VIDEO: शब-ए-बरात: वह रात जिसमें ‘अल्लाह’ की रहमत बन्दों को खोजती है

शाबान के महीने का इस्लामी इतिहास में विशेष महत्व है, इसलिए कि इसी महीने में हजरत हुसैन का जन्म हुआ, इसी महीने में हज़रत हफ्साह से अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का निकाह हुआ, मस्जिदे ज़रार की हैसियत इसी महीने में स्पष्ट हुई और उसे जला दिया गया, इसी महीने मुसैलमा कज़ाब के अस्तित्व से दुनिया मुक्त हुई, लेकिन इस्लाम में इसकी महत्व एक महत्वपूर्ण रात की वजह से है, जिसे शबे बरात कहते हैं.

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यानी जहन्नम से छुटकारे की रात, इस रात को अल्लाह की विशेष रहमत नाज़िल होती है और सारे जरूरतमंद की जरूरत पूरी करने के लिए आवाज लगाई जा होती है, भाग्यशाली हैं वे लोग, जो इस आवाज़ के साथ अपनी ज़रूरतें रब के दरबार में पेश करके अपना दामन भर लेते हैं, और दुआ करते हैं कि ऐ अल्लाह अगर तू हमारी गिनती बदबखतों में कर लिया है तो उसे बदल दे और हमें नेक बखतों में लिख ले और अगर हमें नेक बखतों में लिख रखा है तो उसे बरकरार रख; क्योंकि तेरे पास ‘लौहे महफ़ूज़’ है, उस रात रहमत की बहार चलती है, माफी के परवाने बंटते हैं और जहन्नुम से छुटकारा अमल में आता है, मानो पूरे साल बंदा खुदा की रहमत की खोज में रहता है, लेकिन इस रात में खुदा की रहमत बन्दों को खोजती है, और जरूरतमंदों की जरूरतें पूरी की जाती हैं.

इस पुण्य वाली रात में भी कुछ बदकिस्मत अपनी बुरे कारनामे के कारण वंचित रह जाते हैं, विभिन्न हदीसों में उनका ज़िक्र आया है कि इस सूची में कीना रखने वाला, मुशरिक, न हक़ खून करने वाला, रिश्ते तोड़ने वाला, टखने से नीचे कपड़ा लटकाने वाला अनदेखी की बातें बताने वाला, पुजारी, ज्योतिषी, माता-पिता की नाफ़रमानी करने वाला शराब के आदी, ब्याज खाने वाला, चुगलखोर, व्यभिचारी आदि शामिल है, यह सूची पूरी नहीं है, अनुसंधान से और भी कुछ लोगों का इजाफा हो सकता है, हर आदमी को इस पर विचार करना चाहिए कि वह किसी ऐसे कार्यों से पीड़ित तो नहीं है, जिसकी वजह से इस रात में वह माफी से महरूम हो जाए।

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