जेल अफसर ने उठाए सेना और सरकार पर सवाल, कहा- आदिवासी बच्चियों को निर्वस्त्र कर करंट लगाया जाता है

बीते दिनों सुकमा नक्सली हमले में शहीद हुए 26 जवानों की घटना के बाद रायपुर सेंट्रल जेल के असिस्टेंट जेल सुपरिन्टेन्डेन्ट वर्षा डोंगरे ने अपनी फेसबुक वॉल पर एक पोस्ट लिखी है। वर्षा की इस पोस्ट ने काफी बवाल मचा दिया है।

दरअसल इस पोस्ट में वर्षा ने बस्तर के हालात बयान करते हुए राज्य सरकार पर सवाल खड़े किए हैं। वर्षा की इस पोस्ट पर जेल के डायरेक्टर जनरल गिरधारी नायक ने जांच के निर्देश दिए हैं।

फेसबुक पोस्ट में वर्षा ने लिखा है 

मुझे लगता है, एक बार हम सबको अपना गिरेबान झांकना चाहिए। सच्चाई खुद-ब-खुद सामने आ जाएगी। घटना में दोनों तरफ से मरने वाले अपने देशवासी हैं, भारतीय हैं, इसलिए कोई भी मरे तकलीफ हम सबको होती है।

पूंजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में लागू करवाना, उनके जल-जंगल-जमीन को बेदखल करने के लिए गांव का गांव जला देना, आदिवासी महिलाओं के साथ दुष्कर्म, आदिवासी महिला नक्सली हैं या नहीं, यह जानने के लिए उनके स्तनों को निचोड़कर देखा जाता है।

टाइगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों को उनके जल-जंगल-जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है,। जबकि संविधान की पांचवी अनुसूची के अनुसार किसी सैनिक या सरकार को इसे हड़पने का हक नहीं है। आखिर ये सब कुछ क्यों हो रहा है? नक्सलवाद का खात्मा करने के लिए… लगता नहीं।

वर्षा ने लिखा है कि मैंने जेल में खुद बस्तर की 14 से 16 साल की आदिवासी बच्चियों के साथ दुर्व्यवहार होते हुए देखा था।

उन्हें जेल में लाकर निर्वस्त्र कर उनके शरीर पर करंट लगाए जाते थे और प्रताड़ित किया जाता रहा है।

इतनी छोटी बच्चियों के साथ थर्ड डिग्री टॉर्चर जोकि किसी किसी संगीन जुर्म के आरोपी को भी नहीं दिया जाता। आखिर ऐसा क्यों ? मैंने डॉक्टर से सही इलाज करने के लिए कहा भी था।

सच तो यह है, जिन जंगलों में ये आदिवासी लोग रहते हैं। यहीं पर काफी सारे प्राकृतिक संसाधन हैं। जिसे पूंजीपतियों को बेचने के लिए खाली करवाने की योजनाएं बन रही है।

लेकिन आदिवासी लोग इसे खाली नहीं करेंगे क्योंकि यह उनकी मातृभूमि है। वे भी इलाके से माओवाद मिटाना चाहते हैं।

लेकिन देश के रक्षक ही उन लोगों की बहू-बेटियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उनके घरों को आग लगाई जा रही हैं, उन्हें फर्जी केसों में फंसाकर जेल में भेजा जा रहा है।

ये सब मैं नहीं कह रही, बल्कि सीबीआई रिपोर्ट और सुप्रीम कोर्ट भी कहती हैं कि जो भी आदिवासियों की समस्या का समाधान की कोशिश करते हैं, चाहे वह सोशल एक्टिविस्ट हो या ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट और या फिर पत्रकार, उन्हें फर्जी माओवादी केसों में जेल में सड़ने के लिए भेज दिया जाता है।

वर्षा ने पोस्ट में सुझाव देते हुए लिखा, कानून किसी को किसी पर अत्याचार करने के हल नहीं देता है। इसलिए सभी को जागना होगा। आदिवासियों का विकास जैसा उन्हें चाहिए उसी तरह से होना चाहिए। विकास के नाम पर उन पर जबरदस्ती कुछ भी न थोपा जाए।

वर्षा की इस पोस्ट पर प्रतिकिया देते हुए ज्यादातर लोगों ने उनका समर्थन किया है। लोगों का कहना है कि बस्तर में जो भी हो रहा है वो आदिवासियों के हित में नहीं है और सरकार राज्य में नक्सलवाद की समस्या से निपटने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही।

ऐसा लगता है सरकार आँखें मूँद कर बैठी है और इसका हल तलाशना नहीं चाहती।