मुस्लिम समाज अहम मुद्दे तीन तलाक़ पर सुप्रीम कोर्ट ने आह बड़ी टिपण्णी की है। कोर्ट ने दूसरे दिन भी इस मसले पर सुनवाई जारी करते हुए कहा कि शादी ख़त्म करने का यह सबसे ख़राब और अवांछनीय तरीका है।
न्यायमूर्ति जोसेफ कुरियन, आरएफ नरीमन, यूयू ललित तथा अब्दुल नजीर की सदस्यता वाली पीठ ने इस मामले में विचारणीय मुद्दे तय करते हुए कहा कि हम इस पर गौर करेंगे कि क्या तीन तलाक पवित्र है और क्या इसे मौलिक अधिकार की तरह लागू किया जा सकता है।
कोर्ट ने अपनी यह राय उस वक्त रखी, जब पूर्व केंद्रीय मंत्री और सीनियर वकील सलमान खुर्शीद ने बेंच को कहा कि इस मुद्दे की न्यायिक समीक्षा की जरूरत नहीं है।
खुर्शीद ने बताया, ‘मुस्लिमों की शादी के निकाहनामे में एक शर्त डालकर महिलाएं तीन तलाक को ना भी कह सकती हैं।’
बता दें कि खुर्शीद इस मामले में कोर्ट के लिए अमीकस क्यूरी (निजी तौर पर कोर्ट की मदद करने वाले वकील) की भूमिका निभा रहे हैं।
अदालत ने खुर्शीद से उन इस्लामिक और गैर इस्लामिक देशों की सूची देने के लिए कहा, जहां तीन तलाक पर बैन लगाया गया है।
इसके बाद, बेंच को बताया गया कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, मोरक्को, सऊदी अरब जैसे देश शादी खत्म करने के तरीके के तौर पर तीन तलाक को मान्यता नहीं देते।
वहीं, तीन तलाक पीड़ितों में से एक की ओर से अदालत में पेश सीनियर वकील राम जेठमलानी ने इस प्रथा की कठोर शब्दों में आलोचना की। जेठमलानी ने तीन बार तलाक को ‘घृणित’ बताते हुए कहा कि यह महिलाओं को तलाक का समान अधिकार नहीं देता।
कोर्ट ने कहा, ‘तीन तलाक का अधिकार सिर्फ पुरुषों के पास है, महिलाओं को नहीं। यह संविधान के बराबरी के अधिकार से जुड़े आर्टिकल 14 का उल्लंघन है।’
जेठमलानी ने कहा, ‘शादी तोड़ने के इस तरीके के पक्ष में कोई दलील नहीं दी जा सकती। शादी को एकतरफा खत्म करना घिनौना है, इसलिए इससे दूरी बरती जानी चाहिए।’
उन्होंने कहा, ‘तीन तलाक लिंग के आधार पर मतभेद करता है और पवित्र कुरान के सिद्धांतों के खिलाफ है। कितनी भी दलीलें दी जाएं, लेकिन इस पाप से भरी घिनौनी प्रथा का बचाव नहीं किया जा सकता।’