ष में नहीं खड़े हैं तो आपकी न्यायप्रियता, बंधुत्व तथा सामाजिक समरसता जैसे मूल्यों के विरोधी है धार्मिक कट्टरता के समर्थक हैं। बाक़ि आप ताक़तवर हैं, आपके पास लोकसभा और विधानसभा में वह जादुई आंकड़ा है जिसके बल पर आप इस मुल्क की एक बड़ी आबादी के साथ अन्याय कर सकते हैं। शौक से कीजिए।

इतिहास गवाह रहा है कि हर दौर के हुक्मरानों ने हर दौर में अपनी ही जनता पर जुल्म ढाए हैं। आप कोई नए नहीं। और वक्त इस बात की भी चीख कर गवाही देता आया है कि लोग उठे हैं, नस्लें बर्बाद हुई हैं फिर भी उनकी पहचान कोई मिटा नहीं सका।

आप पचीस करोड़ लोगों की पहचान और उनके अस्तित्व के साथ खेलेंगे तो खेल दो तरफा होगा। हार या जीत चाहे जिसकी हो देश का भला नहीं होगा। बेहतर है कि सत्ता के नशे में ऐसा कुछ मत कीजिएगा, सत्ता मिली है तो इंसाफ कीजिएगा। कोशिश करके देखिए। इंसाफ की लत इस समाज को है। बस अफसोस की इंसाफ कोई करता नहीं है।

  • मोहम्मद अनस