उत्तर प्रदेश में हाल ही में भाजपा को निकाय चुनावों में बड़ी जीत हासिल हुई है। इस जीत का असर भाजपा पर क्या पड़ा है, ये उनके नेताओं द्वारा दिए गए बयानों से आप समझ सकते है।
लेकिन कुछ ओर तथ्य सामने आए है जो डराने वाले है।
आवाज उठ रही है कि भाजपा वहां जीती है जहां ईवीएम का इस्तेमाल किया गया और वहां हारी है जहां बैलेट पेपर का यूज हुआ। ये अपने आप में गंभीर सवाल है। इसी के साथ एक बार फिर ईवीएम पर सवाल उठने शुरू हो चुके है।
अयोध्या नगर निगम, जहां ईवीएम से मतदान हुआ, वहां भाजपा ने जीत दर्ज की लेकिन आस-पास के ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में बैलेट पेपर से हुए मतदान में भाजपा को खासा नुकसान का सामना करना पड़ा।
यहीं हाल उत्तर प्रदेश की बाकी जगहों में रहा। जहां बैलेट पेपर से चुनाव हुआ, वहां भाजपा को हार झेलनी पड़ी तो ईवीएम से हुए मतदान में भाजपा ने तगड़ी जीत हासिल की।
द वायर ने अयोध्या से लगे सात जिलों के घोषित हुए निकाय चुनाव परिणामों का विश्लेषण किया। जहां अधिकतर भाजपा प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के फैज़ाबाद, आम्बेडकर नगर, बस्ती, गोंडा, बलरामपुर, बहराइच और सुल्तानपुर जिले के ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों की 33 नगर पालिका सीटों में से भाजपा को महज 6 सीटों पर सफलता मिली।

यहां दिलचस्प बात ये है कि आम्बेडकर नगर की सभी 5 नगर पालिका अध्यक्ष सीटों पर महिला उम्मीदवार- नसीम रेहाना, शौकत जहां, शबाना खातून, फरजाना खातून और सरिता गुप्ता ने जीत दर्ज की।

सूबे में भाजपा सरकार की प्रसिद्धि के चलते अयोध्या में भाजपा प्रत्याशी मेयर के पद तो पहुंच गये लेकिन फैज़ाबाद में भाजपा विधायकों के होने से, ग्रामीण और अर्ध शहरी इलाकों में पार्टी के उम्मीदवारों को कोई मदद नहीं हुई।
द वायर की तरफ से आगे लिखा गया है कि इस बात में कोई शक नहीं है कि ये परिणाम स्थानीय राजनीतिक समीकरणों को दिखाते हैं, लेकिन भाजपा के ख़िलाफ पेपर बैलेट वोटिंग के मुद्दे से ईवीएम पर हुई बहस फिर से शुरू हो सकती है।
आप द वायर द्वारा किए गया पूरे विश्लेषण को उनकी हिंदा और अंग्रेजी की वेबसाइट पर जाकर पड़ सकते है।
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