समान नागरिक संहिता: दक्षिण भारत में उनके मामा से ही करवा दी जाती है हिन्दू लड़कियों की शादी

एक साहब से आज बहस हुई, मुद्दा था ‘समान नागरिक संहिता’ ( Uniform civil code ) का..और वो इसके पक्षधर थे..जबकि मैं इसे व्यवहारिक मानने को तैयार नहीं..जो लोग ‘सामान नागरिक संहिता’ लागू करने के पक्षधर हैं..उन्हें या तो संविधान में आस्था नहीं, या वो भारत को अनेकता में एकता और विविधताओं से भरा देश मानने का ढकोसला भर करते हैं..

दोहरेपन को जीने वाले ऐसे लोगों के नाटकीय विचार ने भारत के मूल चरित्र का दोहन कर लिया है। दरअसल ‘सामान नागरिक संहिता’ यानी ‘Uniform Civil Code’ ना तो व्यवहारिक है और ना संविधान संवत..सबसे पहले समझते हैं कि ‘सामान नागरिक संहिता’ है क्या ? दरअसल इसका अर्थ है भारत के सभी नागरिक वो चाहे किसी भी धर्म और जाति के हों सबके लिए एक और सामान कानून.

.अर्थात जीवन में शादी की रस्में, तलाक, मृत्यु संस्कार, जन्म संस्कार, गोद लेना और ज़मीन जायदाद के बंटवारे में एक ही तरह के कानून लागू हों..फिलहाल सभी धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने-अपने ‘पर्सनल लॉ’ के हिसाब से करते हैं..भारत में मुख्य रूप से आठ से दस धार्मिक धर्मों का अस्तित्व है जैसे, सनातन, इस्लाम, ईसाइयत, सिख, पारसी, यहूदी, और जैन धर्म..जबकि 10 से ज़्यादा अलग अलग धर्मों के पर्सनल लॉ मौजूद हैं..जो अपने निजी मामलों का निपटारा करते हैं..

ऐसे में ‘सामान नागरिक संहिता’ का कानून बनेगा कैसे ? ये तय कैसे होगा कि ‘सामान नागरिक संहिता’ जैसे कानून में किस धर्म के कानून का समावेश होगा ? क्योंकि हर धर्म के लोग चाहेंगे कि कानून उनके अपने धर्म के मुताबिक हो..ज़ाहिर है ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ कानून से हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई कोई भी एक दुसरे से सहमत नहीं होगा..अगर किसी एक धर्म या समुदाय के लोगों को दुसरे धर्म के कानून का पालन करना पड़े या उसे अपनाना पड़े..

मसलन क्या हिन्दू लड़के-लड़कियां मुस्लिम रीती रिवाज़ से निकाह करेंगे ? या मुस्लिम लड़के-लड़की हिन्दू रीती रिवाज़ से सात फेरे लेंगे ? क्या सिख या ईसाई निकाह या सात फेरे पर राज़ी हो जाएंगे ?? भारत के कई राज्यों में गऊ हत्या बैन है..जबकि कई राज्यों में गऊ हत्या पर पाबंदी नहीं..क्या नॉर्थ इंडिया, गोआ, बंगाल और केरल, जहां गौ-मांस खाने पर प्रतिबंध नहीं वहां के हिसाब से बाकी राज्य भी गौ हत्या को स्वीकार कर लेंगे ?? या गोवा, नॉर्थ ईस्ट और केरला जैसे तमाम राज्य यूपी, बिहार, राजस्थान, हरियाणा, गुजरात जैसे राज्यों की तर्ज पर अपने यहां गौ हत्या पर बैन स्वीकारेंगे ??

भारत के कई हिस्सों में हिन्दू लड़के और लड़कियों की आपस में शादी तब तक नहीं हो सकती जब तक की दोनों के खानदान में 7 पुश्त तक कोई रिश्तेदारी ना निकले…जबकि आंध्राप्रदेश, तेलंगाना और साउथ में हिन्दू लड़कियों की शादी उनके सगे मामा से हो सकती है और होती है..यहां तक की मामा का अपनी भांजी पर पहला अधिकार होता है..क्या सगे मामा-भांजी के बीच दक्षिण की संस्कृति की तर्ज़ पर, उत्तर, पश्चिम और पूर्वी भारत में हिन्दू समाज के लोग इसे अपना सकेंगे ?

क्या सिख को किसी भी जगह उसके कृपाल ले जाने पर पाबन्दी बर्दाश्त होगी ? क्या ईसाई और मुस्लिम लाश को दफ़न करने की बजाय जलाना पसंद करेंगे , या हिन्दू लाश को जलाने की बजाय दफ़न करना पसंद करेंगे ? ज़ाहिर है ये आसान ही नहीं असंभव है..हमारे देश में हज़ारो कल्चर, संस्कृति, सभ्यता, रीती रिवाज़ और अपने अपने स्टेट के कानून हैं..जिन्हें ‘यूनिफॉर्म सिविल कोड’ जैसे एक ही कानून के सांचे में ढालना तकरीबन नामुमकिन है..एक और बात बेहद रोचक और तथ्यात्मक है..

‘Uniform Civil Code’ का समर्थन करने वाले तकरीबन सभी लोग वही हैं जो ‘सामान नागरिक संहिता’ के कानून में अपने धर्म की कल्पना कर रहे होते हैं..अगर उन्हें पता चल जाए कि ‘यूनिफार्म सिविल कोड’ में उनके धर्म की बजाय दुसरे धर्म के कानून को जगह मिलेगी, तो बेचारे उलटे पांव भाग खड़े होंगे..फिर चाहे वो किसी धर्म के हों।