VIDEO : भारत में नकली समाचारों का बढ़ता व्यापार

नई दिल्ली : “यदि आप एक बड़ा झूठ बोलते हैं और इसे दोहराते रहें, तो लोग अंततः इस पर विश्वास करने लगेंगे। भारत में फेक न्यूज की समस्या लगातार बढ़ रही है. फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया मंचों का इस्तेमाल गलत और झूठी सूचनाएं फैलाने के लिए धड़ल्ले से हो रहा है. भारत में नकली समाचार तेजी से धर्म के आधार पर समुदायों को ध्रुवीकरण करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. जिसकी वजह से सार्वजनिक भावनाओं से खिलवाड़ हो रहा है जो अधिक खतरनाक तरीके से सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है और अंतत: राजनेताओं को चुनाव जीतने में मदद मिलती है.

हाल के समय में ऐसी कई मिसालें मिलती हैं जब लोगों को गुमराह करने वाली खबरें और प्रोपेगेंडा सोशल मीडिया पर वारयल हो गया. पिछले महीने ही रोहिंग्या लोगों के खिलाफ खूब दुष्प्रचार किया गया. इससे पहले झारखंड में व्हाट्सएप के जरिए बच्चों को अगवा करने वाले एक गैंग के बारे में अफवाह फैली. इसके बाद कई लोगों को सरेआम लोगों ने पीट पीट कर मार डाला. बाद में पता चला कि वह झूठी अफवाह थी और मारे गये लोग निर्दोष थे.

कुछ महीने पहले सरकार समर्थक एक वेबसाइट और मुख्यधारा के टीवी चैनलों ने एक खबर चलायी जिसमें कहा गया कि जानी मानी लेखक अरुंधति राय ने कश्मीर में भारतीय सेना की भारी मौजूदगी का विरोध किया. इसके बाद समाज के राष्ट्रवादी तबके ने अरुंधति राय पर हमले तेज कर दिये. लेकिन बाद में अरुंधति राय ने बताया कि उन्होंने तो कश्मीर में भारतीय सेना को लेकर कोई बयान ही नहीं दिया है.

भारत सोशल मीडिया कंपनियों के लिए एक बड़ा बाजार है. दुनिया भर में व्हाट्सएप के मासिक एक अरब से ज्यादा सक्रिय यूजर्स में से 16 करोड़ भारत में हैं. वहीं फेसबुक इस्तेमाल करने वाले भारतीयों की तादाद 14.8 करोड़ और ट्विटर अकाउंट्स की तादाद 2.2 करोड़ है.

पर्यवेक्षकों का यह भी कहना है कि खबरें पढ़ने वाले भी ऐसा कुछ देखना और पढ़ना नहीं चाहते जो उनके विचारों से मेल ना खाता हो. उन्हें सिर्फ वही चीज चाहिए जो पहली नजर में उनकी सोच और ख्यालों के मुताबिक हो.

एसएम होअक्स स्लेयर के पंकज जैन कहते हैं, “संवेदनशील सामग्री को परखने के लिए मैं विभिन्न एल्गोरिद्म इस्तेमाल करता हूं. झूठी खबर का स्रोत पता करने के लिए बहुत ऑनलाइन रिसर्च और फैक्ट चेकिंग करनी पड़ती है.”

जैन और सिन्हा, दोनों ही इस बात पर सहमत है कि सोशल मीडिया पर फेक न्यूज की सत्यता को जांचने की जिम्मेदारी मुख्यधारा के मीडिया की तो है ही, साथ ही सरकार को भी इस बढ़ते चलन को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए. जैन की राय में, “सरकारी संस्थाओं को ग्रामीण स्तर पर लोगों को इंटरनेट साक्षरता के बारे में जागरुक किया जाना चाहिए. वे लोग बिना जांचे परखे किसी भी खबर को सच समझ लेते हैं. इसे रोकने के लिए इंटरनेट में ही कुछ अंदरूनी टूल तैयार करना होगा.”

भारत की नहीं, दुनिया के और देशों में भी हाल में कई राजनेताओं, कंपनियों और सरकारों ने अपने हितों को साधने के लिए फेक न्यूज का इस्तेमाल किया है. ऐसा हम ब्रेक्जिट और अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान भी देख चुके हैं. लेकिन चुनौती यह है कि इससे प्रभावी तरीके से कैसे निपटा जाए.