आज दो चाँद निकले हैं एक साथ!

आज से 1447 साल पहले 570 ईस्वी में यानी अब्रहा के हाथी के झुण्ड की तबाही के एक साल बाद जिहालत की अंधेरों की चीर कर एक पवित्र माँ की आगोश में एक पवित्र चाँद निकला। जिस पर अल्लाह ने अपने नुबुव्वत का सिलसिला खत्म करने का फैसला लिया।

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मक्का की घाटियों में उतरने वाले उस चाँद को ज़ाहिरी तौर पे तो यतीम समझा लेकिन वास्तविकता यह थी कि बनी हाशिम का यह यतीम कयामत तक आने वाले हर यतीम के आंसू पोंछ के उसमें मोहब्बतों के चाँद सितारे भरने को आया था।

फलक पर चमकने वाला चाँद झुक झुक कर सलाम कर रहा था उस चाँद को जो सदियों से कुचली जा रही समुदाय को एक नई रौशनी से रोशन करने के लिए जमीन पर उतारा गया है।

जिंदा दफन जी जाने वाली लड़कियों के ढांचे यकीनन रसूल PUBH के मौके पर चीख चीख कर कह रहे होंगे कि काश हमारे क़त्ल से पहले जमीन पर रहमतुल लील आलिमीन का जुहूर होता और हम मिटटी के बोझ तले अपनी जिंदगी की आखिरी साँस लेने पर मजबूर न होते। हमें तो यकीन है कि आज भी गर्भ में जो लड़कियां मार दी जाती हैं वह भी या मुहम्मद PBUH या मुहम्मद PBUH की आवज़ लगाती होंगी और फरियाद करती होंगी कि ए अल्लाह के रसूल हम को भी नई जिंदगी अत कीजिये।