सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात राज्य में साल 2002 में हुए दंगों के संबंध में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की तरफ से 15 साल पहले दाखिल की याचिका की निगरानी बंद कर दी है। ये याचिका गुजरात दंगों से जुड़े मामलों की सुनवाई राज्य से बाहर करवाने के लिए दायर की गई थी।
इस याचिका का आधार अन्य निर्देशों के अलावा दोषपूर्ण जांच को भी बताया गया था। इस याचिका के बाद ही 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी निगरानी में गोधरा दंगों के नौ प्रमुख मामलों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने के निर्देश दिए थे।
इस संबंध में ताजा आदेश 23 जुलाई को जारी किया गया था। ये आदेश दो हफ्ते पहले उन नौ मामलों में से एक नरोदा ग्राम मामले की सुनवाई करने वाली विशेष दंगा कोर्ट को मिला था। आदेश में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट अब इन मामलों की और अधिक निगरानी नहीं करेगी।
कोर्ट ने एसआईटी से कहा है कि वह अपने बुद्धि-विवेक के आधार पर मामले को अंत तक ले जाए। इस आॅर्डर की पड़ताल द इंडियन एक्सप्रेस ने की है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा है कि स्पेशल कोर्ट अब नरोदा गाम मामले की सुनवाई 16 अक्टूबर 2018 से पहले पूरी करे।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में याचिका संख्या 109-2003 की निगरानी को बंद करने का आदेश दिया है। आदेश में लिखा है कि समय-समय पर दिए गए आदेशों का अध्ययन करने के बाद हमें लगता है कि याचिकाओं का उद्देश्य पूरा हो चुका है और अब आगे अधिक आदेशों की जरूरत नहीं है।
यह भी कहा गया है कि अगर किसी भी समय इस कोर्ट के दखल की जरूरत पड़ेगी तो कोई भी पक्ष अपनी शिकायत लेकर कोर्ट के पास आ सकता है। शुक्रवार को, एसआईटी सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में पूछेगी कि क्या उसे अब भी सुप्रीम कोर्ट को नरोदा गाम मामले और अन्य दंगों के मामलों में दाखिल याचिकाओं और मुकदमों की कार्यवाही के संबंध में समय-समय पर प्रगति रिपोर्ट भेजनी होगी?
बता दें कि दंगों के बाद गुजरात सरकार पर मुकदमों के साथ छेड़छाड़ का आरोप लगा था। इसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इन घटनाओं का स्वत: संज्ञान लिया था।
आयोग ने ही सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक याचिका (109-2003) दायर की थी। ये मामला तब दायर किया गया था। जब वड़ोदरा के बेस्ट बेकरी हत्याकांड के मामले में सभी आरोपी बरी हो गए थे।