इस बात पर किसी को चिंता नहीं थी कि तीन तलाक से संबंधित बिल संसद में मंजूर हो जायेगा, लेकिन जिस तरह से यह बिल मंजूर किया गया वह जरूर हैरान करने वाला और अफसोसनाक था। जब से सरकार ने तीन तलाक का मुद्दा छेड़ा था, मुस्लिम पर्सनल ला और उलेमाओं ने यह कहकर सरकार के रुख का विरोध किया कि वह शरियत में किसी भी तरह का दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं करेंगे।
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मगर यह सारी संगठनें और नेता अदालत का फैसला आने के बाद कुछ नहीं कर सके बल्कि उनके शब्द बदले हुए नजर आने लगे। जब सरकार ने अदालत की हिदायत के मुताबिक संसद में बिल पेश करने का फैसला किया तब भी अख़बारों में लेख लिखे गये और बैठक करके प्रस्ताव मंजूर किए गये और इस बिल के विरोध का इरादा किया गया।
मगर संसद में पेश किए गये बिल को सड़कों पर प्रदर्शन करके नहीं रोका जा सकता। इसके लिए संसद में आपकी संख्या होना जरूरी है। विपक्ष की ओर से किसी तरह की कोई उम्मीद वैसे भी नहीं थी, क्योंकि वह भारतीय जनता के साझा मुद्दे पर भी संसद में अबतक बेअसर साबित हुई है। और गुजरात चुनाव के बाद तो कोंग्रेस के एक बड़े तबके ने यह स्वीकार कर लिया है कि उन्हें अब मुस्लिम वोटरों की ज़रूरत नहीं है।
नादिर