ईश्वर-अल्लाह दोनों की इबादत करते हैं मोहिद मौलवी, कोई मौलवी, तो कोई कहता है महात्मा

सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वालों को मोहिद मौलवी से प्रेरणा लेने की जरूरत है। वे सबको ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम, सारा जग उसकी संतान’ का पैगाम बांट रहे हैं। धोरैया प्रखंड के अल्पसंख्यक बहुल गांव सिंगारपुर निवासी मोहिद अंसारी को कोई मौलवी तो कोई महात्मा कह कर पुकारता है। वह अक्सर लोगों को यह संदेश देते हैं कि चाहे इस्लाम हो या सनातन धर्म, सबका सार सदाचार-परोपकार है। एक ही देश की माटी में पले-बढ़े सभी हिंदू- मुसलमान भाई एक ही बागवान के दो फूल हैं।

मोहिद मोजार ने बताया कि उनके दादा दासू अंसारी उर्फ दासू मियां ने उन्हें ऐसी ही शिक्षा दी थी। मोहिद के पिता स्व. शमशुल अंसारी भी लोगों के बीच यही ज्ञान बांटते थे। इस काम में मोहिद की पत्नी बेगिया खातून भी उनका पूरा साथ देती हैं। दंपती ने बताया कि बाल-बच्चों के साथ सभी लोग नियमित रूप से नमाज की नियामत रखते हैं तो भगवान के नाम का सुमिरन करना नहीं है।

ये लोग आस-पड़ोस के गांवों में हिन्दू समुदाय के भजन-कीर्तन समारोह में भी शिरकत करते हैं। इन्होंने बताया कि बाराहाट प्रखंड के औराबारी गांव के सत्संग भवन में उनका परिवार सत्संग भी करता है। हारमोनियम, कैशियो आदि साजों पर देवी गीत गाकर ये भक्ति की महिमा का भी बखान करते हैं। दंपती ने बताया कि ऐसा करने के कारण कई बार उन्हें परेशानी भी हुई। समाज द्वारा कई बार उन्हें यातना भी दी गई, लेकिन उनकी आस्था पर कोई फर्क नहीं पड़ा।

मोहिद ने बताया यदि सभी लोग एक-दूसरे के धर्मो का आदर करना सीख लें तो दंगा-फसाद जड़ से समाप्त हो जाएगा। इससे समाज में जहां लोगों के बीच जात-पात की भावना खत्म होगी, वहीं लोगों में भाईचारा भी बढ़ेगा।

ग्रामीण मोहम्मद राजा ने कहा कि मोहिद अंसारी की भक्ति भावना लोगों के लिए प्रेरणादायक है। समाज में सबका अपना-अपना धर्म होता है। मोहिद के कार्यो में समाज कोई दखलअंदाजी नहीं कर रहा है। वहीं मोहम्मद शाहिद ने कहा कि इस्लाम में मूर्तिपूजा वर्जित है, लेकिन मोहिद और उनका परिवार भजन-कीर्तन में भी शामिल होता है। लोगों के बीच उनकी अच्छी पैठ है। समाज को इससे कोई लेना- देना नहीं है।