एकता और सहमति समय की अहम ज़रूरत: मौलाना राबे हसनी नदवी

मुसलमानों को दूसरी कोमों पर गर्व करने का अधिकार है कि उनमें आपसी संबंध व हमदर्दीम, आपसी संपर्क व भाईचारा, वक्ता रुझान मिल्ली एकता का जज्बा दूसरों से अधिक और मज़बूत है। लेकिन निचले स्तर से वह एकता व सहमति के कार्य कि मुकम्मल पाबंदी करने में बहुत कोताही बरत रहे हैं, अल्लाह ताला ने मुसलमानों को जिस भाईचारा और आपसी मोहब्बत व हमदर्दी का अजो आदेश दिया है उसका तकाज़ा तो यह था कि पूरा मुस्लिम समाज इस तरह एकजुट और सहमत हो जाए कि उसमें मतभेद और टकराव का निशान बाक़ी न रहे।

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यहाँ तक कि अगर पश्चिम व पूरब के किसी भी कोने पर कोई बुरी घटना पेश आये तो उसकी आह इस्लाम दुनियां के दूसरी कोने में आसानी से सुनी जा सके। जिससे न सिर्फ यह कि उनके दिल व जिगर और एहसास व अक्ल प्रभावित हो, बल्कि वह उससे अपनी पूरी दिलचस्पी व तवज्जो का इज़हार करें तब ही हुजूर अकरम सअ के फरमान के सही उपयुक्त करार पाएंगे कि एक मोमिन दुसरे मोमिन के लिए उस तरह है जैसे कोई मज़बूत इमारत हो कि उसके हिस्से एक दुसरे से जुड़े हुए और मजबूत हैं और यह कि एक इंसानी जिस्म की तरह हैं कि उसके किसी हिस्से के एहसास व तकलीफ में शामिल होते हैं।

लेकिन अफ़सोस कि इस समय मुसलमान इस संबंध में सख्त कोताही का शिकार हो रहे हैं, अतीत में भी उनसे इस संबंध में कोताही हुई थी, अगर अतीत में उनसे इस तरह कोताही न हुई होती तो स्पेन से उनका निर्वासन का दर्दनाक घटना पेश न आता जो उनकी शानदार और सम्मानजनक इतिहास रने और यूरोप में उनके रॉब व दबदबा कायम होने और सदियों बाकी रहने के बावजूद पेश आया।