तीन तलाक़ तो फ़क्त बहाना है, बहुत सी चीजों पर निशाना है

तीन तलाक पर सज़ा तक का ही मामला नहीं है, बल्कि और भी बहुत सी बातें हैं जिनको पूरा करने के लिए तीन तलाक मामले के सहारे और बहाने से उद्देश्य है।

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भगवा रंग, मदरसों में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर लगाने वगैरह की प्रतीकों वाली राजनीति से देश के सामाजिक और संस्कारी प्रणाली को समाप्त करने की योजनाबद्ध अभियान चलाई जा रही है।

तीन तलाक बिल राज्यसभा में फ़िलहाल पास नहीं हो सका है। जबकि ऑर्डिनेंस का इस्तेमाल करके मकसद हासिल की जाएगी, ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ के योजना से विचारधारा का तो पता चल ही गया है। इस विचारधारा का संबंध सिर्फ किसी एक राजनितिक पार्टी को सामने से हटाने से नहीं है, बल्कि हर ज़िन्दगी के हर पहलु में एक खास तरह की जीवन प्रणाली व विचार को जारी करके देश, समाज को एक खास मोकाम पर ले जाने का ज़हन पूरी तरह कार्यरत है।

आखिर जिस समुदाय से संबंधित कानून बनाया जा रहा है उसके किसी प्रतिनिधि, संस्था या हस्तियों से वार्ता, सलाह व मशवरा से गुरेज़ क्यों है? विभिन्न विचारधारा रखने वाली विपक्षी पार्टियों के प्रस्ताव पर ध्यान क्यों नहीं दी जाती है?

मौजूदा सरकार गठन होने के तुरंत बाद विश्व हिन्दू परिषद के अशोक सिंघल ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि मुस्लिम वोटरों के बगैर भी सरकार बन सकती है। उसका साफ मतलब था कि मुस्लिम समाज के अलग वजूद और पहचान के कोई मायने नहीं हैं।