ईरान-अमेरिका के बीच तनाव की वजह से चाबहार बंदरगाह के विकास में बाधा

नई दिल्ली: भारत की ओर से ईरान में बन रहे चाबहार बंदरगाह के लिए एक मुश्किल खड़ा हो गया है, क्यूंकि पश्चिमी देशों की कंपनियां उपकरणों की आपूर्ति करने से परहेज कर रही हैं। दरअसल इसका कारण ईरान और अमेरिका के संबध में खटास को माना जा रहा है।

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जागरण के अनुसार पश्चिमी कंपनियों के ऐसे रुख से इस क्षेत्र में भारत को नुकसान उठाना पड़ सकता है, गौरतलब है कि एक दशक से भी ज्यादा समय से भारत इस बंदरगाह को विकसित करने की कोशिश में जुटा है।

मालूम हो कि पाकिस्तान के साथ खराब संबंधों के चलते अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधी पहुंच बनाने के मकसद से भारत के लिए इस बंदरगाह का विकास काफी अहम है। इसके अलावा पाकिस्तानी समुद्र तट पर चीन द्वारा विकसित ग्वादर बंदरगाह का जवाब देने के लिए भी नरेंद्र मोदी सरकार ने उससे महज 100 किमी दूर स्थित इस ईरानी बंदरगाह के आस-पास व्यापक निवेश योजनाओं की शुरुआत की है। जिनमें रेल, सड़क और उर्वरक संयंत्रों का निर्माण शामिल है।

भारत ने 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर के निवेश से उक्त बंदरगाह को विकसित करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की थी। लेकिन, चाबहार बंदरगाह को बना रही भारतीय सरकारी कंपनी ‘इंडिया पो‌र्ट्स ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड’ अभी तक क्रेन और फोर्कलिफ्ट जैसे उपकरणों की आपूर्ति के लिए एक भी टेंडर आवंटित नहीं कर पाई है। आधिकारिक सूत्रों ने इसकी पुष्टि की है।

आपको बता दें कि ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान परमाणु समझौते की कड़ी निंदा की थी। यही नहीं जनवरी में राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने के बाद से वह ईरान को मध्य पूर्व देशों के लिए खतरा और उसके साथ समझौते को अब तक की सबसे खराब डील बताते रहे हैं। यही वजह है कि स्विस इंजीनियरिंग कंपनी ‘लेभर’ और फिनलैंड की ‘कोनक्रेन्स’ व ‘कार्गोटेक’ ने निविदा बोलियों में हिस्सा लेने से इन्कार कर दिया।

इन कंपनियों ने ‘इंडिया पो‌र्ट्स ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड’ को बताया कि अमेरिकी नीतियों की अनिश्चितता की वजह से उनके बैंक ऐसे किसी वित्तीय लेन-देन के लिए तैयार नहीं हैं जिसमें ईरान शामिल हो।