भारत और पाकिस्तान में मौजुद क़ादियानी मुसलमान को हज जाने पर क्यों है रोक

क़ादियान भारतीय पंजाब में अमृतसर के उत्तर-पूर्व में गुरदासपुर ज़िले का चौथा बड़ा शहर है। 1530 में मिर्ज़ा हादी बेग़ ने यह स्थान को बसाया था। संस्था के संस्थापक मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने 13 मार्च 1903 में इसकी नींव रखी। अहमदिया एक धार्मिक आंदोलन है, जिसे ‘कादियानी’ भी कहा जाता है जो 19वीं सदी के अंत में भारत में आरम्भ हुआ था. क़ादियान को अहमदिय्या मुस्लिम जमात की नींव रखने वाले मिर्ज़ा हादी बेग़ का जन्मस्थान होने पर यह वैश्विक स्तर पर पहचान रखता है। अहमदिया जमात का मुख्य दफ़्तर यहाँ है। क़ादियाँ क़सबे की बुनियाद मुग़ल ख़ानदान के मिर्ज़ा हादी बेग़ ने 1530 में रखी थी। बादशाह बाबर ने ज़माने में मिर्ज़ा हादी बेग़ का ख़ानदान समरक़न्द से भारत में आया था

इस पंथ के अनुयायियों का मानना है कि मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ख़ुद नबी के ही एक अवतार थे. उनके मुताबिक़ वे खुद कोई नई शरीयत नहीं लाए बल्कि पैग़म्बर मोहम्मद की शरीयत का ही पालन कर रहे हैं लेकिन वे नबी का दर्जा रखते हैं. मुसलमानों के लगभग सभी संप्रदाय इस बात पर सहमत हैं कि पैगम्बर मोहम्मद ख़ुदा के भेजे हुए अन्तिम पैगम्बर हैं और नबी का सिलसिला उनके आने के बाद ख़त्म हो गया है.

लेकिन अहमदियों का मानना है कि मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद नबी का दर्जा रखते हैं. बस इसी बात पर मतभेद इतने गंभीर हैं कि मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग अहमदियों को मुसलमान ही नहीं मानता. हालांकि भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन में अहमदियों की अच्छी ख़ासी संख्या है. पाकिस्तान में तो आधिकारिक तौर पर अहमदियों को इस्लाम से ख़ारिज कर दिया गया है. मुसलमान इसे काफिर मानते हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डॉक्टर अब्दुस सलाम पाकिस्तान के पहले और अकेले वैज्ञानिक हैं जिन्हे फिज़िक्स के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था। वह एक अहमदिया मुस्लिम ही थे। महेरशला अली अभिनय के लिए ऑस्कर जीतने वाले पहले मुस्लिम अभिनेता थे। इस तरह दुनिया अहमदिया को अच्छी तरह जानते हैं.

इस समुदाय के लोग अपनी ऐतिहासिक मान्याताओं, परंपराओं व उन्हें विरासत में मिली शिक्षाओं व जानकारियों के अनुसार हज़रत मोहम्मद को अपना आखरी पैगम्बर स्वीकार नहीं करते। इसके बजाए इस समुदाय के लोग मानते हैं कि नबुअत (पैगम्बरी ) की परंपरा रूकी नहीं है बल्कि सतत जारी है। अहमदिया सम्प्रदाय के लाग अपने वर्तमान सर्वोच्च धर्मगुरु को नबी के रूप में ही मानते हैं। इसी मुख्य बिंदु को लेकर अन्य मुस्लिम समुदायों के लोग समय-समय पर सामूहिक रूप से इस समुदाय का घोर विरोध करते हैं तथा बार-बार इन्हें यह हिदायत देने की कोशिश करते हैं कि अहमदिया समुदाय स्वयं को इस्लाम धर्म से जुड़ा समुदाय न घोषित किया करें और इस समुदाय के सदस्य अपने-आप को मुसलमान अवश्य न कहें।.

अहमदिया मुसलमानों की जो मान्यता है, की इसी वजह से दूसरे मुसलमान अहमदिया को मुसलमान नहीं मानते और सऊदी अरब ने उनके हज करने पर रोक लगा रखी है. अगर वे हज करने के लिए मक्का पहुँचते हैं तो उन्हें गिरफ़्तार होने और डिपोर्ट होने का ख़तरा रहता है.