‘आरोपियों के समर्थन की परंपरा, पूरे समाज के लिए खतरनाक साबित हो सकता है’

उन्नाव और कठुआ में होने वाली सामूहिक बलात्कार की 2 वारदातों ने इस समय पूरे देश को झिंझोड़ कर रख दिया है। इसकी सबसे अहम वजह है सत्ता वर्ग का रवैया जो सीधे सीधे आरोपियों को बचाने का नजर आ रहा है।

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बलात्कार के मामले इससे पहले भी हुए हैं लेकिन उनके संबंध से कभी सत्ता वर्ग ने एसी बेहिसी का प्रदर्शन नहीं किया था जैसा कि अब कर रही है। इस बेहिसी के पीछे सबसे बड़ी वजह उन घटनाओं में खुद सत्ता वर्ग से संबंधित लोगों का शामिल होना बताया जा रहा है।

कश्मीर के कठुआ में होने वाली वारदात चार माहीने पहले की है लेकिन हाल ही में मंज़रे आम आई है, लेकिन उससे न वारदात की गंभीरता कम होती है और न पुलिस और अधिकारीयों की ज़िम्मेदारी कि वह दोषियों को अंजाम तक पहुंचाएं। कठुआ में जिस बेदर्दी और दरिंदगी का प्रदर्शन आठ वर्षीय बच्ची के साथ किया गया वह किसी भी समृद्ध समाज में स्वीकार नहीं है।

उसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है, लेकिन उसके बाद पीड़ितों को डराने, धमकाने, उन्हें किसी भी कीमत पर खामोश बिठाने का जो सिलसिला शुरू हुआ है, उसे किस खाने में फिट किया जाये। क्या किसी समृद्ध समाज में आरोपियों को बचाने की कहीं कोई मिसाल मिलती है? पुलिस की दर्जा किये चार्जशीट से जो विवरण सामने आए हैं वह दिल दहला देती है। इसके बावजूद उन आरोपियों को बचाने की कोशिश होती है तो हमें समाज के संयुक्त जमीर के बारे में बहुत कुछ सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा।