भाजपा नेताओं को दूसरों की आँख का तिनका नज़र आता है, पर अपनी आँख की शहतीर नहीं। गैर भाजपा वाले राज्यों को उन्हें जंगलराज कहने में कोई परहेज़ नहीं होता लेकिन अपने राज्यों के करतूतों पर उनकी नज़र नहीं जाती। अच्छे दिनों और विकास का सपना दिखा कर 2014 में मोदी ने मैदान मार लिया, लेकिन वह सच होता नजर नहीं आता।
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सरकार दो नावों पर सवार है, जिनका कोई मेल नहीं विकास और हिंदुत्व का कोई जोड़ नहीं हो सकता। यही वजह है कि पिछले साढ़े तीन सालों में देश और अवाम को विकास के नाम पर बड़े बड़े दावों और दिलफरेब नामों वाली योजनाओं से तो कुछ हासिल न हुआ लेकिन साप्रदायिकता के तांडव से हिंसा और नफरत की राजनीती को जो बढ़ावा मिला इसका उदाहरन अतीत में कहीं नहीं मिलता।
गौ रक्षा के नाम पर भीड़ हिंसा, ज़ात पात और धर्म के नाम पर हत्या, भगवा संगठनों के प्रति सरकार और पुलिस का रवैया नर्म, बेबाक पत्रकारों की हत्या कि जांच में एजेंसियों की नाकामी, संघी राष्ट्रवाद पर पूरा न उतरने वालों पर और सरकार की आलोचना करने वालों को देशद्रोही का प्रमाण देना, यह वह सौगात हैं जिनसे मोदी का दौरे इबारत है।
सरकार, पुलिस और जाँच एजेंसियों के नर्म रवैये और मोदी की ख़ामोशी से भगवावादियों के हौसले इतने बढ़ गये हैं कि वही बातें जो भाजपा नेता गैर भाजपा राज्यों के बारे में कहते थे अब उनके राज्यों में साबित हो रही हैं। जहाँ सिरों कि बोलियाँ लग रही हैं। कान काटने और टांगे तोड़ने की धमकियां दी जा रही हैं।
खालिद शेख़