सीरिया संकट की सच्चाई सिर्फ़ कड़वी ही नहीं, बेहद बदसूरत भी है- अख़लाक़ अहमद उस्मानी

साल 2015 की दो सितम्बर को भूमध्य सागर के तुर्की के बोदरुम किनारे मिला तीन साल का बच्चा अलान कुर्दी तो याद होगा आपको? लाल कपड़ों में सैंडल के साथ समंदर किनारे मृत मिले इस बच्चे की तस्वीर ने दुनिया भर में मानवता को हिला दिया था।

कुछ वैसा ही अलग़ुता में हो रहा है। सीरिया की राजधानी दमिश्क़ से सिर्फ़ 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अलग़ुता से आ रही ख़बरों और तस्वीरों से एक बार फिर आम सीरियाई नागरिकों की स्थिति पर व्यापक वैश्विक चर्चा हो रही है।

साल 2011 में एक पत्रकार दल के साथ मैंने सीरिया की यात्रा की थी तो अलग़ुता से यूँ ही गुज़र जाने पर किसी को कोई ख़ौफ़ नहीं था लेकिन क्या वाक़ई आज यह मुमकिन है? वर्तमान तस्वीरें डरा तो रही हैं और मीडिया भी बहुत बेहतर जानता है कि आँसू और तर्क के बीच के अन्तर को मिटाने के लिए उसे चीज़ों को कैसे पेश करना हैं।

यह पहला मौक़ा नहीं है जब सीरिया में चुनी हुई बशार अलअसद की सरकार को मानवता के नाम पर नहीं घेरा जा रहा हो। अलान कुर्दी और अलग़ुता में क्लोरीन के इस्तेमाल, आम नागरिकों पर हवाई हमले से पहले दमिश्क़ के बाहर 2013 में सिरीन गैस के झूठे इल्ज़ाम और अलेप्पो के ख़ाली होने पर आम नागरिकों के सीरियाई सेना द्वारा नरसंहार के झूठ को दुनिया देख चुकी है।

अलग़ुता की नई कहानी उसी दर्द, आंसू मिश्रित झूठ से बशार अलअसद को निशाना बनाने की है। तथ्यात्मक रूप से अलग़ुता के संकट का विश्लेषण किया जाए तो स्थितियाँ काफ़ी स्पष्ट हो जाएंगीं।

सबसे पहले यह स्पष्ट होना चाहिए कि यूरोप, अमेरिकी और इज़राइली मीडिया जो तस्वीरें और ख़बरें चला रहा है वह कथित बाग़ी और आतंकवादियों के नियंत्रण वाले क्षेत्र की हैं।

दमिश्क़ के 15 किलोमीटर दूर आतंकवादियों के नियंत्रण वाले क्षेत्र को ख़ाली करवाना सीरिया की सरकार का संवैधानिक और मानवीय अधिकार है। यह पूर्वी अलग़ुता में फंसे क़रीब चार लाख सीरियाई लोगों की हिफ़ाज़त के लिए ही की जा रही कार्रवाई का हिस्सा है जिसमें रूस सीरियाई सेना की मदद कर रहा है।

यह सब जानते हैं कि अलेप्पो और दारिया जब आतंकवादियों के हाथों से फिसल रहा था तो आतंकवादियों और कथित बाग़ियों ने यूँ ही रुदन मचाया था और खुल कर मानव श्रृंखला को इस्तेमाल कर भागे थे और आम नागरिकों की हत्याएं की थीं।

जिन बच्चों की तस्वीरों को सीरिया और रूसी वायु सेना के हमले की बताई जा रही हैं इसमें अधिकांश आतंकवादियों के हाथों मारे जा रहे आम लोगों की हैं। पीड़ित किसे बताएगा कि कौन किसे मार रहा है?

सीरिया की सरकार और राष्ट्रपति के शिया होने का हवाला देकर इसे सुन्नी दमन का नाम लेने वालों को पता होना चाहिए कि सीरिया की सेना सुन्नी बहुल है। इसके अलावा शिया, द्रूज़, ईसाई और इस्माईली भी सेना का हिस्सा हैं।

जबकि पूर्वी अलग़ुता में नरसंहार में लिप्त आतंकवादियों के सबसे बड़े धड़े जैश अलइस्लाम के पास सबसे आधुनिक हथियार हैं। इसका सरग़ना ज़हरान अलूश अपने पिट्ठुओं से खुलेआम कह चुका है कि अलवी शियाओं का नरसंहार करो।

सऊदी अरब और तुर्की के पैसों पर पल रहे इस आतंकवादी संगठन के दुर्दांत सरगना ज़हरान अलूश ने अब तक सैकड़ों बेगुनाह ग़ैर सुन्नियों की हत्याएं करवाई हैं, लोगों को ज़िंदा जलवाया है। यहाँ तक की सीरिया में आम लोग जिस बेकरी से रोटियाँ लेते हैं, वहाँ इसने बच्चों, बूढ़ों और औरतों को ज़िन्दा जलवा दिया।

यहाँ तक कि जिस पूर्वी अलग़ुता का रोना पश्चिमी मीडिया रो रहा है, उसमें इस हैवान की एक जेल चलती है जिसमें मानव त्रासदी के हौलनाक मंज़र देखे जा सकते हैं। दुनिया जिस अबूबक्र अलबग़दादी के आतंक को देखकर दहल गई थी, ज़हरान अलूश उससे कहीं भी किसी भी रूप में कमतर नहीं। क्या ऐसा सीरियाई सेना को किसी ने करते हुए देखा या सुना है कभी?

अमेरिकी ब्लॉगर जैनिस कॉर्नकैम्फ ने अपने अनुभव को साझा करते हुए लिखा कि 2016 में जब वह होम्स शहर के पास से गुज़र रही थीं तो उन्होंने देखा कि अलज़रा गाँव में अहरार अलशाम आतंकवादी गुट ने 42 आम शहरियों को मार डाला था। लोगों में दहशत पैदा करने के लिए कई बच्चों की लाशों को लटका दिया गया था।

अहरार अलशाम को क्रांतिकारियों का संगठन मानने वाले अमेरिका, यूरोप और इज़राइल को पता होना चाहिए कि इस संगठन ने अलनुसरा यानी सीरिया अलक़ायदा के साथ मिलकर किफ़ारिया और फ़ोआ गाँव पर लोगों पर वह ज़ुल्म किए कि इस आतंक की मिसाल नहीं मिलती।

इन्होंने भाग रहे ग्रामीणों की बसों को बमों से उड़ा दिया जिसमें 200 लोग मारे गए जिसमें बच्चों की संख्या अधिकांश है। अमेरिकी हथियारों और सऊदी अरब व तुर्की के पैसों पर पलने वाले यह आतंकवादी गुट भी मिलावटी मीडिया के लिए क्रांतिकारियों का दल है।

इसी तरह अमेरिकी टीऔडब्लू एंटी टैंक मिसाइल के साथ क्रांति के लिए निकले आतंकवादी गुट अलरहमान ने पुराने दमिश्क़ में मोर्टार से हमले करके अब तक सैकड़ों आम शहरियों को मार डाला है। क़तर की भीख पर पल रहा यह गुट भी भ्रष्ट मीडिया के लिए बाग़ियों का गुट है।

अलनुसरा से अलग हुए हयात तहरीर अलशाम को सऊदी अरब और क़तर से पैसा मिलता है और अलनुसरा को सऊदी अरब से। अमेरिका जिस फ्री सीरियाई आर्मी को पैसे और हथियार पहुंचाता है, पता नहीं कैसे उसी मॉडल के हथियार चंद दिनों बाद हयात तहरीर अलशाम और अलनुसरा के पास पहुंच जाते हैं।

सीरिया में मैंने एक सप्ताह का समय तब गुज़ारा था जब यह घटनाएं शुरू भी नहीं हुई थीं। सीरियाई शहर दमिश्क़, लताकिया और अलेप्पो में बेशुमार लोगों से मिलते हुए किसी ने अपनी साम्प्रदायिक तो छोड़िए धार्मिक पहचान बताना भी ज़रूरी नहीं समझा। एक सेकुलर देश जिसमें हर काम में महिलाओं की भागीदारी है, जहाँ सरकार की योजना में धर्म शामिल नहीं है।

जहाँ के मुख्य मुफ़्ती और सुन्नी बदरुद्दीन ने धर्म को राज्य से अलग रखने के लिए राष्ट्रपति बशार अलअसद को बाध्य कर रखा है। उस सीरिया में वहाबी धर्मांध अल्पसंख्यक विरोधी मूर्ख कथित बाग़ियों को पैसा, हथियार और रसद पहुंचाने वाले अमेरिका, इज़राइल, यूरोप, सऊदी अरब, क़तर और तुर्की को सत्ता बदलनी है।

भारत में भी सीरिया में नरसंहार के नाम पर बशार अलअसद, ईरान और रूस के विरुद्ध प्रदर्शन करने वाले वहाबी परस्त अवसरवादियों को यमन में सऊदी अरब का प्रायोजित नरसंहार, बहरीन और सऊदी अरब में शिया आम जन पर वहाबी सत्ता के ज़ुल्म, फ़िलस्तीन में इज़राइली आतकंवाद औऱ इराक़ व सीरिया में अमेरिकी दख़ल के विरुद्ध प्रदर्शन करते हुए नहीं देखेंगे।

पेट्रोडॉलर से नीति तय करने वाले मूर्ख सामाजिक नेताओं की सियासत भ्रष्ट है। अलग़ुता में हिंसा के पर्दे के पीछे झांकिए। सच्चाई कड़वी नहीं, बहुत बदसूरत भी है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

(लेखक कूटनीतिक मामलों के जानकार हैं)

साभार- जनचौक