JNU: रिसर्च सीटों में कटौती पर छात्र बोले, मोदी जी जब रिसर्च नहीं होगी तो हम कैसे विश्वगुरु बनेंगे?

जेएनयू देशभर के 58 केन्द्रों पर प्रवेश परीक्षा करवाता है! देश के कोने-कोने से हर साल क़रीब 1100 स्टूडेंट्स ये परीक्षा देकर एडमिशन लेते हैं! लेकिन इस बार मात्र 100 से 120 स्टूडेंट्स ही आ सकेंगे! मेरे सेंटर में जहाँ हर साल 60-65 स्टूडेंट्स आते थे इस बार मात्र 1 स्टूडेंट प्रवेश ले सकेगा!

क्योंकि यहाँ का सनकी वाइस चांसलर जेएनयू को बर्बाद करने पर तुला है! तर्क ये दिया जा रहा है कि यहाँ एक प्रोफेसर के पास रिसर्च करने वाले स्टूडेंट्स की संख्या UGC के द्वारा तय सीमा से अधिक हैं! न प्रॉब्लम प्रोफेसर को है और न ही स्टूडेंट को, बस दिक्क़त वाईस चांसलर को है! ऐसा भी नहीं कि UGC का वो मानक कोई एक्ट अथवा क़ानून है जिसका उल्लंघन होने पर कुछ असंवैधानिक अथवा अपराध हो जायेगा! सीटें कम होंगी तो किसका नुकसान होगा? ग़रीब, जिसकी ग़ैरअंग्रेजीभाषी देश के दूर-दराज़ के स्टूडेंट्स ही न?

मने सोचिये कि स्टूडेंट्स इतनी कठिन परीक्षा देकर एडमिशन के लिए तैयार हैं लेकिन ये महाशय अपनी खोपड़ी में कुछ और भी शिक्षा-दर्शन भरे हुए हैं! स्टूडेंट्स अधिक हैं तो भाई प्रोफेसर की ख़ाली सीटें भरो, नये प्रोफेसर भर्ती करो! वैसे भी देश में रिसर्च करने वाले स्टूडेंट्स का अनुपात 300 में से 1 ही है (अर्थात 300 बच्चे ग्रेजुएशन में एडमिशन लेते हैं तो उनमे से बस 1 ही पीएचडी तक की पढ़ाई तक पहुँच पाता है)!

हर साल 80 हज़ार स्टूडेंट्स यहाँ एडमिशन पाने के लिए फॉर्म भरते हैं. लेकिन इस बार कितने भरेंगे सोचो! देश के प्रधानमन्त्री मोदी जी इस बात का बहुत रोना रोते हैं कि इंडिया से ब्रेनड्रेन हो जाता है वरना हम विश्वगुरु होते! अरे मोदी जी जब रिसर्च नहीं होगा तो हम कैसे विश्वगुरु बनेंगे? सारी यूनिवर्सिटीज़ में सीट कट, फण्ड कट, स्कालरशिप कट से कैसे विश्वगुरु बनेंगे हम?

(नोट- यह लेख कन्हैया कुमार की फेसबुक वॉल से लिया गया है, सियासत हिंदी ने इसे अपनी सोशल वाणी में जगह दी है)