गंगा-यमुना को ज़िंदा इंसान का दर्जा दिए जाने के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट पहुंची उत्तराखंड सरकार

गंगा, यमुना तथा उनकी सहायक नदियों को जीवित मानव का दर्जा देने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ़ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है ।

उत्तराखंड हाईकोर्ट के 20 मार्च को दिये गये आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल कर राज्य सरकार ने उस पर रोक लगाये जाने की गुज़ारिश की है.

गंगा यमुना और उनकी सहायक नदियों तथा उनसे जुड़े जल स्रोतों को एक जीवित व्यक्ति के समान कानूनी अधिकार देने और प्रदेश के मुख्य सचिव को उनका अभिभावक बनाने वाले उच्च न्यायालय के तीन माह पुराने आदेश को चुनौती देते हुए राज्य सरकार ने कहा है कि यह आदेश क़ानूनी रूप से सही नहीं है.

इस याचिका में सवाल उठाया गया है कि बाढ़ में जनहानि होने पर क्या प्रभावित व्यक्ति प्रदेश के मुख्य सचिव के ख़िलाफ़ नुकसान के लिये मुकदमा दर्ज करा सकता है या ऐसे वित्तीय बोझ को उठाने के लिये क्या राज्य सरकार ज़िम्मेदार होगी.

इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करने की पुष्टि करते हुए उतराखंड के महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर ने कहा कि इस आदेश के संबंध में कुछ सवालों के जवाब मिलने बहुत ज़रूरी हैं, जैसे अन्य राज्यों से होकर गुजरने के दौरान वहां होने वाले अवैधताओं से उत्पन्न विवादों में उच्च न्यायालय द्वारा नदियों के अभिभावक बनाये गये प्रदेश के मुख्य सचिव की क्या भूमिका होगी.

याचिका में दलील दी गयी है कि इन नदियों और उनकी सहायक नदियों के अन्य राज्यों से होकर गुजरने और विभिन्न राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्रों में आने के बावजूद उच्च न्यायालय ने यह आदेश पारित किया है.

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में यह भी सवाल उठाया है कि क्या यह आदेश पारित कर उच्च न्यायालय ने अपने याचिका अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन नहीं किया है क्योंकि नदियों को जीवित मानव का दर्जा देने का न तो अनुरोध किया गया था और न ही याचिका में ऐसी कोई प्रार्थना की गयी थी.

राज्य सरकार ने तर्क दिया है कि उच्च न्यायालय के समक्ष दायर की गयी याचिका केवल देहरादून जिले में यमुना नदी की शक्ति नहर से अतिक्रमण हटाने से संबंधित थी.